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अंतिम सांसें गिन रहे मरीजों से भी पैसे निचोड़ लेते हैं अस्पताल

राजीव पांडेय कैंसर मरीजों को भी नहीं छोड़ते, वसूल लेते हैं दवा की मनमानी कीमत रांची : दवा से करोड़ों की कमाई करनेवाले राज्य के बड़े व कॉरपोरेट अस्पतालों का दिल गंभीर रूप से बीमार कैंसर के मरीजों पर भी नहीं पसीजता है.जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे ऐसे मरीजों से दवा की मनमानी कीमत […]

राजीव पांडेय
कैंसर मरीजों को भी नहीं छोड़ते, वसूल लेते हैं दवा की मनमानी कीमत
रांची : दवा से करोड़ों की कमाई करनेवाले राज्य के बड़े व कॉरपोरेट अस्पतालों का दिल गंभीर रूप से बीमार कैंसर के मरीजों पर भी नहीं पसीजता है.जिंदगी के लिए जद्दोजहद कर रहे ऐसे मरीजों से दवा की मनमानी कीमत वसूली जाती है. बेबस मरीज व हताश परिजन अस्पतालों के इस चक्रव्यूह में फंसने को विवश होते हैं. जो दवा डिस्ट्रीब्यूटर के पास 765 से 810 रुपये में मिलती है. वही दवा के लिए अस्पताल कैंसर मरीज से 2,990 रुपये वसूल लेते हैं.
अस्पताल कंपनी से सीधे दवा लेते हैं :
कैंसर व कॉरपोरेट अस्पताल को दवा मुहैया करानेवाले एक डिस्ट्रीब्यूटर ने बताया कि बड़े अस्पताल सीधे कंपनी से दवा की कीमत तय कर लेते हैं. इसके बाद हम उनको उसी दर पर दवा मुहैया कराते हैं. इसमें हमलोगों को 10 से 15 फीसदी का मार्जिन मिल जाता है.
अस्पताल की कमाई का यह है गणित (कीमत रुपये में)
दवा डिस्ट्रीब्यूटर को अस्पताल को एमआरपी
एंटीबॉयोटिक फिलग्रास्टीन 637 से 675 750 1442.50
एंटीबॉयोटिक ऑग्जालिफ्लाटीन 1403 से 1485 1650 4697
एंटीबाॅयोटिक जॉड्रनिक एसिड 765 से 810 1150 2990
इमाटीनिब 680 से 720 800 2027
जिमसिटाबिन 1530 से 1620 1800 5814
दवा की कीमत से संबंधित जो भी मामले सामने आये हैं उसकी जांच के लिए टीम गठित कर दी गयी है. सभी बिंदुओं पर जांच की जायेगी. दोषी दवा कंपनी व अस्पताल पर कार्रवाई की जायेगी.
सुरेंद्र प्रसाद, संयुक्त निदेशक औषधि
65 से 70 लाख की बचत करते है कैंसर अस्पताल
कैंसर मरीजों को दवा मुहैया करानेवाली करीब 30 कंपनियां हैं. कंपनियों की दवा डिस्ट्रीब्यूटर के माध्यम से कैंसर व कॉरपोरेट अस्पतालों को मुहैया करायी जाती है.
अनुमानत: हर माह करीब एक करोड़ की दवा इन अस्पतालों को उपलब्ध करायी जाती है. ऐसे में अस्पताल प्रबंधन दवा से 70 लाख रुपये की कमाई कर लेते हैं. एक डिस्ट्रीब्यूटर ने बताया कि कैंसर मरीजाें का इलाज लंबा चलता है और अस्पतालों का मुनाफा बढ़ जाता है.
सरकार की छूट से अस्पतालों की है चांदी
दवाओं का निर्माण करनेवाली कंपनियां अपनी कई दवाओं को ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) में नहीं रखवाती हैं, जिससे वह एमआरपी मनमाने ढंग से तय करती हैं.
एनपीपीए अगर पहल करे तो ऐसी कंपनियों पर अंकुश लग सकता है. इससे दवाओं की कीमत घटेगी. इस संबंध में औषधि निदेशालय भी कोई कार्रवाई नहीं कर पाता. उसका कहना है कि यह उसके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता. दवा की कीमत एनपीपीए ही तय कर सकती है.

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