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मार्क्स नहीं जिंदगी से करो प्यार

रांची के लोग सकते में हैं. उनके बीच की एक छात्रा ने ठीक एक दिन पहले बहु मंजिली इमारत से कूद कर जान दे दी. जिंदगी को अलविदा कह दिया. बात सिर्फ इतनी ही थी कि उसके मार्क्स कम आये थे. ऐसे में पिता द्वारा नाराजगी जताने पर उसने खतरनाक कदम उठा लिया, जिसकी किसी […]

रांची के लोग सकते में हैं. उनके बीच की एक छात्रा ने ठीक एक दिन पहले बहु मंजिली इमारत से कूद कर जान दे दी. जिंदगी को अलविदा कह दिया. बात सिर्फ इतनी ही थी कि उसके मार्क्स कम आये थे.

ऐसे में पिता द्वारा नाराजगी जताने पर उसने खतरनाक कदम उठा लिया, जिसकी किसी को उम्मीद नहीं थी. मार्क्स सिस्टम को लेकर हम इतने जुनूनी हो गये हैं कि अपने नौनिहालों पर कल्पना से परे दबाव बना रहे हैं. उनकी प्रतिभा को मार्क्स के आधार पर तौल रहे हैं. इसमें न हमारी भावना काम कर रही है और न ही दिलोदिमाग. हम खुद अपने नौनिहालों की जान लेने पर तुले हैं. ऐसे में जिंदगी से प्यार करने के संदेश को सबके जेहन में डालना होगा.

अच्छे अंक लाओगे तो घड़ी, वरना मिलेगी छड़ी

हरमू निवासी सूरज ठाकुर ने इस साल 10वीं की परीक्षा दी. बोर्ड परीक्षा में सूरज को 58 फीसदी अंक मिले. बोर्ड परीक्षा से पहले ही सूरज के पिता ने कहा था कि परीक्षा में बेहतर अंक आयेंगे तो मोबाइल गिफ्ट करेंगे, पर मोबाइल तो दूर, अब हर बात पर ताना मिल रहा है. इस परिस्थिति में सूरज अपने कमरे से निकलना कम कर चुका है. शाम को केवल घर के बाहर निकलता है.

किशोरगंंज के छात्र आशीष साहू ने 10वीं की परीक्षा में 60 फीसदी अंक हासिल किये, जबकि पिता ने साइंस में आगे बढ़ाने की इच्छा जतायी थी. इसके लिए कोचिंग भी भेजा, बावजूद इसके कम अंक मिलने पर आशीष की जमकर पिटाई हुई. साथ ही पिता ने बात करना बंद कर दिया है. आशीष का कहना है कि पापा के डांटने से ज्यादा बुरा उनका बात नहीं करना है. इससे उसके मन में कई दफा बुरे ख्याल भी आते हैं.

सीबीएसइ बोर्ड की छात्रा राधिका भडानी ने विज्ञान संकाय से 12वीं की परीक्षा पास की. राधिका का पास प्रतिशत 59 फीसदी रहा. वह आगे मेडिकल की पढ़ाई करना चाहती है, पर कम अंक मिलने से उसका सपना टूट गया. घर पर माता-पिता भी उसे समय-समय पर फटकार लगा रहे हैं. इससे परेशान होकर राधिका ने रिजल्ट के बाद से खाना कम कर दिया है.

आइसीएसइ बोर्ड की कॉमर्स संकाय की छात्र श्रेया को 62 प्रतिशत अंक मिले हैं. उसने इस साल सेंट जेवियर्स कॉलेज से एकाउंट्स ऑनर्स की पढ़ाई करने की तैयारी भी की. इसके लिए परीक्षा के बाद से ही जुटी हुई थी. श्रेया ने बताया कि उसके सपने को रिजल्ट ने तोड़ कर रख दिया है, पर वह इससे हार नहीं मान रही है. एक साल ड्रॉप करने का फैसला लिया है. परीक्षा देकर बेहतर अंक हासिल करेगी.

