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झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में बदहाल हुई स्वास्थ्य व्यवस्था, क्या ऐसे जीतेंगे कोरोना से जंग

कोरोना की जंग में जब अस्पतालें हीं एक-एक कर बीमार होकर बंद होने लगे तो आम जनता व मरीज किसके भरोसे रह अपनी जीवन बचाये ! यह बडा़ सवाल जनता, सरकार एंव स्वास्थ्य विभाग के सामने यक्ष बनकर खडा़ है. लौहांचल एंव सारंडा में चिकित्सा सुविधा की बदतर हालातों के लिये आखिर जिम्मेदार कौन है .

किरीबुरु (शैलेश सिंह) : कोरोना की जंग में जब अस्पतालें हीं एक-एक कर बीमार होकर बंद होने लगे तो आम जनता व मरीज किसके भरोसे रह अपनी जीवन बचाये ! यह बडा़ सवाल जनता, सरकार एंव स्वास्थ्य विभाग के सामने यक्ष बनकर खडा़ है. लौहांचल एंव सारंडा में चिकित्सा सुविधा की बदतर हालातों के लिये आखिर जिम्मेदार कौन है !

उल्लेखनीय है कि सारंडा एंव लौहांचल में सेल की आधा दर्जन खादानों समेत दर्जनों प्राईवेट लौह अयस्क की खादानों से प्रतिवर्ष सैकड़ों करोड़ों रूपये जिला प्रशासन द्वारा बनाई गई विशेष प्रकार की डीएमएफटी फंड में भेजी जाती है. पश्चिम सिंहभूम जिला स्थित सिर्फ सेल की किरीबुरु, मेघाहातुबुरु, गुवा एंव चिडि़या खादान प्रबंधन प्रतिवर्ष लगभग तीन सौ करोड़ रूपये डीएमएफटी फंड को देते आ रही है. इसके अलावे सारंडा की अन्य प्राईवेट कंपनियां भी अपना-अपना हिस्से का पैसा डीएमएफटी फंड में वर्ष 2011-12 से जमा कराते आ रही है.

इन पैसों को डीएमएफटी फंड में जमा कराने का मुख्य उद्देश्य यह है कि खादान से प्रभावित क्षेत्र के गांवों में बेहतर चिकित्सा, शिक्षा, पेयजल, यातायात, बिजली, स्वच्छता, रोजगार आदि क्षेत्रों में व्यापक विकास कार्य हो. लेकिन दुख की बात यह है कि डीएमएफटी फंड में जमा हजारों करोड़ रूपये से अबतक सारंडा, लौहांचल अथवा जिले में एक भी सुपर स्पेशलिटी सरकारी अस्पताल, सारी सुविधाओं से लैश कालेज आदि का निर्माण नहीं कराया जा सका. सरकारी अस्पतालें चिकित्सकों व मेडिकल स्टाफ की भारी कमी की समस्या से जूझ रही है.

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सारंडा में डीएमएफटी फंड से अबतक जो विकास योजनाएं प्रारम्भ की गई है उसमें से अधिकतर योजनाएं आज तक पूर्ण नहीं हो पाई है. योजनाओं का प्राक्लन ठेकेदारों व अधिकारियों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से तैयार किया जाता रहा है जिसको लेकर तमाम राजनीतिक व अन्य संगठन सवाल उठाते रहे हैं. इतने पैसे डीएमएफटी फंड में देने के बावजूद सारंडा एंव लौहांचल की जनता सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु, गुआ, चिडि़या, बोलानी की अस्पतालों पर अपनी जान बचाने हेतु निर्भर है या देखती है क्योंकि उनके पास दूसरा अन्य कोई विकल्प हीं नहीं है. बडा़जामदा स्थित सीएचसी एंव शेष अस्पताल तथा छोटानागरा का सरकारी अस्पताल की स्थिति किसी से छुपा हुआ नहीं है.

