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झारखंड हाईकोर्ट ने कहा- मेन रोड में हुए उपद्रव की जांच क्यों न सीबीआइ को दे दी जाये

झारखंड हाइकोर्ट ने 10 जून को रांची के मेन रोड में हुए उपद्रव की जांच एनआइए से कराने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान सीआइडी जांच की प्रगति पर नाराजगी जतायी.

Jharhand High Court News: झारखंड हाइकोर्ट ने 10 जून को रांची के मेन रोड में हुए उपद्रव की जांच एनआइए से कराने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन और जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान सीआइडी जांच की प्रगति पर नाराजगी जतायी. खंडपीठ ने मौखिक रूप से कहा कि हिंसक उपद्रव की घटना की जांच के लिए पहले एसआइटी बनायी गयी. इसके बाद जांच सीआइडी को सौंपी गयी.

कौन सी प्रशासनिक अनिवार्यता कि एसएसपी का ट्रांसफर जरूरी

सीआइडी की जांच में किसी प्रकार की प्रगति नहीं दिख रही है. जब घटना को लेकर लगभग 31 एफआइआर दर्ज की गयी, तो सिर्फ एक केस को ही सीआइडी को ट्रांसफर क्यों किया गया? केस ट्रांसफर करने के लिए कौन सक्षम अधिकारी है? किसके आदेश पर एक केस ट्रांसफर किया गया है? शेष एफआइआर की जांच की क्या स्थिति है. ऐसे में क्यों नहीं इस मामले की जांच सीबीआइ को दे दिया जाये? खंडपीठ ने मौखिक रूप से पूछा कि सरकार के पास वह कौन सी प्रशासनिक अनिवार्यता थी, जिसके तहत घटना के समय वहां उपस्थित रांची के तत्कालीन एसएसपी सुरेंद्र झा का तबादला किया गया. उन्हें वेटिंग फॉर पोस्टिंग में रखा गया? इसके अलावा डेली मार्केट थाना प्रभारी जो घटना में घायल हो गये थे, उनके इलाजरत रहने के दौरान उनका ट्रांसफर किया गया. उक्त अवधि में किसी अन्य को डेली मार्केट थाना का प्रभारी बना कर रखना चाहिए था. स्वस्थ होने के बाद उन्हें फिर से डेली मार्केट थाना में ड्यूटी पर योगदान कराना चाहिए था. खंडपीठ ने मामले में तत्कालीन एसएसपी के तबादला से संबंधित फाइल प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. डेली मार्केट थाना प्रभारी के इलाज से संबंधित विवरण प्रस्तुत करने को कहा. यह भी कहा कि वर्ष 2010 से अब तक कितने मामले सीआइडी को जांच के लिए भेजा गया है. खंडपीठ ने घटना को लेकर दर्ज किये गये एफआइआर के बारे में विस्तृत जानकारी के साथ डीजीपी को पूरक शपथ पत्र दायर करने का निर्देश दिया.

प्रोन्नति पर रोक नहीं, सरकार के खुले हैं विकल्प

झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने सामान्य कैटेगरी के पदों पर एसटी-एससी अधिकारियों व कर्मियों को प्रोन्नति देने के मामले में कार्मिक विभाग के तीन जून 2022 के आदेश को चुनौती देनेवाली याचिका पर सुनवाई की. सुनवाई के दाैरान प्रार्थी, हस्तक्षेपकर्ता व राज्य सरकार का पक्ष सुनने के बाद अदालत ने तीन जून 2022 के आदेश पर लगायी गयी रोक को आगे नहीं बढ़ाया. इस पर कोई आदेश नहीं दिया. अदालत ने माैखिक रूप से कहा कि प्रोन्नति पर कोई रोक नहीं है. प्रोन्नति देने के लिए सरकार का विकल्प खुला हुआ है. सरकार प्रोन्नति देने के लिए आगे बढ़ सकती है. प्रतिवादी डीजीपी को जवाब दायर करने का निर्देश दिया. अगली सुनवाई के लिए अदालत ने आठ सितंबर की तिथि निर्धारित की. इससे पूर्व राज्य सरकार की अोर से अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने अदालत को बताया कि चार अगस्त के आदेश के कारण राज्य में प्रोन्नति पर रोक लग गयी है. उन्होंने कार्मिक के आदेश पर लगायी गयी रोक को हटाने का आग्रह किया. हस्तक्षेपकर्ता की अोर से अधिवक्ता सुभाशीष रसिक सोरेन ने पक्ष रखते हुए रोक को हटाने का आग्रह किया. प्रार्थी की अोर से अधिवक्ता दिवाकर उपाध्याय ने पैरवी की.

अधिवक्ता वीपी सिंह एमीकस क्यूरी नियुक्त

झारखंड हाइकोर्ट ने कोर्ट फीस में भारी वृद्धि करने के मामले में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई की. चीफ जस्टिस डॉ रवि रंजन व जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की खंडपीठ ने सुनवाई करते हुए वरीय अधिवक्ता विजय प्रताप सिंह को एमीकस क्यूरी नियुक्त किया. राज्य सरकार को जवाब दायर करने के लिए दो सप्ताह का समय प्रदान किया गया. मामले की अगली सुनवाई के लिए 23 अगस्त को होगी. इससे पूर्व प्रार्थी की अोर से अधिवक्ता राजेंद्र कृष्ण ने खंडपीठ को बताया कि कोर्ट फीस में वृद्धि से समाज के गरीब तबके के लोग कोर्ट नहीं आ पायेंगे. लोगों को सहज व सुलभ न्याय दिलाना संभव नहीं रहेगा. झारखंड में वकालतनामा पर फीस बढ़ाने का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है. यह अधिकार बार काउंसिल या बार एसोसिएशन को है.

विवाहित पुत्री भी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति पाने की हकदार

झारखंड हाइकोर्ट के जस्टिस डॉ एसएन पाठक की अदालत ने कहा है कि विवाहित पुत्री भी अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति पाने की हकदार हैं. अदालत ने अपने फैसले में कहा कि यदि कोई विवाहित महिला (पुत्री) मृतक पर पूरी तरह आश्रित है, तो उसे अनुकंपा का लाभ मिलना चाहिए. विवाहित लड़की कह कर नियुक्त नहीं करना लिंगभेद के दायरे में आता है. अदालत ने प्रतिवादी की उस दलील को खारिज कर दिया कि विवाहित लड़की को अनुकंपा के आधार पर नौकरी नहीं दी सकती है. अदालत ने प्रतिवादी झारखंड ऊर्जा विकास निगम को प्रार्थी रीता गिरि को उनकी मां के स्थान पर आठ सप्ताह के अंदर अनुकंपा के आधार पर नियुक्त करने का आदेश दिया.

पूर्व प्राचार्य की बेल पर सुनवाई 22 को

डीएवी कपिलदेव के पूर्व प्राचार्य एमके सिन्हा की जमानत पर 22 अगस्त को अपर न्यायायुक्त की अदालत में सुनवाई होगी. उनकी ओर से उनके अधिवक्ता ने प्रधान न्यायायुक्त की अदालत में जमानत याचिका दाखिल की थी़ न्यायायुक्त ने सुनवाई करते हुए याचिका को अपर न्यायायुक्त की अदालत में ट्रांसफर कर दिया़ स्कूल की महिला कर्मी ने 25 मई को मानसिक और शारीरिक शोषण का आरोप लगाते हुए पूर्व प्राचार्य मनोज कुमार सिन्हा के खिलाफ अरगोड़ा थाना में प्राथमिकी दर्ज करायी थी.

Prabhat Khabar News Desk
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