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संताली बिटिया रंजीता हेंब्रम कैसे बनीं अफसरों की लीडर, मां से मिले किस मंत्र से भर रहीं सफलता की उड़ान ?

मां, देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी का व्यक्तित्व और उड़ान सीरियल का रंजीता हेंब्रम के जीवन पर काफी असर पड़ा. वे इससे काफी प्रभावित हुईं और पढ़ाई के दौरान ही तय कर लिया था कि उन्हें अफसर बनना है. इसके लिए उन्होंने जी-तोड़ मेहनत की. सपना साकार हुआ और वे अफसर बनीं. आज अफसरों की लीडर बन गयी हैं.

रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा

International Women’s Day 2023: झारखंड की संताली बिटिया ने मां से मिले महिला सशक्तीकरण के मंत्र को अपने जीवन में उतारा और चुनौतियों का सामना करते हुए कामयाबी हासिल की. इस दौरान परिवार ने उनका हौसला बढ़ाया और आज अफसरों की लीडर भी बन गयी हैं. हम बात कर रहे हैं रंजीता हेंब्रम की. अफसर से कैसे ये अफसरों की लीडर बन गयीं ? घर-परिवार और ऑफिस के बीच कैसे समन्वय बनाकर कामयाबी की उड़ान भर रही हैं ? पढ़िए इनकी सफलता की कहानी.

महिला शिक्षा पर मां का रहता था जोर

बिहार के भागलपुर में पोस्टल डिपार्टमेंट से सेवानिवृत जॉन हेम्ब्रम और स्व. शशि तेरेसा सोरेन की बिटिया रंजीता हेंब्रम झारखंड संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा पर्षद (जेसीईसीईबी) में ओएसडी सह उपपरीक्षा नियंत्रक हैं. वे अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहती हैं कि उनकी मां लॉ ग्रेजुएट थीं. इसके बाद क्लास वन अफसर रहीं. वह महिला शिक्षा की प्रबल समर्थक थीं. वे न सिर्फ घर की बेटियों की शिक्षा के प्रति सजग रहती थीं, बल्कि आसपास की लड़कियों को भी प्रोत्साहित करती थीं. वे मानती थीं कि लड़कियां पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर बन गयीं, तो कई पीढ़ियां बेहतर हो सकती हैं. मायके के साथ-साथ ससुराल में भी बेटियों का मान बढ़ेगा. विपरीत हालात में भी वे हार नहीं मानेंगी. मां का उनके जीवन पर काफी प्रभाव पड़ा है.

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किरण बेदी व उड़ान सीरियल का जीवन पर प्रभाव

देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी के व्यक्तित्व और उड़ान सीरियल का इनके जीवन पर असर पड़ा. वे इससे काफी प्रभावित हुईं और पढ़ाई के दौरान ही तय कर लिया था कि उन्हें अफसर बनना है. इसके लिए उन्होंने जी-तोड़ मेहनत भी की. सपना साकार हुआ और वे अफसर बनीं.

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बीपीएससी की परीक्षा में थीं गर्ल्स टॉपर

झारखंड के संथाल (गोड्डा) की बिटिया रंजीता हेंब्रम 24 साल से प्रशासनिक सेवा में हैं. इशिता व ऋषिता इनकी जुड़वां बेटियां हैं. पति धीरेंद्र कुमार जीएसटी अफसर हैं. भूगोल से पीजी (स्नातकोत्तर) करने के बाद इन्होंने प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी कीं और बीपीएससी की परीक्षा में इनकी 8वीं रैंक थी और ये गर्ल्स टॉपर रही थीं. इनकी परवरिश बिहार के भागलपुर (नाथनगर) में हुई है.

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मां के मार्गदर्शन पर लीं झारखंड कैडर

वर्ष 1999 में प्रोबेशन पीरियड के बाद वर्ष 2000 में पटना में एग्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट के रूप में इनकी पहली पोस्टिंग हुई. कैडर बंटवारे के बाद 2003 में रांची के रातू में बीडीओ के रूप में पोस्टिंग हुई. झारखंड कैडर लेने में भी उनकी मां का ही मार्गदर्शन रहा. उनके सुझाव पर वे झारखंड आयीं. उनकी मां की सोच थी कि वहां जनजातीय समुदाय के बीच सेवा देने का काफी अवसर है.

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इंदिरा आवास की महिला लाभुकों को देने लगीं राशि

रातू में बीडीओ के रूप में उन्होंने महिला सशक्तीकरण की पहल की. इंदिरा आवास में वे पुरुष लाभुकों की बजाय महिला लाभुकों को राशि देने लगीं, ताकि वे आर्थिक रूप से सशक्त होने का अहसास करने लगें. अपना मकान होने का उन्हें आभास हो. इतना ही नहीं, वे फील्ड में जातीं तो महिलाओं से सीधा संवाद करती थीं. इससे वे खुलकर उनसे बात करती थीं. ब्लॉक ऑफिस में भी बिचौलियों की बजाए सीधे लाभुकों से संवाद करती थीं.

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घर और ऑफिस के बीच ऐसे बिठाती हैं सामंजस्य

आत्मविश्वास से लबरेज व जिद्दी स्वभाव की रंजीता कहती हैं कि वे ठान लेती हैं, तो करने के बाद ही मानती हैं. उनका मानना है कि संवादहीनता से ही परेशानियां बढ़ती हैं. परिवार हो या ऑफिस. सीधा संवाद हो, तो कई समस्याओं का हल निकल जाता है. घर और ऑफिस के बीच सामंजस्य का यही मूलमंत्र है. वे इसे फॉलो करती हैं. घर-परिवार से भी उन्हें पूरा सपोर्ट मिलता है. सीनियर अफसर से भी काफी सहयोग मिलता है.

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महिला सशक्तीकरण का मंत्र

महिला सशक्तीकरण पर रंजीता कहती हैं कि बेटियों को इज्जत दें. शिक्षित बनाएं. स्नेह और संस्कार भी दें. बेटियों को स्वावलंबी बनाएं. इसके साथ ही मांओं को बेटों को भी संस्कारी बनाने की जरूरत है. महिलाओं को आर्थिक रूप से संपन्न बनाया जाए और कौशल विकास की योजनाओं से जोड़ा जाए. बेटियों को मौका दें, तो वे जरूर नाम रोशन करेंगी. वे कहती हैं कि घर-परिवार ने उनका काफी साथ दिया है. पति से उन्हें हमेशा प्रोत्साहन मिलता है. उन्हीं के कहने पर वे झारखंड प्रशासनिक सेवा संघ का चुनाव लड़ीं और अध्यक्ष बनीं. इससे पहले वे चुनाव लड़ने के बारे में सोची भी नहीं थीं. उनकी सफलता में परिवार का अहम रोल है.

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झासा की पहली महिला अध्यक्ष

झारखंड में झारखंड प्रशासनिक सेवा संघ (झासा) 2001 से कार्यरत है. रंजीता झासा की 9वीं और पहली महिला अध्यक्ष हैं. इसमें करीब 1200 सदस्य हैं. वह कहती हैं कि महिला पदाधिकारियों को सीसीएल (चाइल्ड केयर लीव) के तहत 2 साल का अवकाश दिया जाना चाहिए. बिहार, यूपी समेत देश के कई राज्यों में ये लागू है, लेकिन झारखंड में ये अब तक लागू नहीं किया गया है. राज्य सरकार से इस संदर्भ में मांग की गयी है.

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