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झारखंड : विधायक सरयू राय का बन्ना गुप्ता पर निशाना, कहा- मेरे पास है घोटाले का प्रमाण, पढ़ें पूरी खबर

जमशेदपुर पूर्वी से निर्दलीय विधायक सह पूर्व मंत्री सरयू राय ने शुक्रवार को प्रभात खबर संवाद में मुखर होकर अपनी बातें रखीं. विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर पूछे गये सवालों का बेबाकी से जवाब दिया. न सिर्फ विरोधियों को घेरा, बल्कि राजनीतिक गलियारे में हो रही चर्चाओं पर अपनी बातें साझा कीं.

Prabhat Samvad Special: निर्दलीय विधायक सरयू राय शुक्रवार को ‘प्रभात संवाद’ कार्यक्रम में शामिल हुए. इस दाैरान पत्रकारों के सवालों का न केवल मुखर होकर अपनी बातें रखीं, बल्कि विभिन्न ज्वलंत मुद्दों पर पूछे गये सवालों का जवाब भी बेबाकी से दिया. इस दौरान रघुवर-सरयू में किस तरह से दूरियां बढ़ी उसे भी बताया.

आपका लंबा राजनीतिक-सामाजिक अनुभव है, पहले पत्रकार, जेपी आंदोलनकारी से लेकर मंत्री फिर निर्दलीय विधायक तक का सफर. निर्दलीय विधायक के रूप में अपने काम को किस रूप में आंकते हैं?

निर्दलीय कहिए या स्वतंत्र कहिए़ इसमें इतनी स्वतंत्रता है कि किसी दल के अनुशासन की चाबुक नहीं चलती है. अब हमारे ऊपर है, किस चीज को उठायें, न उठाये़ं इसमें इतनी स्वतंत्रता है, तो दूसरे मामले में अकेले होने का एक नुकसान भी है, जैसे कहा गया है कि अकेला चना भांड़ नहीं फोड़ता है. विधानसभा में बड़ी मुश्किल से स्पीकर साहेब एक मिनट-दो मिनट का समय देते है़ं ये दोनों मिला-जुला कर जो अनुभव है, उसमें एक विधायक के नाते ज्यादा स्वतंत्र महसूस करता हूं.

तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास को आपने हराया, सबको चौंकाया, लेकिन आपका राजनीतिक दायरा, नहीं बढ़ा. अभी भी जमशेदपुर तक सिमट कर रह गये?

हां, मैं जमशेदपुर तक ही सीमित हूं. रांची तक सीमित हूं. क्योंकि दायरा बढ़ाने को लेकर मैं काल्पनिक दुनिया में नहीं जीता हू़ं एक व्यक्ति कितना कर सकता है? दल बना लेना, दायरा बढ़ा लेना आसान है, लेकिन इसको चलाना अलग बात है. इसमें पीछे कोई बहुत महत्वाकांक्षा हो, तो लगे कि चलिए, हमको अवसर मिल गया, दायरा बढ़ा लें. मेरे मन में ऐसी कोई महत्वाकांक्षा भी नहीं है. जमशेदपुर मैं इसलिए ज्यादा रहता हूं कि वहां लोगों ने मुझे वोट दिया. लोगों की यह शिकायत न रहे कि ये तो जीत गये और यहां फरार हो गये. मैं उनके बीच रहता हूं, तो यह भी नहीं है कि अगला चुनाव लड़ना चाहूंगा. मैं आत्मसंतुष्ट महसूस करता हूं. व्यापक दायरे में जाने से ज्यादा आत्मसंतुष्टि मिली. जिन्होंने मेरा अपमान किया, मैं सही उतरा, जनता ने मुझे पसंद किया. आत्मसंतुष्ट हूं, आत्ममुग्ध नहीं हूं.

आपके संरक्षण में भाजमो बना़ एक पॉलिटिकल चेहरा नहीं जुड़ा़ आपके ही इर्द-गिर्द के लोग इसमें जुड़े हैं?