अभिषेक रॉय

रांची : हर व्यक्ति प्रतिभावान होता है. रचनात्मकता कूट-कूटकर भरी होती है. उसकी पहचान करने की जरूरत होती है. लेकिन हमारा समाज और व्यवस्था परीक्षाओं में आनेवाले अंकों को लेकर इस हद तक जुनूनी हो चुका है कि अपने नौनिहालों के प्रति कठोर रवैया अपना लेता है. न स्नेह के दो बोल मिलते हैं और न कठिनाई के वक्त किसी प्रकार की कोई सांत्वना. भले ही स्कूलों में काउंसेलिंग का दौर चलता हो, लेकिन वह बस औपचारिकता मात्र साबित हो रही है.

काउंसेलिंग के दौरान बच्चों को परीक्षा के डर से दूर रहने और अंक जाल में नहीं फंसने की हिदायत दी जाती है. दूसरी ओर हालात इतने खराब हो चुके हैं कि जो विद्यार्थी 80 फीसद से कम अंक ला रहे हैं, उन्हें रेस में माना ही नहीं जा रहा. न उनकी चर्चा होती है और न उनका मनोबल बनाये रखने को कोई प्रयास होता है.

नहीं चुनें आत्महत्या का रास्ता

आज के दौर में माता-पिता, शिक्षक और समाज का कठोर व्यवहार असफल रह रहे विद्यार्थियों को हताश और अवसाद का शिकार बना देता है. उन्हें आगे कोई रास्ता नजर नहीं आता है. उनका अपनी जिंदगी से प्यार और लगाव खत्म हो जाता है और वह आत्महत्या जैसा रास्ता चुन लेते हैं.

शुक्रवार को डीएवी गांधीनगर की छात्रा अदिति राज के द्वारा 12वीं मंजिल से कूद कर अपनी जान देने की घटना के बाद से शहर के लोग सकते में हैं. 12वीं के रिजल्ट में कम अंक मिलने और अभिभावकों की फटकार के बाद अदिति हताश हो चुकी थी और उसका मनोबल टूट चुका था. ऐसे में जरूरी है कि अंकों की रेस में पिछड़ रहे विद्यार्थियों का ख्याल रखा जाये, जिससे वह अपनी जिंदगी से प्यार कर सकें. वह असफलता से हारे बगैर कोशिश जारी रखें और जीवन से प्यार करें.

ग्रेस मार्किंग से बढ़ गया प्रतिशत

सीबीएसइ और आइसीएसइ बोर्ड ने जब से ग्रेस मार्किंग पद्धति शुरू की है, तब से बच्चों का प्रदर्शन बेहतर होता जा रहा है. बोर्ड के परिणाम 99 से 100 प्रतिशत तक पहुंच गये हैं. इसके अलावा 90 फीसदी से अधिक अंक या इसके करीब के प्रतिशत वाले विद्यार्थियों की संख्या में भी इजाफा हुआ है. इस साल सीबीएसइ बोर्ड परीक्षा में दो लाख 25 हजार विद्यार्थियों को 90 फीसदी से अधिक अंक मिले है. वहीं साल 2018 में एक लाख 35 हजार विद्यार्थियों को 90 फीसदी अंक मिले थे. ऐसे में प्रत्येक साल विद्यार्थियों को बेहतर करता देख प्रत्येक अभिभावक अपने बच्चे भी अंकों का दबाव बनाने लगे हैं.

नहीं नजर आता है कोई रास्ता

सामान्यत: लोग अवसाद में आकर तभी आत्महत्या करते हैं, जब उनके पास खुद को बचाए रखने का कोई विकल्प नहीं होता. लोगों की आर्थिक स्थिति, मानसिक स्थिति, अकादमिक परेशानियां, प्रोफेशनल दबाव, रिलेशनशिप की उलझनें, पारिवारिक झगड़े, विवाहेत्तर संबंध आदि ठीक न होना जैसे कारण डिप्रेसिव सुसाइड के लिए जिम्मेदार हैं. इन कारणों का सही तरीके से निवारण न हो, तो व्यक्ति आत्महत्या कर बैठता है. गहरी निराशा से इंसान खुद को होपलेस समझने लगता है.

सीबीएसइ 12वीं में 18 हजार को 60% अंक

इस साल सीबीएसइ 12वीं में पटना रीजन से 66% विद्यार्थी परीक्षा में पास हुए. पास होने वाले विद्यार्थियों में से 42 हजार विद्यार्थी को 80 फीसदी श्रेणी में अंक मिले हैं, जबकि 18 हजार विद्यार्थियों को 60 फीसदी अंक मिले है. वहीं सीबीएसई 10वीं में पटना रीजन का पास प्रतिशत 91.86 रहा. वहीं 8.14 प्रतिशत विद्यार्थी सफल नहीं हो सके. इसके अलावा करीब 37 प्रतिशत विद्यार्थी को 60 फीसदी से कम अंक मिले. आइसीएसइ बोर्ड में 10वीं के 11968 विद्यार्थी परीक्षा में सफल हुए हैं. इनमें से 5000 विद्यार्थियों को 80 फीसदी से कम अंक मिले हैं.

