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कोमालिका बारी : तीरंदाज बिटिया के लिए गरीब पिता ने बेच दिया था घर, अब ऐसे देश की शान बढ़ा रही गोल्डन गर्ल

आदिवासी बिटिया कोमालिका बारी कहती हैं कि शुरुआत के दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. परिवार को आर्थिक परेशानियों से जूझना पड़ा. विपरीत हालात में भी परिवार ने मेरा साथ दिया. पापा ने मेरे सपनों को पूरा करने के लिए घर तक दांव पर लगा दिया था. अभी भी मेरा परिवार रेंट के मकान में रहता है.

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रांची, गुरुस्वरूप मिश्रा

कोमालिका बारी (komalika bari). झारखंड के जमशेदपुर की आदिवासी बिटिया. छोटी उम्र में बड़ी कामयाबी. बचपन से ही लकड़ी से धनुष बनाकर खेलने वाली बिटिया छोटे शहर से विश्व स्तर पर तीरंदाजी (Archery) में डंका बजाएगी, किसी को यकीन नहीं था. पिता घनश्याम बारी ने भी सपने में नहीं सोचा था कि कोमालिका तीरंदाजी में करियर बनाकर विश्व में नाम रोशन करेगी. वह तो उसे बस फिट रखना चाहते थे. साधारण परिवार की ये बिटिया रोज 10 किलोमीटर साइकिल चलाकर प्रैक्टिस करने जाती थी. इसी जिद व जुनून को देखकर उसके पिता ने तीरंदाज बिटिया के लिए अपना घर तक दांव पर लगा दिया. पढ़िए कैसे आज गोल्डन गर्ल देश की शान बढ़ा रही है.

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झारखंड के बिरसानगर (जमशेदपुर) में घनश्याम (Ghanshyam Bari) व लक्ष्मी बारी (Laxmi Bari) के घर 5 फरवरी 2002 को जन्मी कोमालिका ने तीरंदाजी में बड़ी लकीर खींची है. माता-पिता के संघर्ष, अपनी जिद व जुनून से उसने ये साबित किया कि लड़कियों को मौका मिले, तो वे भी लड़कों से कम नहीं हैं. साधारण परिवार से होकर भी उसने सपने सच किए. पिता घनश्याम ने हर कदम पर उसका साथ दिया. विपरीत हालात में भी वे उसके साथ रहे. कोमालिका ने भी उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने में कोई कसर नहीं छोड़ी.

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जमशेदपुर के ग्रेजुएट कॉलेज (Graduate College, Jamshedpur) से ग्रेजुएशन कर चुकी 20 साल की कोमालिका का 4 सदस्यों का छोटा सा परिवार है. उसके परिवार में मां लक्ष्मी बारी, पिता घनश्याम बारी व छोटा भाई महेंद्र बारी (14 वर्ष) हैं. मां लक्ष्मी बारी पहले आंगनबाड़ी सेविका थीं. अभी सहिया (स्वास्थ्य विभाग) के रूप में कार्य कर रही हैं. ये हॉकी खिलाड़ी रह चुकी हैं. पिता घनश्याम बारी एलआईसी एजेंट (LIC Agent) हैं. इन्होंने पहले मुर्गी फार्म खोला था. फिर होटल भी चलाया. फिलहाल एलआईसी एजेंट के रूप में कार्य कर रहे हैं. बिटिया के लिए उन्होंने काफी संघर्ष किया. पिता घनश्याम बारी कहते हैं कि कोमालिका बचपन में सर्दी-खांसी से हमेशा परेशान रहती थी. लिहाजा वे चाहते थे कि उनकी बिटिया खेले और स्वस्थ (Fitness) रहे. बचपन से ही कोमालिका का तीर-धनुष से काफी लगाव था. घर में पड़ी लकड़ी से तीर-धनुष बनाकर वह खेलती रहती थी. बीमार रहने के बावजूद वह लकड़ी से धनुष बनाकर प्रैक्टिस करती रहती थी.