पार्टी बना लेना आसान है, उसको चलाना बहुत कठिन है. पार्टी चलाने के लिए क्या-क्या करना पड़ता है.? दूसरा यह कि मैं जमशेदपुर में सक्रिय रहूं, इसके लिए एक प्लेटफॉर्म की जरूरत होती है. इसलिए मेरा यह संगठन जमशेदपुर तक ही सिमटा हुआ है. मेरे मन में ऐसी कोई ख्वाहिश नहीं है. मैं मुद्दों को उठाता हूं. एक निर्दलीय विधायक कोई पार्टी बना कर उससे जुड़ नहीं सकता है. उसकी सदस्यता चली जायेगी. किसी पार्टी में शामिल होगा, तब भी. अपनी पार्टी बनाकर शामिल होगा, तब भी. मेरा उद्देश्य यह नहीं है कि एक संगठन बना लिया और झारखंड की राजनीति में भूचाल ला देंगे. आज जो बड़ी पार्टियां हैं, बड़ी मछली, छोटी मछली को खा जाती है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण बाबूलाल मरांडी जी हैं. पांच-सात एमएलए जीत जाते हैं, उनका शिकार हो जाता है. बहुत करके मैं भी दो -चार विधायक जिता लूंगा और बाद में जो हालत बाबूलाल जी की है, वैसी हालत मेरी भी हो जायेगी या किसी की भी हो जायेगी. राज्य ऐसा है, इसकी बनावट ऐसी है कि हम जैसे लोग बहुत महत्वाकांक्षा पाल लें, बहुत बदलाव ला देंगे, बहुत हस्तक्षेप कर लेंगे, यह संभव नहीं है.

विरोधियों का आरोप है कि आप बहुत निगेटिव किस्म की राजनीति करते हैं?

आपने जो कहा है, ये धारणा लोगों की है़ इसको मैं इनकार भी नहीं करता हूं. मुझे भी पता है कि विरोधी मेरे बारे में ऐसा कहते हैं. मगर निगेटिव क्या है? अगर कोई काम गलत हो रहा है, उस काम को उठाइये और कोई गलत कर रहा है, तो उसको सामने लाने का प्रयास कीजिए. अगर यह निगेटिव है, तो मैं निगेटिव हूं. हमलोग पर्यावरण का भी काम करते हैं. उनमें भी लोग निगेटिविटी ही खोजते हैं. मैं किसी मामले को उद्देश्य के तहत उठाता हूं. ऐसा नहीं है कि सबके खिलाफ उठाता हूं, जो प्रमाण मिल गये और अधिकांश प्रमाण तो पत्रकार जगत से ही मिलते हैं. जिसके खिलाफ मैं मुद्दा उठाता हूं, उसको सबसे पहले सलाह-सुझाव देता हूं. पत्र भी देता हूं. चाहे वे तपेश्वर बाबू रहे हों या हमारे मित्र लालू जी रहे हों. मधु कोड़ा रहे हों या रघुवर जी रहे हों. सबको पहले मैंने मिल कर बताया है. लिखकर भी सबको दिया है. एक बात की चर्चा ही नहीं होती, सिकिदिरी हाइडल पावर की. इसको तो मैंने ही उठाया था. मुंडा जी की सरकार थी, अब सजा हो रही है. संघ के ही एक बड़े पदाधिकारी ने कागजात दिये थे. मैं तो खतरा मोल लेता हूं, अपने ही मुख्यमंत्री को खिलाफ. बात सही निकलती है.

आपने भ्रष्टाचार के कई मामले उजागार किये, किस लड़ाई में सबसे अधिक मजा आया या कहें कि किस मामले में भ्रष्टाचार साबित होने पर आपको खुशी हुई?