इनमें से करीब 1800 बच्चों को 60 प्रतिशत से कम अंक मिला है. वहीं आइएससी (12वीं) में 4824 में से 4634 विद्यार्थी बोर्ड परीक्षा में सफल हुए हैं. इनमें से करीब 3500 विद्यार्थी को 80 फीसदी या इससे कम अंक मिले हैं. वहीं 1100 विद्यार्थी को 60 फीसदी अंक मिले है.

सोशल मीडिया में शुरू हो चुका है बहस का दौर : हाल में वंदना सूफी कटोच नामक महिला ने अपने बेटे के 60 फीसद अंक लाने पर प्रशंसा करते हुए फेसबुक पर एक पोस्ट डाली थी. जिसमें उन्होंने उसकी काबिलियत पर भरोसा जताया था. अपने पोस्ट में बताया था कि उन्होंने उसे विषयों को लेकर संघर्ष करते और जूझते देखा. ऐसे में वह खुश हैं कि उनका बेटा 60 फीसद अंक से पास हुआ है. इसकी पूरे देश स्तर पर सराहना हुई है. लोग लगातार मार्किंग सिस्टम और इसके पड़ रहे प्रभाव पर सवाल उठा रहे हैं.

आवेग और गहरे अवसाद में करते हैं आत्महत्या : आत्महत्या अक्सर तनाव या अवसाद (डिप्रेशन ) में रहने वाले लोग करते हैं. अवसाद के दौर में इंसान खुद को शक्तिहीन महसूस करने लगता है. ऐसे में मौत का रास्ता अपनाकर खुद को दूसरों की नजर से दूर कर देना चाहता है. मूल रूप से लोग आत्महत्या दो कारणों से करते हैं, पहला आवेग में आकर (इंपल्सिव सुसाइड) और दूसरा गहरे अवसाद में आकर (डिप्रेसिव सुसाइड).

कई बार लोग निराशा की वजह से आवेग में आकर त्वरित निर्णय कर आतमहत्या कर लेते हैं. यह सामान्यत: परीक्षा परिणाम में अच्छा प्रदर्शन नहीं करने, प्रेम प्रसंग में अलग होने, बिजनेस में बड़ा नुकसान हाेने, भारी मात्रा में कर्ज की वजह से कर लेते हैं. वहीं अवसाद से ग्रसित व्यक्ति समय के साथ गहरी निराशा और नकारात्मक भावनाओं में जकड़ जाते हैंं. ऐसे में जीवन समाप्त करना आसान लगता है.

इस आइएएस ने 10वीं पास की थी थर्ड डिवीजन से…. पर हार नहीं मानी, पास कर दिखाया देश का सबसे बड़ा इम्तिहान

सत्येंद्र कुमार सिंह

रायपुर : 10वीं के रिजल्ट से जो बच्चे मायूस हैं, जो मां-बाप अपने बेटों से निराश हैं, उन्हें कम से कम एक बार छत्तीसगढ़ के आइएएस अवनीश शरण की दसवीं की मार्क्सशीट जरूर देखनी चाहिये. अगर स्कूल और कालेज के नंबर बच्चे का भविष्य तय करते तो बिहार का एक बेटा आइएएस नहीं बनता. छत्तीसगढ़ को एक कामयाब कलेक्टर नहीं मिलता.

छत्तीसगढ़ के कबीरधाम जिले के कलेक्टर अवनीश शरण ने अपने अकादमिक करियर का मार्क्स बायोडाटा के साथ खुद ही सोशल मीडिया पर शेयर किया है. 10वीं की परीक्षा तृतीय श्रेणी (44.5%) से और ग्रेजुएशन की परीक्षा किसी तरह खींचकर फर्स्ट डिवीजन पास करने वाले अवनीश आज के बच्चों के लिए एक उदाहरण भी हैं, एक सीख भी हैं और एक मोटिवेटर भी.

