झारखंड हाइकोर्ट ने कहा : यह दो राज्यों के बीच विवाद का मामला है, जिसे सुप्रीम कोर्ट सुन सकता है
: इस आदेश से बिस्कोमान की चुनाव प्रक्रिया में कोई बाधा नहीं आयेगी
रांची. झारखंड हाइकोर्ट ने बिहार स्टेट को-ऑपरेटिव मार्केटिंग यूनियन लिमिटेड (बिस्कोमान) के चुनाव में झारखंड सरकार के नामित सदस्य को भाग लेने से रोके जाने के मामले पर दायर याचिका पर सुनवाई की. जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय व जस्टिस अंबुज नाथ की खंडपीठ ने याचिका की मेंटेनेबिलिटी पर सुनवाई करने से इनकार कर दिया. खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा कि यह मामला दो राज्यों के बीच कानूनी अधिकारों के विवाद से जुड़ा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ही सुन सकता है. यह विवाद संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट की मूल अधिकारिता में आता है, क्योंकि इसमें दो राज्यों (बिहार व झारखंड) के बीच कानूनी अधिकारों का विवाद शामिल है. बिस्कोमान एक बहु राज्य सहकारी समिति है, जिसमें बिहार व झारखंड दोनों राज्यों की हिस्सेदारी है. खंडपीठ ने झारखंड सरकार को उचित फोरम में जाने की अनुमति देते हुए याचिका को निष्पादित कर दिया. खंडपीठ ने कहा कि इस आदेश के मद्देनजर बिस्कोमान के चुनाव प्रक्रिया को जारी रखने में कोई बाधा नहीं होगी. इससे पूर्व झारखंड सरकार की ओर से महाधिवक्ता राजीव रंजन, अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार व अपर महाधिवक्ता आशुतोष आनंद ने पक्ष रखा. वहीं बिस्कोमान के निदेशक की ओर से अधिवक्ता मनोज टंडन ने खंडपीठ को बताया कि यह दो राज्यों के बीच के विवाद का मामला है. संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट ही इस मामले को सुन सकता है. बिहार सरकार की ओर से अधिवक्ता एसपी राय, अधिवक्ता दिवाकर उपाध्याय, केंद्र सरकार की ओर से वरीय अधिवक्ता अनिल कुमार ने पैरवी की, जबकि हस्तक्षेपकर्ता की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार ने पक्ष रखा.
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उल्लेखनीय है कि प्रार्थी झारखंड सरकार ने याचिका दायर की थी. याचिका में बिहार सरकार व केंद्रीय सहकारी चुनाव प्राधिकरण के निर्णयों को चुनाैती दी गयी थी. झारखंड सरकार ने अपने नामित सदस्य को बिस्कोमान के चुनाव में भाग लेने की अनुमति देने की मांग की थी. कहा गया था कि बिस्कोमान के एक बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में झारखंड सरकार ने अपने एक प्रतिनिधि (नामित सदस्य) को शामिल करने का दावा किया था, लेकिन बिहार सरकार ने तीन अप्रैल 2025 की एक अधिसूचना में कहा कि झारखंड के पास बिस्कोमान में कोई इक्विटी शेयर नहीं है, इसलिए उसे नामित सदस्य भेजने का अधिकार नहीं है. इसके बाद केंद्रीय सहकारी चुनाव प्राधिकरण ने पांच मई 2025 के पत्र में झारखंड के नामित सदस्य को चुनाव प्रक्रिया से बाहर कर दिया, जिसे झारखंड सरकार ने याचिका दायर कर चुनौती दी थी.
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