कई चीज जब नयी होती है, तो उसमें ही ज्यादा मजा आता है. हमने सहकारिता माफिया के खिलाफ उठाया. मेरे साथ कोई नहीं था. बाद में भगवत झा आजाद की सरकार आयी, कई एपेक्स बॉडी को उन्होंने सुपरशीड कर दिया. आरके सिंह जो आज मंत्री हैं, आईएएस ऑफिसर थे, बिस्कोमान के एमडी बने. उनको मैंने बुलाया. सबसे ज्यादा कष्टकारक आनंद इसी लड़ाई में आया. लालू जी के साथ हमलोग जुड़े, मित्र थे, आज भी मित्र हैं. उनके खिलाफ आवाज उठाने में अंदर से बहुत कष्ट होता था. इस आदमी को हमलोगों ने समर्थन दिया था. रामसुंदर दास का नाम वीपी सिंह ने तय कर दिया था. हमलोगों को लगा था कि हमलोगों के जेपी आंदोलन के कोई साथी हैं, मुख्यमंत्री बन जाये, तो अच्छा होगा. हमलोगों की जो कूबत थी, हमलोगों ने किया और लालू जी मुख्यमंत्री बने और बनने के बाद उन्होंने अपने चरित्र में बदलाव नहीं किया. लालू यादव दोस्तपरस्त आदमी रहे हैं. मैंने उनको बताया था कि यह गलत हो रहा है, तो उस समय भय था. 1990 से 2000 हजार के बीच बिहार में आंतक था. लोग डरते थे. मैंने चारा चोर, खजाना चोर किताब छापी. भाजपा में भी आधे लोग इसके खिलाफ थे. उसमें रोमांच ज्यादा था. पार्टी खास कर रांची केंद्रीत लोग पशुपालन घोटाले के समर्थन में थे, लेकिन हमलोगों ने रिस्क लिया. उसके बाद मधु कोड़ा की बात आयी. हमलोगों के प्रिय कार्यकर्ता हुआ करते थे. उसमें भी ज्यादा सामग्री, पशुपालन घोटाला में भी ज्यादा सामग्री अखबारों से ही मिलता था. तब प्रभात खबर छापता था. 1995 के पहले हमारे मित्र तारकेश्वर सिंह इनकम टैक्स में थे, उन्होंने जहाज रुकवा कर सामान उतरवाया था. उन्होंने मुझे कहा कि अब हम क्या बतायें आपको, प्रभात खबर पढ़ लीजिएगा, जो निकलेगा, सब सही है. मधु कोड़ा की भी लीड अखबार से ही मिली. मुझे प्रेस कॉन्फ्रेंस करना था. पीएन सिह पार्टी के अध्यक्ष थे, पार्टी ऑफिस में अनुमति मिलना मुश्किल था. उस समय भी था, हम बीजेपी ऑफिस में प्रेस कॉन्फ्रेंस करें या न करे. मैंने बीजेपी ऑफिस में ही किया.

झारखंड के किस मुख्यमंत्री से आपकी बनी या आप किसके कार्यकाल को बेहतर कहेंगे?

दो शुरुआती मुख्यमंत्री हुए़ बाबूलाल जी और मुंडा जी. इनसे घनिष्ठता थी. ये लोग कार्यकर्ता होते थे, मैं पार्टी का पदाधिकारी होता था. इन दोनों के बारे में कोई पूछता है, तो यह कहता हूं कि बाबूलाल इज द फर्स्ट लव और अर्जुन मुंडा नेक्स्ट च्वाइस थे. दोनों से संबंध अच्छे रहे, लेकिन इनकी भी जो गलतियां थीं, इनको बता देते है़ं इसके कारण मेरे दोनो से मतभेद हुए, तो मैं किनारे हो जाता था.

आप खाद्य आपूर्ति मंत्री थे, आपके विभाग पर भी भ्रष्टाचार के आरोप लगे़ पत्रिका का मामला क्या था?

