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राजीव कैश कांड में सुप्रीम कोर्ट ने दिया CBI जांच जारी रखने का आदेश, पर अभी नहीं हो सकेगी किसी की गिरफ्तारी

प बंगाल सरकार ने ‘राजीव कैश कांड’ के सिलसिले में सीबीआइ दिल्ली द्वारा दर्ज प्राथमिकी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. सुनवाई न्यायाधीश संजय किशन कौल और न्यायाधीश एमएम सुंदरेश की पीठ में हुई.

सुप्रीम कोर्ट ने ‘राजीव कैश कांड’ में सीबीआइ को जांच जारी रखने का आदेश दिया है. साथ ही इस मामले में प बंगाल की कोलकाता पुलिस के अधिकारियों व अन्य की गिरफ्तारी पर अगले आदेश तक रोक लगा दी है. शीर्ष अदालत ने सीबीआइ को कोलकाता में ही पूछताछ करने का निर्देश दिया है. वहीं, पुलिस अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे जांच में सीबीआइ को सहयोग करें.

अगली सुनवाई 29 मार्च को होगी. प बंगाल सरकार ने ‘राजीव कैश कांड’ के सिलसिले में सीबीआइ दिल्ली द्वारा दर्ज प्राथमिकी को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. इस याचिका की सुनवाई न्यायाधीश संजय किशन कौल और न्यायाधीश एमएम सुंदरेश की पीठ में हुई.

याचिका पर सुनवाई के दौरान कोलकाता पुलिस ने दलील दी कि सीबीआइ ने ‘राजीव कैश कांड’ मामले में कोलकाता के अज्ञात पुलिस अधिकारियों को अभियुक्त बनाया है. किसी पुलिस अधिकारी को नामजद नहीं किया है. इससे सीबीआइ को किसी भी पुलिस अधिकारी को पूछताछ के लिए बुलाने का अधिकार मिल गया है. साथ इस मामले में किसी को भी गिरफ्तार करने का खतरा बना हुआ है.

कोलकाता पुलिस ने व्यवसायी अमित अग्रवाल की शिकायत पर कानूनी प्रावधानों के तहत ही प्राथमिकी दर्ज की और जांच की. शिकायतकर्ता ने प्राथमिकी में यह आरोप लगाया था कि झारखंड हाइकोर्ट के वकील राजीव कुमार जनहित याचिका को मैनेज करने के नाम पर पैसा मांग रहे हैं. इसी शिकायत के आधार पर कोलकाता पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज की और राजीव कुमार को 50 लाख रुपयों के साथ गिरफ्तार किया. बाद में इस मामले की जांच इडी ने शुरू की.

लेकिन इडी ने शिकायतकर्ता को ही अभियुक्त बना कर गिरफ्तार कर लिया. अमित अग्रवाल की याचिका पर सुनवाई के दौरान झारखंड हाइकोर्ट ने कोलकाता पुलिस का पक्ष सुने बिना ही सीबीआइ जांच का आदेश दिया. इसके बाद सीबीआइ ने प्राथमिकी में कोलकाता पुलिस को भी अभियुक्त बना लिया. अब समन भेज कर पूछताछ के लिए दिल्ली बुला रही है. यह न्यायसंगत नहीं है.

इसलिए शीर्ष अदालत सीबीआइ द्वारा दर्ज की गयी प्राथमिकी को निरस्त करने का आदेश दे. सीबीआइ की ओर से इसका विरोध करते हुए दलील दी गयी कि प्रारंभिक जांच के दौरान कई गंभीर बातें सामने आयीं थी. इसलिए इसमें प्रारंभिक जांच के बाद नियमित प्राथमिकी दर्ज की गयी.

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