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Ranchi News : दिल के टुकड़े को चाहिए सिर्फ प्यार और परवाह

हर वर्ष सात नवंबर को इंफेंट प्रोटेक्शन डे यानी नवजात शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है.

::::: दिल के टुकड़े को चाहिए सिर्फ प्यार और परवाह

::: नवजात शिशु संरक्षण दिवस आज. नियमित टीकाकरण, सुरक्षित वातावरण, स्वास्थ्य जांच है जरूरी::: स्क्रीन टाइम नवजात बच्चों के लिए हानिकारक, मस्तिष्क और वाणी विकास में आ सकती है बाधा

::: टीकाकरण, स्वच्छता और मां का दूध ही बच्चे की पहली सुरक्षारांची.) हर वर्ष सात नवंबर को इंफेंट प्रोटेक्शन डे यानी नवजात शिशु संरक्षण दिवस मनाया जाता है. इस दिवस का उद्देश्य नवजात शिशुओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना है. विशेषज्ञों का कहना है कि शिशुओं की सेहत के साथ-साथ उनके मानसिक विकास का ध्यान रखना भी अभिभावकों की जिम्मेदारी है. खास तौर पर शिशुओं को मोबाइल और अन्य स्क्रीन से दूर रखना बेहद जरूरी है. जन्म के तुरंत बाद ही कई अभिभावक शिशुओं को मोबाइल स्क्रीन से जोड़ देते हैं. कभी वीडियो कॉल पर दिखाने के लिए, तो कभी उन्हें शांत कराने या खिलाने के लिए कार्टून या गाने चलाकर. चिकित्सकों के अनुसार ऐसा करने से शिशुओं के शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

ठंड में नवजात की देखभाल जरूरी

ठंड के मौसम में नवजात अपने शरीर का तापमान नियंत्रित नहीं कर पाते, इसलिए उन्हें गर्म कपड़े पहनाना चाहिए. बिस्तर को हल्का गर्म रखें, लेकिन गर्म पानी की बोतल या हीटिंग पैड शिशु के सीधे संपर्क में न आये. कमरे का तापमान 20-22 डिग्री सेल्सियस रखें. इस मौसम में बार-बार नहलाने से बचें. मां का दूध पिलाते रहें, क्योंकि यह शिशु को आवश्यक पोषण और प्रतिरक्षा प्रदान करता है.

मालिश से होता है संपूर्ण विकास

नवजात की नियमित मालिश न सिर्फ उसके शरीर को मजबूत बनाती है, बल्कि मानसिक विकास में भी सहायक होती है. मालिश से रक्त संचार बढ़ता है, मांसपेशियों को बल मिलता है और नींद बेहतर होती है. विशेषज्ञों के अनुसार, दिन में एक या दो बार हल्के गर्म तेल से मालिश करना पर्याप्त है.

नवजात शिशु संरक्षण दिवस का उद्देश्य

शिशु मृत्यु दर को कम करना.

शिशु को उचित पोषण और स्वास्थ्य सुविधा प्रदान करना.

माता-पिता को शिशु देखभाल और टीकाकरण के प्रति जागरूक बनाना.

टीकाकरण है नवजात की पहली सुरक्षा ढाल

टीकाकरण नवजात की सुरक्षा का सबसे अहम कदम है. यह उन्हें कई गंभीर बीमारियों से बचाता है. चिकित्सकों के अनुसार, जन्म से लेकर एक वर्ष की आयु तक शिशु को बीसीजी, ओपीवी, हेपेटाइटिस-बी, डीटीपी, हिब, रोटावायरस, पीसीवी, एमएमआर, वैरिकेला और टीपीवी जैसे टीके समय पर लगवाना बेहद जरूरी है. डॉक्टरों का कहना है कि टीकाकरण का समय सारणी क्षेत्र के अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती है, इसलिए हमेशा शिशु रोग विशेषज्ञ की सलाह लेनी चाहिए. समय पर लगाया गया टीका बच्चे के भविष्य की सुरक्षा सुनिश्चित करता है.