यह मामला पहले भी आया था. हमारे विरोधियों ने उठाया था. मामला एसीबी तक ले कर गये थे. मैंने आरटीआइ से सारी जानकारी मंगा ली. मेरे नौ हजार खर्च भी हुए़. मैंने सारे कागजात एसीबी को भी दिये. मैंने कहा कि इसकी जांच कर लीजिए, इसमें क्या नियम विरुद्ध है. 15 पैसे और 85 पैसे की बात आती है, तो वो काम आज भी चल रहा है. आहार पत्रिका की बात होती थी, उसका उतना ही उद्देश्य था कि जितने भी राशन दुकान हैं, वहां पांच-दस कॉपियां रहे. उसे लाभुक देख सके. इसमें बात उठी थी कि पत्रिका कैसे छपी. इसको कौन छापेगा, यह तय करना था. जल्दबाजी थी, तो कोटेशन मांगा गया. जो लोयेस्ट था, उसे काम मिला. छह महीने के भीतर उसका विज्ञापन निकला. हमलोगों ने पीआरडी से रेट मांगा था. वित्त में जब फाइल गयी थी, तो उसने कहा था कि पीआरडी से रेट ले लें. हमने रेट लिया और कोटेशन लिया. दूसरी बात, यह लोग कहते हैं कि फोर जी वाला पॉश मशीन लाने में मेरी कोई भूमिका नहीं है. निदेशालय और सचिव इसमें हैं. उसमें भी विज्ञापन निकाल कर किया गया था. हमारे यहां तो कोई गड़बड़ी भी थी, तो हमने सचिव को लिखा. इसके दर्जनों उदाहरण हैं.

हेमंत सोरेन की सरकार से तो शुरुआती दिनों में अच्छी बन-छन रही थी. अब अचानक क्या हो गया?

शुरू में जब मैं चुनाव लड़ा था. मैं अकेले चला गया चुनाव में. उस समय गठबंधन कांग्रेस का उम्मीदवार रहने के बाद भी हेमंत सोरेन ने खुलेआम मेरा समर्थन किया था. सुदेश महतो ने भी हमारा समर्थन किया था, नीतीश कुमार ने भी समर्थन किया था. अंत में लालू जी ने भी मेरा समर्थन किया. लालू जी ने फोन कर के कहा था कि हमारी पार्टी का कौनो खिलाफ करेगा, तो उसका नंबर हमको भेज दीजिएगा, हम बात करेंगे. भाजपा ने नंदकिशोर यादव को बैठाया था. मैं कहीं भी जाता था, तो लोग कहते थे साहेब के फोन आ गइले बा. सबने मेरा समर्थन किया. मैं दुमका भी चुनाव प्रचार में गया, सीता सोरेन के यहां भी गया. शुरू में हमने हेमंत सरकार का समर्थन भी किया. गुण-दोष के आधार पर समर्थन की बात थी. दो-साल डेढ़ साल के बाद जो गलतियां होती थी. उसको ना उठायें? दूध में मक्खी गिरी है और दूध पी लिये, यह उचित है? हेमंत सोरेन से मेरा बड़ा प्रेम और स्नेह का संबंध है. हेमंत सोरेन में कई विशेषताएं हैं, व्यवहार कुशल हैं, लेकिन जो चीजें हो रही है, उसे मैंने मुख्यमंत्री से भी मिल कर कहा और विधानसभा में भी कहा है. मैंने विधानसभा में मुख्यमंत्री से कहा है कि दो तीन फाइलों में गलत किया है, उसको ठीक करा लीजिए़ मैंने लिख कर भी दिया है. मैंने हेमंत सोरेन जी को बताया कि जो पहली सरकार में थे, वही आपके साथ आ रहे हैं. अंतर यही है कि जब रघुवर दास की सरकार में थे, राजबाला वर्मा की क्लोज मॉनिटरिंग थी, ये लोग नियंत्रित रूप में काम करते थे. चाहे प्रेम प्रकाश हो या विशाल चौधरी हों. मैंने मुख्यमंत्री से कहा कि अब यही लोग आपके यहां आ गये हैं, तो खुद मुख्तार हो गये हैं. कुछ दिन के बाद आपको पता भी नहीं रहेगा कि ये लोग क्या-क्या कर गये हैं. किसी का विधायक प्रतिनिधि है, गलत कर रहा है, तो शक्ति तो उसको विधायक से ही मिल रही है. मिश्रा जी साहिबगंज में अवांछित काम कर रहे हैं, तो ताकत किसकी है? मुझे जो उचित लगता है, करता हूं, किसी से राग-द्वेष नहीं है़ मुख्यमंत्री के पिता जी के साथ भी काम करने का मौका लगा है.

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के कार्यकाल को किस रूप मे देख रहे हैं?

