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सरकारी में 4.33 लाख बच्चे घटे निजी स्कूलों में बढ़ गये 7.69 लाख
सुनील कुमार झा रांची : एक ओर सरकारी विद्यालयों में बच्चों के नामांकन में कमी आ रही है वहीं दूसरी ओर निजी विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है. गत छह वर्ष में राज्य के सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या में 4.33 लाख की कमी आयी है. वहीं मान्यता प्राप्त व गैर मान्यता […]
सुनील कुमार झा
रांची : एक ओर सरकारी विद्यालयों में बच्चों के नामांकन में कमी आ रही है वहीं दूसरी ओर निजी विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ रही है. गत छह वर्ष में राज्य के सरकारी विद्यालयों में बच्चों की संख्या में 4.33 लाख की कमी आयी है.
वहीं मान्यता प्राप्त व गैर मान्यता प्राप्त निजी विद्यालयों में 7,69345 बच्चे बढ़ गये. राज्य के प्राथमिक विद्यालयों में गत छह वर्षों में नामांकित बच्चों की संख्या में लगभग 8.49 लाख की कमी आयी है. वर्ष 2013-14 में 34,87,202 बच्चे नामांकित हुए थे, यह संख्या वर्ष 2018-19 में घट कर 26,37,760 हो गयी. प्राइमरी स्कूलों में बच्चों की संख्या में जहां कमी आयी है, वहीं सरकारी हाई स्कूल व प्लस टू विद्यालयों में बच्चों की संख्या बढ़ी है.
कक्षा छह से आठ में 13 लाख बच्चे : कक्षा छह से आठ में बच्चों के नामांकन में हाल के वर्षों में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है.
केवल वर्ष 2016-17 में ही कक्षा छह से आठ में बच्चों के नामांकन में कमी आयी. इसके बाद से बच्चों की संख्या में कोई खास बदलाव नहीं हुआ. कक्षा छह से आठ में वर्तमान में सरकारी विद्यालयों में 13,21,922 बच्चे नामांकित हैं. इस दौरान सरकारी हाइस्कूलों में बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है.
प्राइमरी में घट रहे बच्चे, सेकेंडरीमें बढ़ रहे हैं : प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन घट रहा है, वहीं सेकेंडरी व हायर सेकेंडरी में नामांकन बढ़ा है. कक्षा नौ व दस में लगभग 3.10 लाख बच्चों का नामांकन बढ़ा है. हायर सेकेंडरी में लगभग एक लाख नामांकन बढ़ा है. इस कारण प्राइमरी में संख्या में 8.49 लाख की कमी आने पर भी ओवर ऑल नामांकन में 4.33 लाख बच्चे ही कम हुए हैं.
क्या कहते हैं जानकार
प्राइवेट विद्यालयों में अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाई होती है. इस कारण अभिभावक प्राथमिक कक्षा में इन विद्यालयों में बच्चों का नामांकन करा देते हैं. मान्यता प्राप्त नहीं होने के कारण आगे की पढ़ाई के लिए सरकारी विद्यालयों में फिर से बच्चों का नामांकन कराया जाता है. इस कारण कक्षा छह से आठ में बच्चों की संख्या में कोई कमी नहीं आती. अभिभावकों को लगता है कि प्राइवेट स्कूल में उनके बच्चों की अंग्रेजी ठीक हो जायेगी.
राममूर्ति ठाकुर, महासचिव, अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ
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