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कोमालिका के पिता घनश्याम बताते हैं कि बचपन से तीरंदाजी का जुनून देखकर ही पहली बार 5 हजार रुपये में बांस से बना धनुष खरीदकर उसे दिया था. इसके बाद वह बांस के धनुष से ही प्रतियोगिता की तैयारी करने लगी.

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ISWP (तार कंपनी) तीरंदाजी सेंटर से कोमालिका ने 2012 में अपने करियर की शुरुआत की. कोच सुशांतो पात्रो बताते हैं कि 2012 में तार कंपनी स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में समर कैंप का आयोजन किया गया था. इसमें शिक्षा निकेतन की छात्रा के रूप में कोमालिका बारी शामिल हुई थी. वह प्रैक्टिस करने के लिए रोजाना 10 किलोमीटर साइकिल चलाती थी. पहले अकेले आती थी, बाद में अपने चचेरे भाई राजकुमार बारी के साथ आने लगी. एक महीने का समर कैंप खत्म हो गया. इसके बावजूद कोमालिका ने प्रैक्टिस जारी रखी और इस तरह वह तीरंदाजी सेंटर की रेग्यूलर ट्रेनी बन गयी थी. पिता घनश्याम बताते हैं कि 10 वर्ष की उम्र से उसने तीरंदाजी की प्रैक्टिस शुरू की थी. धीरे-धीरे आगे बढ़ती गयी.

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तीरंदाज बिटिया कोमालिका को राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में शामिल होने के लिए जिस धनुष (BOW) की जरूरत थी, वह काफी महंगी थी. साधारण परिवार से ताल्लुक रखने वाले घनश्याम ने बिटिया के सपनों को पूरा करने के लिए पूरा जोर लगाया. चारों तरफ मदद की भीख मांगी. समाज में हर तरह से आर्थिक मदद की गुहार लगायी, ताकि बिटिया के सपनों को पंख दे सकें, लेकिन इन्हें निराशा हाथ लगी. मजबूरन घनश्याम व लक्ष्मी (मां-पिता) ने तय किया कि अब वे अपना घर ही बेच देंगे और बिटिया की तरक्की की राह आसान करेंगे. आखिरकार उन्होंने अपना मकान बेच दिया और रेंट (किराया) के मकान में रहने लगे. आज भी वे रेंट में ही रह रहे हैं.

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कोमालिका मिनी व सब जूनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में शानदार प्रदर्शन करती रही. चार साल बाद 2016 में टाटा आर्चरी एकेडमी (Tata Archery Academy) में उसका चयन हो गया. विपरीत हालात में कोमालिका के महंगे धनुष (आर्चरी) की खातिर पिता घनश्याम ने जैसे ही घर बेचा और रुपये लिए, वैसे ही कुछ दिनों बाद इन्हें कोमालिका के टाटा आर्चरी एकेडमी में चयन होने की जानकारी मिली. यहां उसे सभी सुविधाएं मिलने लगीं. घर बेचकर मिला पैसा अब इनके पास ही रह गया. इनके हौसले से पहाड़ सी परेशानी चुटकी में दूर हो गयी. हालांकि घर बेचने का इन्हें मलाल रहा कि वक्त पर मदद मिल जाती तो इन्हें अपना घर नहीं बेचना पड़ता. खुशी इस बात की भी रही कि अब बिटिया कोमालिका की राह का रोड़ा दूर हो गया.

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टाटा आर्चरी एकेडमी में शुरुआत के दिनों में कोमालिका को मन नहीं लग रहा था. इसी दौरान तीरंदाज सानिया शर्मा से उसकी दोस्ती हुई, तो दोनों साथ में तीरंदाजी करने लगीं. धीरे-धीरे अच्छा प्रदर्शन करने से यह शौक करियर बन गया. द्रोणाचार्य पुरस्कार से पुरस्कृत कोच पूर्णिमा महतो (Poornima Mahto) और धर्मेंद्र तिवारी (Dharmendra Tiwari) के मार्गदर्शन में कोमालिका की प्रतिभा निखरी. एक के बाद एक मेडल जीतकर कोमालिका ने मां-पिता के सपनों को साकार करना शुरू कर दिया और देश का नाम रोशन करने लगी. इसके साथ ही विश्व पटल पर छा गयी.