हेमंत सोरेन का कार्यकाल अब असफलता की ओर बढ़ रहा है. विधानसभा में नियोजन नीति पर जो मैंने कहा था, अब वही हेमंत सोरेन कह रहे हैं. देखिए, संविधान के मुताबिक काम नहीं होगा, तो कभी सफलता नहीं मिलेगी. 1932 को उत्साह के साथ हेमंत ने विधानसभा में पास कराया था. अब उससे पीछे लौट रहे हैं, लेकिन वह नेता के रूप में उभरे हैं. नेता वही होता है, जो न केवल समर्थकों के हिसाब से चले, बल्कि समर्थकों को भी अपने हिसाब से चलाने का प्रयास करे. इडी जांच की शुरुआत में हेमंत सरकार के जाने के कयास लगाये जा रहे थे. तब उन्होंने 1932 से लेकर कई साहसी फैसले लिये. विरोधियों को अपने सामने कमजोर साबित किया. मैंने उस समय उनको कहा था कि आपने लंबा फेंक दिया है. अब उसी को समेटने का समय आ गया है. शेर की सवारी स्थायी नहीं हो सकती है. संविधान के बाहर जाकर समर्थकों के लिए काम नहीं किया जा सकता है. अब हेमंत पीछे लौटे हैं. कह रहे हैं कि लंबी छलांग लगानी है. वह जो भी करें, संविधान की परिधि में ही रह कर करें. वरना नहीं होनेवाले काम को बार-बार कहने से साख और समर्थन भी घटेगा. उनको समझना होगा कि राज्य की बनावट के मुताबिक वह या तो मुख्यमंत्री रहेंगे या फिर नेता प्रतिपक्ष. इन दोनों में से कोई एक भूमिका आपके लिए तय है. दोनों का समान महत्व है. राजनीति में लंबी दूरी तय करने के लिए समझ कर योजना बनाना हितकारी सिद्ध होगा. यह समझ कर वह चलें, तो अच्छे मुख्यमंत्री सिद्ध होंगे.

आप भले ही फिलहाल निर्दलीय विधायक हों, लेकिन डीएनए में भाजपा ही है. नेताओं से रिश्ते भी अच्छे हैं, वापसी तय मानी जाये?

संबंध अच्छा है. बढ़िया है. मैं उदाहरण देता हूं कि बाघ आपके सामने आ गया, तो जो करना है बाघ करेगा. आप क्या करेंगे उसके सामने. मेरे मामले में भी ऐसा ही है. जो करना है भाजपा करेगी. अभी तक ऐसी कोई पहल मेरी या उनकी तरफ से नहीं हुई है. मेरे संबंध सभी से हैं. बातचीत होती रहती है. आना-जाना भी लगा रहता है.

बड़ा सस्पेंस है, आपकी राजनीति में, अगला चुनाव जमशेदपुर पश्चिमी से या जहां पिछली बार खूंटा गाड़ दिया यानी पूर्वी से ही लड़ेंगे?

जिन लोगों ने मुझे जिताया है, उनकी उम्मीदें अभी पूरी नहीं हुई हैं. अगर मैं अगला चुनाव लड़ा, तो जमशेदपुर पूर्वी से ही लड़ूंगा. राजनीति मेरे लिए जीवन का अंतिम सत्य नहीं है. इसके बाहर भी काम करने के काफी सही विकल्प मौजूद हैं. कई चीजें साथ-साथ चलती हैं. लेकिन, स्पष्ट करता हूं कि अगर चुनाव लड़ूंगा, तो जमशेदपुर पूर्वी से ही लड़ूंगा.

राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि धनबाद संसदीय सीट पर भी आपकी नजर है?

दामोदर नदी पर काम करते हुए धनबाद आना-जाना लगा रहता है. पशुपतिनाथ जी पुराने साथी हैं. जब धनबाद जाता हूं, तो वो विचलित हो जाते हैं. उनको मैंने कहा है कि आपकी मनोवृत्ति इंद्र वाली हो गयी है. देवलोक में कहीं कोई तपस्या करता है, तो उनको लगता था कि उनकी सत्ता के लिए ही कर रहा है. तो पशुपतिनाथ जी को भी वैसा ही लगता हैं. मैं उनको कहता हूं कि इंद्र मनोवृत्ति से बाहर आइये.