नवजात के लिए टीकाकरण सबसे महत्वपूर्ण

बीसीजी टीका : जन्म के तुरंत बाद, तपेदिक (टीबी) से बचाव.

ओपीवी टीका : जन्म के तुरंत बाद, पोलियो से बचाव.

हेपेटाइटिस बी टीका : जन्म के तुरंत बाद, हेपेटाइटिस बी से बचाव.

डीटीपी टीका : छह, 10 और 14 सप्ताह पर, डिप्थीरिया, टिटनस और पर्टुसिस से बचाव.

हिब टीका : छह, 10 और 14 सप्ताह पर, हेमोफिलस इन्फ्लुएंजा टाइप बी से बचाव.

रोटावायरस टीका : छह और 10 सप्ताह पर, रोटावायरस संक्रमण से बचाव.

पीसीवी टीका : छह, 10 और 14 सप्ताह पर, न्यूमोकोकल संक्रमण से बचाव.

एमएमआर टीका : नौ महीने की आयु में, मीजल्स, मम्प्स और रूबेला से बचाव.

वैरिकेला टीका : नौ महीने की आयु में, चिकनपॉक्स से बचाव.

टीपीवी टीका : नौ महीने की आयु में, टाइफाइड से बचाव.

(बाल रोग विशेषज्ञों के अनुसार, टीकाकरण सूची क्षेत्र के अनुसार थोड़ी भिन्न हो सकती है, इसलिए चिकित्सक की सलाह अवश्य लेनी चाहिए.)

स्क्रीन टाइम बन रहा है नयी पीढ़ी के लिए खतरा

तकनीकी युग में सबसे बड़ी चुनौती है शिशुओं को स्क्रीन से दूर रखना. आजकल जन्म के कुछ ही दिनों बाद बच्चे को मोबाइल की स्क्रीन पर दिखाया जाने लगा है. कुछ माता-पिता बच्चों को शांत कराने या खिलाने के लिए मोबाइल पर गाने या कार्टून चलाते हैं. विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह आदत बेहद हानिकारक है. अधिक स्क्रीन टाइम से नवजात की आंखों पर दबाव पड़ता है, नींद प्रभावित होती है और मस्तिष्क के विकास की प्रक्रिया धीमी हो जाती है. भाषा विकास में भी देरी होती है.

स्क्रीन टाइम की अनुशंसित सीमा

शून्य से दो वर्ष के शिशुओं के लिए कोई भी स्क्रीन टाइम नहीं.

दो से पांच वर्ष के बच्चों के लिए एक घंटे से कम.

माता-पिता इन बातों का रखें ध्यान

शिशु के लिए मां का दूध सर्वोत्तम आहार है, जो आवश्यक पोषक तत्व और प्रतिरक्षा प्रदान करता है.

टीकाकरण समय पर कराएं ताकि गंभीर बीमारियों से बचाव हो सके.

शिशु की स्वच्छता का विशेष ध्यान रखें, हाथ धोना, साफ कपड़े पहनाना और वातावरण को स्वच्छ रखना आवश्यक है.

घर में सुरक्षा उपकरणों जैसे बेबी गेट्स आदि का उपयोग करें.

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क्या कहते हैं शिशु रोग विशेषज्ञ

शिशुओं की सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए जागरूकता बहुत जरूरी है. समय पर टीकाकरण और स्क्रीन टाइम से बचाव से बच्चों का स्वस्थ विकास संभव है. जीरो से एक वर्ष तक के शिशुओं के सामने मोबाइल का स्क्रीन बिल्कुल नहीं लाना चाहिए.

डॉ अनिताभ, शिशु रोग विशेषज्ञ

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आजकल कई अभिभावक बच्चों को शांत कराने या खिलाने में मोबाइल का सहारा लेते हैं. इससे बच्चों के ब्रेन और स्पीच डेवलपमेंट पर नकारात्मक असर पड़ता है. नवजात पूरी तरह माता-पिता पर निर्भर होते हैं, इसलिए जिम्मेदारी भी उन्हीं की है.

डॉ अमित मोहन, शिशु रोग विशेषज्ञ

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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