वर्तमान हालात व स्थिति में सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु जेनरल अस्पताल, गुवा एंव बोलानी अस्पताल आज कोरोना मामले को लेकर लगभग बंद की स्थिति में है और वह इमरजेंसी सेवा को छोड़ मरीजों का इलाज करने से हाथ खडा़ कर दिया है. ऐसी स्थिति में आखिर क्षेत्र के मरीज अपना इलाज कराये तो कहां कराये, या फिर वनऔषधि या अंध विश्वास का सहारा ले !

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सारंडा व लौहांचल के सैकड़ों संदिग्ध मरीजों का कोरोना जाँच कराना है जिसके लिये तमाम शहरों में संदिग्धों की सूची भी स्वास्थ्य सेवा से जुड़े लोग बनाकर रखे हुये हैं जिसकी सेंपल तक नहीं लिया जा पा रहा है. जो सेंपल लेकर एमजीएम भेजा जा रहा है उसका रिपोर्ट आने में पंद्रह दिन लग रहे हैं. यह प्रभात खबर नहीं बल्कि बडा़जामदा सीएचसी प्रभारी बीके सिन्हा का कहना है. ऐसी स्थिति में लौहांचल की स्वास्थ्य व्यवस्था और चरमरा सकती है.

सेल असपतालों का हाल

1. सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु जेनरल सह रेफरल अस्पताल- कोरोना मरीज मिलने के बाद एक सौ बेड क्षमता वाली इस अस्पताल का ओपीडी 31 जुलाई से दो अगस्त तक बंद रहा. वर्तमान में बाहरी या अन्य मरीजों को अस्पताल में भर्ती, रक्त जाँच आदि की सुविधा अनिश्चित काल के लिये बंद कर दी गई है. सिर्फ नाम के लिये इमरजेंसी सेवा व ओपीडी सेवा बहाल है.

2. सेल की गुवा अस्पताल- पचास-साठ बेड क्षमता वाली इस अस्पताल में कोरोना मरीज मिलने के बाद अस्पताल को पांच दिन के लिये बंद कर दिया गया है. अर्थात इस अस्पताल में इमरजेंसी सेवा को छोड़ सात अगस्त से बारह अगस्त तक सभी सेवायें बंद रहेगी. इसकी पुष्टि अस्पताल के सीएमओ डा0 सीके मंडल ने की है.

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3. सेल की बोलानी अस्पताल- पचास बेड क्षमता वाली इस अस्पताल में कोरोना मरीज मिलने के बाद उडी़सा स्वास्थ्य विभाग व प्रशासन ने इस अस्पताल को चार अगस्त से अठारह अगस्त (चौदह दिन) तक के लिये बंद कर दिया गया है. सिर्फ इमरजेंसी सेवा बहाल रखा गया है. बोलानी प्रबंधन के अधिकारी सूत्र ने यह जानकारी दी है.

सवाल यह है कि कोरोना की वजह से जब क्षेत्र के सभी अस्पतालों को लंबे समय के लिये बंद कर दिया जाये तो फिर आम मरीजों के इलाज हेतु सरकार, स्वास्थ्य विभाग और प्रशासन के पास वैकल्पिक क्या व्यवस्था है. जबकि सेल की किरीबुरु-मेघाहातुबुरु जेनरल अस्पताल में 32 बेड का कोविड एंव आइसोलेशन वार्ड समेत सेल की अन्य अस्पतालों भी अलग से वार्ड प्रारम्भ में हीं बनाया गया था और इस समस्या का सामना करने हेतु चिकित्सकों व लैब तकनीशियन को अलग से विशेष प्रशिक्षण भी दिया गया था. जबकि यह होना चाहिए था कि कोरोना मरीज मिलने के बाद दो-तीन दिन के अन्दर अस्पताल को सेनेटाईज व अस्पताल के तमाम लोगों का कोरोना जांच कर कोरोना के बचाव हेतु पीपीई कीट समेत तमाम सावधानी अपनाते हुये अस्पताल की चिकित्सा व्यवस्था नियमित चालू रखा जाना चाहिए था.

Posted By: Pawan Singh

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