आपने बन्ना गुप्ता पर प्रोत्साहन राशि लेने और दवा खरीद में गंभीर आरोप लगाये हैं. स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने भी आपके ऊपर मानहानि का मुकदमा दायर किया है. आपके पास क्या सबूत हैं कि घोटाला हुआ है?

चुनाव के बाद बन्ना जी ने मुझसे कहा था कि चाचा-भतीजा का अलग-अलग दायरा होना अच्छा है. उसके बाद से जब भी मैं उनके क्षेत्र जाता हूं, तो उनको लगता है कि मैं वहां से चुनाव लड़ना चाहता हूं. इसी वजह से उनका विरोध करता हूं. जमशेदपुर में फ्लाइओवर निर्माण की बात पर मैंने विकल्पों पर विचार कर जरूरत के मुताबिक काम करने को कहा था. बन्ना जी के कहने पर इंजीनियरों द्वारा बनाये डिजाइन को सही नहीं बताया था. उनको लगा कि मैं विरोध में कह रहा हूं. हालांकि, बाद में डिजाइन बदलना पड़ा. बन्ना गुप्ता अपने स्तर पर ही स्वास्थ्य विभाग में ट्रासंफर-पोस्टिंग कर रहे हैं. तय पे स्केल से ऊपर के अधिकारियों के तबादला के लिए मुख्यमंत्री, मंत्री और सचिव की समिति बननी चाहिए, लेकिन कार्यपालिका नियमावली का पालन किये बिना मंत्री तबादला कर रहे हैं. पति-पत्नी को नजदीक रखने की जगह पति को पाकुड़ और पत्नी को भवनाथपुर भेज रहे हैं. उनके यहां आलोक त्रिवेदी नाम के बड़े अधिकारी हैं. वह पहले खाद्य आपूर्ति विभाग में थे. उन्होंने बन्ना जी को कुछ कागजात दिये होंगे. बन्ना जी ने मुझसे कहा कि जब मैं मंत्री था, तो मैंने भी किया था. मैं कहता हूं कि मेरे समय के तबादले का रिकार्ड सदन के पटल पर रख दीजिए. विचार हो जाये कि कौन सही और कौन गलत है. अब दवा घोटाले की बात. अप्रैल 2022 में टेंडर में सबसे कम दाम कोट करनेवाली दवा कंपनियों को राज्य सरकार ने अनुबंध करने के लिए पत्र लिखा, लेकिन इसके बाद अचानक भारत सरकार की दवा कंपनियों से खरीद करने का फैसला कर लिया. सरकारी कंपनियों ने न तो टेंडर में हिस्सा लिया और ना ही वह कंपनियां कम कीमत पर दवाओं की आपूर्ति कर रही हैं. निजी कंपनियों की तुलना में दो से तीन गुनी अधिक कीमत पर सरकारी कंपनियां दवाएं बेच रही हैं. राज्य को एक ही दवा, दो कंपनियों से अलग-अलग कीमत पर मिल रही है. मेरा बन्ना गुप्ता पर कोई व्यक्तिगत आरोप नहीं था. दवा खरीद का निर्णय कैबिनेट का था. मैंने मामला सदन में उठाया. मैंने पूछा कि केंद्र ने भारत सरकार की कंपनियों से दवा खरीदने की सलाह दी है या बाध्यता निर्धारित की है? उन्होंने कहा कि बाध्यता है. मेरे पास रेलवे बोर्ड का पत्र है, जिसमें मंत्रालय ने लिखित दिया है कि सरकारी कंपनियों से दवाओं की खरीद करना अनिवार्य नहीं है. भारत सरकार की कंपनी ने एजेंट रखा है. राज्य को कम से कम उसका कमीशन काट कर कीमत तय करनी चाहिए थी. और तो और कांग्रेस के एक नेता हैं मानस सिन्हा. उनके पास उस सरकारी दवा कंपनी का सीएनएफ है, जिसे सरकार खरीद कर रही है. अब आगे आयेगा कि एलोपैथिक दवा बनाने वाली कंपनियों ने आयुर्वेदिक और होमियोपैथिक दवा की भी सप्लाई की. मेरे पास घोटाले का पूरा प्रमाण है. आगे और कमियां सामने आयेंगी. बन्ना मामला सुलझा सकते थे, लेकिन आगे जाकर वह अपनी परेशानियां ही बढ़ा रहे हैं.