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स्पेन में आयोजित विश्व युवा तीरंदाजी चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने की खबर सुनते ही घनश्याम बारी व लक्ष्मी बारी की खुशी का ठिकाना नहीं था. उनके चेहरे की चमक बढ़ गयी थी. बिटिया पर फख्र हो रहा था. गोल्डन गर्ल कोमालिका के शानदार प्रदर्शन से उनका सीना चौड़ा हो गया था.

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कोमालिका बारी ने विश्व युवा तीरंदाजी चैंपियनशिप के रिकर्व कैडेट वर्ग में स्वर्ण पदक जीता है. अंडर-18 वर्ग में विश्व चैंपियन बननेवाली वे भारत की दूसरी तीरंदाज हैं. 2019 में स्पेन की राजधानी मैड्रिड में विश्व युवा तीरंदाजी चैंपियनशिप के रिकर्व कैडेट (अंडर-18) वर्ग के फाइनल में उसने इतिहास रचा. कोमालिका ने जापान की वाका सोनोडा को हराकर महिला कैडेट रिकर्व श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता था. 41वीं जूनियर रिकर्व में कोमालिका ने झारखंड को चैंपियन बनाने में मुख्य भूमिका निभायी थी. कोमालिका ने इंडिविजुअल में स्वर्ण पदक, रैंकिंग 70 प्लस 70 मीटर में स्वर्ण पदक, टीम इवेंट में स्वर्ण पदक और मिक्स्ड टीम इवेंट में गोल्ड मेडल जीता था.

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आदिवासी बिटिया कोमालिका बारी कहती हैं कि शुरुआत के दिनों में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा. परिवार को आर्थिक परेशानियों से जूझना पड़ा. विपरीत हालात में भी परिवार ने मेरा साथ दिया. पापा ने मेरे सपनों को पूरा करने के लिए घर तक दांव पर लगा दिया था. अभी भी मेरा परिवार रेंट (किराया) के मकान में रहता है. टाटा आर्चरी एकेडमी ज्वाइन करते ही उन्हें सुविधाएं मिलने लगी थीं. इससे उन्हें राहत मिली. उनका खेल में प्रदर्शन भी धीरे-धीरे बेहतर होता चला गया.

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कोमालिका कहती हैं कि प्रतिभा हो तो आगे बढ़ना ज्यादा मुश्किल नहीं है. गरीबी अब उतनी बाधक नहीं है. पहले आर्चरी एकेडमी समेत अन्य सुविधाएं इतनी नहीं थीं.‍ अब सरकार के स्तर पर भी तीरंदाजों को काफी मदद मिल रही है. तीरंदाजी से जुड़ी कई संस्थाएं भी मदद करती हैं. कोमालिका बताती हैं कि मैट्रिक के वक्त वह ट्रायल दे रही थीं. उस वक्त उनके पापा ने कहा था कि ट्रायल दे दो, नहीं होने पर पढ़ाई पर फोकस करना. वह कहती हैं कि उसी वक्त उन्होंने ठान लिया था कि अब तो आर्चरी (तीरंदाजी) ही करनी है. सेलेक्शन के बाद से वह लगातार खेल पर फोकस कर रही हैं और आगे बढ़ रही हैं.

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कोच पूर्णिमा महतो कहती हैं कि टाटा आर्चरी एकेडमी में जब कोमालिका आयी, तो शुरुआत में वह बेहतर नहीं कर पा रही थी. खेल पर पूरा फोकस करने और बताए गए टिप्स फॉलो करने के बाद धीरे-धीरे अपना प्रदर्शन बेहतर करती चली गयी. आर्चरी में इंटेलीजेंट होना बेहद जरूरी है. एक खिलाड़ी के लिए अप एंड डाउन में धैर्य रखना जरूरी है. इसी पर खिलाड़ी का प्रदर्शन टिका होता है. कोमालिका में काफी संभावनाएं हैं. अभी उसे काफी कुछ करना है.

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