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झारखंड में 1932 ही होगा स्थानीयता का आधार, पर कोल्हान में 64 का सर्वे भी होगा शामिल

स्थानीय नीति व ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मसौदा सरकार तैयार कर रही है. 11 नवंबर को सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर दोनों ही प्रस्ताव को पारित करेगी.

रांची: स्थानीय नीति व ओबीसी को 27 प्रतिशत आरक्षण देने का मसौदा सरकार तैयार कर रही है. 11 नवंबर को सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुला कर दोनों ही प्रस्ताव को पारित करेगी. गुरुवार को स्थानीयता और ओबीसी आरक्षण से जुड़े बिल का खाका तैयार करने को लेकर यूपीए के मंत्री व विधायकों की बैठक हुई़ इसमें दोनों ही मुद्दों पर चर्चा के लिए एक कमेटी बनायी गयी. कमेटी ने तय किया है कि पूरे राज्य में 1932 के सर्वे को ही स्थानीयता की पहचान के लिए आधार वर्ष माना जायेगा.

जिन जगहों पर 1932 के पूर्व सर्वे हुआ है उसे भी शामिल किया जायेगा़ कोल्हान व सारंडा में हुए 1964 के सर्वे को भी इसमें शामिल किया जायेगा. कमेटी ने भूमिहीन मूलवासियों को भी स्थानीयता की परिधि में लाने का सुझाव दिया है. वैसे गांव जहां ग्रामसभा सक्षम या गठित नहीं है, वैसी स्थिति में सरकार को इसका समाधान निकालने के लिए कहा गया है.

आदिम जनजाति स्वाभाविक तौर पर होंगे स्थानीय :

राज्य के आदिम जनजातियों को स्वाभाविक तौर पर स्थानीय माना जायेगा. इनके लिए खतियान की आवश्यकता नहीं होगी. कमेटी का मानना है कि ज्यादातर आदिम जनजातियां भूमिहीन हैं. इनके पास खतियान नहीं है. इसके साथ ही एसटी की ऐसी जातियां जिनके पास खतियान नहीं है और वह जंगलों में रहते हैं, तो उनके वन पट्टा को आधार माना जा सकता है.

दोनों प्रस्ताव केंद्र को भेजेंगे :

विस से दोनों ही प्रस्तावों को पारित कर नौवीं अनुसूची के तहत केंद्र सरकार को अनुशंसा की जायेगी. केंद्र से झारखंड को विशेष राज्य के तहत दोनों ही प्रावधानों को लागू कराने की मांग की जायेगी. राज्य सरकार ने कानूनी पेंच समाप्त करने के लिए दोनों प्रस्ताव को केंद्र के पाले में डालने का फैसला किया है.

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