आपने गंभीर आरोप लगाये हैं कि बन्ना गुप्ता को मुख्यमंत्री का संरक्षण प्राप्त है. यह कितना बड़ा घोटाला है, जो आप सत्ता शीर्ष पर आरोप लगा रहे हैं?

मैंने विधानसभा में कहा कि बन्ना जी पर मुख्यमंत्री के अधिकार का इस्तेमाल कर तबादला करने का आरोप लगा है. मुख्यमंत्री या स्पीकर फाइल मंगा कर देख लें. मैंने, विनोद सिंह और कुछ लोगों ने भी इस बारे में मुख्यमंत्री को चिट्ठी लिखी है, लेकिन मंत्री फाइल नहीं भेज रहे हैं. जब सदन में बात चल रही थी, तो मुख्यमंत्री भी वहीं थे. कहीं न कहीं मुख्यमंत्री से भूल हो रही है. हो सकता है कि उनको लगता होगा कि सहयोगी दल के मंत्री पर ज्यादा दबाव नहीं दे सकते हैं. नियमावली के मुताबिक तो कोई मंत्री भी किसी दूसरे विभाग की फाइल भी देख सकता है, लेकिन, यहां तो मुख्यमंत्री फाइल मांग रहे हैं और मंत्री नहीं दे रहे. राज्य में शासन की गीता, कुरान और बाइबल मानी जाने वाली कार्यपालिका नियमावली का मुख्यमंत्री के सामने उल्लंघन हो रहा है. अब मेरा मुख्यमंत्री को संरक्षण देना कहना नाजायज नहीं है. अगर संरक्षण नहीं भी है, तो भी मुख्यमंत्री अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर रहे हैं.

झारखंड में 1932 के खतियान का मामला बड़ा राजनीतिक एजेंडा है़ आपकी राय क्या है, झारखंडियों की पहचान का आधार क्या हो?

मुख्यमंत्री ने 1932 के खतियान की बात आगे बढ़ायी, तो मैंने उनसे मिल कर कहा, ट्वीटर पर भी कहा कि संविधान के प्रावधानों के मुताबिक यह संभव नहीं है. तब उन्होंने कहा कि हम इसे नौवीं अनुसूची में डलवाना चाहते हैं. उन्होंने गेंद भारत सरकार के पाले में डाल दी. 1932 लागू हो, 27 प्रतिशत आरक्षण हो जाये. तभी मैंने ट्वीटर पर कहा था कि सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच ने 2007 में आदेश दिया था कि 1973 के बाद नौंवी अनुसूची के फैसले की समीक्षा सुप्रीम कोर्ट कर सकता है. अब जब न्यायिक समीक्षा होनी है, तो मैंने सरकार को बड़े वकीलों से न्यायिक सलाह लेने का सुझाव दिया था. कहा था कि वरना मामला लटकेगा और हुआ भी वही. संविधान की परिधि के अंदर ही उछल-कूद करें. आप अधिकतम बेनीफिट अपने लोगों को दे सकते हैं. लेकिन, 100 प्रतिशत नहीं दे सकते हैं.

नियोजन नीति को लेकर भी हमेशा भ्रम की स्थिति बनी रहती है. व्यावहारिक नियोजन नीति कैसी हो?

मेरी व्यक्तिगत धारणा है कि 15 नवंबर 2000 को झारखंड अलग होने के पूर्व बिहार ही था. उसके पहले सभी बिहार के निवासी थे. तो वही दिन कट ऑफ डेट होना चाहिए. आप चाहें, तो बंधन लगा सकते हैं. आप यहां भी हैं, बिहार, यूपी और बंगाल में भी हैं, यह नहीं चलेगा. लोग वर्षों से यहां रह रहे हैं. कोई यहां 100 साल पहले आया है. टाटा की फैक्ट्री बनी. लोग बुला-बुला कर लाये गये. अब इतने दिनों से रह रहे लोगों को एक झटके में बाहर नहीं कर सकते हैं. वे जहां से आये थे, वहां भी अब उनकी जड़ खत्म हो गयी है. वो कहां जायेंगे. बुद्धिमत्ता और संविधान को परखने के बाद राज्य में स्थानीय को अधिक से अधिक सहूलियत देने का प्रयास होना चाहिए. संविधान ने देश में कहीं भी रहने की छूट दी है. लेकिन, यहां आप अच्छे हैं, लेकिन अपने नहीं हैं, की धारणा घर कर रही है. अच्छा होना और अपना होने का द्वंद्व ठीक नहीं होगा. यह विरोधाभास है. इसे कम करना चाहिए. यह पांचवीं अनुसूची का राज्य है. छठी अनुसूची का नहीं. व्यावहारिक चीजों को देख कर सबका प्रबंधन करना होगा. 1932 पर हेमंत का पीछे आना सराहनीय है. वो पीछे आयें हैं. लंबी छलांग ही लगायें. ऐसा कुछ न करें कि पाताल में चले जायें. और जब अब हेमंत ने पीछे लौटने की हिम्मत दिखायी, तो भाजपा उनको ठेल रही है कि आप आगे क्यों नहीं जा रहे हैं साहब. आप 1932 में क्यों नहीं जा रहे हैं? कहीं तो आम सहमति बनाने का प्रयास होना चाहिए. कई चीजों को मुख्यमंत्री ने बहुत अच्छी तरह से रखा है. उनकी प्रशंसा होना चाहिए.

इन दिनों सीबीआई, ईडी की सक्रियता बढ़ी है. भाजपा विरोधी दलों का कहना है कि इन एजेंसियों को केंद्र ने अपना हथियार बना लिया है, आपकी क्या राय है?

यह आरोप प्रथम दृष्टया सही भी लगता है, लेकिन दूसरी तरफ यह बात भी है क्या सीबीआइ और इडी बिना आधार और तथ्य के जा रही है? इडी और सीबीआइ को चीजें सही मिल रही हैं. प्रमाण मिल रहे हैं. देश में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा हो गया है. अब भ्रष्टाचार को स्वीकृति दिलाने की बात हो रही है. सदन में पक्ष-विपक्ष एक-दूसरे की पीठ सहलाने पर चर्चा कर रहे हैं. मुख्यमंत्री सदन में रघुवर सरकार के घोटालों का जिक्र कर रहे थे. तो जब जांच पूरी हो चुकी है. फाइलें आपके सामने हैं, तो कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है. पक्ष-विपक्ष की यह एकता बड़ी खतरनाक है. इसका असर सिस्टम पर पड़ रहा है. सरकार के अंदर व बाहर गलत कार्यों के लिए सिस्टम बनता जा रहा है. सभी अधिकारी जानते हैं कि कहां ट्रांसफर-पोस्टिंग की रणनीति बनती है. अधिकारी पहले से जानते हैं कि किसका कहां तबादला होना है. शासन चलाने के दो-तीन केंद्र बन गये हैं. शासन चलानेवालों को गुमराह कर गलत काम कराने की व्यवस्था बन गयी है. इसकी जानकारी मुख्यमंत्री को भी है. वह इस पर कार्रवाई करने से पता नहीं क्यों हिचक रहे हैं. पिछली सरकार में गलत करने वाले प्रोबेशन में थे. अब की सरकार ने उनको नियोजित कर लिया लगता है. पहले राजबाला वर्मा की सुपरविजन में नियंत्रित रूप से काम होता था. अब वही लोग प्रमोट हो गये हैं. सबकुछ वही तय कर रहे हैं. मैंने सबकुछ मुख्यमंत्री को बताया है. वह सबकुछ जान कर भी चुप हैं.

Prabhat Khabar News Desk
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