बिहार के समस्तीपुर के रहने वाले अवनीश शरण 2009 बैच के छत्तीसगढ़ कैडर के आइएएस अफसर हैं. फेसबुक पर अपने स्कूल-कॉलेज के अंकों को शेयर करते हुए उन्होंने मायूस बच्चों से अपील की है कि वह निराश होकर कोई भी आत्मघाती कदम नहीं उठायें, क्योंकि भविष्य में उन्हें खुद को साबित करने के कई और भी मौके मिलेंगे. ये पोस्ट उस वक्त में आया है, जब बिहार-झारखंड व छत्तीसगढ़ कई हिस्सों से परीक्षा परिणाम से निराश बच्चों की खुदकुशी की खबरें आ रही है.

बिहार के समस्तीपुर के केवटा गांव के रहने वाले अवनीश बेहद साधारण परिवार से हैं. पिता शिक्षक और मांग गृहणी थी. घर पर बिजली नहीं थी, सो लालटेन के सहारे अपनी पढ़ाई पूरी की. 2002 में ग्रेजुएशन के बाद 7 साल की कड़ी मेहनत के बाद 2009 में जनरल कोटे से अवनीश आइएएस में सेलेक्ट हुए.

मनोचिकित्सक की राय

रिजल्ट के बाद अभिभावक न करें बुरा बर्ताव

परीक्षा का परिणाम जैसा भी हो,इसे अभिभावकों को स्वीकार करना चाहिए. बच्चे अपने परिश्रम को कम नहीं करते हैं. कई दफा खराब प्रदर्शन के जिम्मेदार अभिभावक और शिक्षक भी होते हैं. परीक्षा से पहले ही बच्चे से उसकी तैयारी की जानकारी लेनी चाहिए. इससे उसके परिणाम का अंदाजा लगाया जा सकता है. परिणाम अगर खराब हो जाये तो बच्चे पर निरंतर ताना कसना, उनसे बातचीत बंद कर देना, बात-बात पर फटकार लगाना जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए. बच्चे एक तो खराब प्रदर्शन से त्रस्त रहते ही हैं, वहीं अभिभावक के बुरेव्यवहार से उनका मनोबल भी टूट जाता है.

रिजल्ट कैसा भी क्यों न हो, बच्चों का सपोर्ट सिस्टम बनना जरूरी है. इससे बच्चे में आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है. अभिभावक के सपोर्टिव होने से बच्चा कहीं फंस जाने पर उनसे बेझिझक अपनी परेशानी साझा कर लेता है.

इससे आगे बढ़ने का मनोबल बना रहता है. बच्चा यदि खराब प्रदर्शन करे तो अभिभावक को बच्चे की कमजोरी से रूबरू कराना चाहिए. अभिभावक जब तक बच्चे के प्रदर्शन की सराहना और खराब प्रदर्शन को पीछे छोड़ आने वाले अवसर के लिए प्रेरित नहीं करेंगे, तब तक बच्चे सफल नहीं होंगे.

परीक्षा के परिणाम को लेकर विद्यार्थियों और अभिभावकों को रियलिस्टिक होना होगा. परीक्षा में मिले अंक ही भविष्य का निर्धारण नहीं कर सकते. जीवन के लक्ष्य को पाने के लिए लगातार प्रयास करना जरूरी है.

एक बार के परिणाम से हार मान लेना किसी भी हद तक सही नहीं है. विद्यार्थी का लक्ष्य केवल अच्छे अंक ही लाना नहीं, बल्कि अच्छा इंसान बनना भी होना चाहिए. स्कूलों ने विद्यार्थियों को लक्ष्य देने के लिए ही एडमिशन का मापदंड तय किया है. लेकिन इन मापदंड से जरूरी नहीं कि सभी बच्चे इंजीनियर, डॉक्टर, आइएएस और आइपीएस बन जायें. अन्य कमजोर विद्यार्थियों को भी आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंधन की होनी चाहिए.

– डॉ सुयेश सिन्हा, मनोचिकित्सक

पढ़ाई में कम अंक मिले, पर जीती जिंदगी की जंग

शुरू से ही खेल में रुचि थी. अभिभावक खेलने और नियमित अभ्यास करने की छूट तो देते थे, बावजूद इसके पढ़ाई करने का भी प्रेशर समय-समय पर बनाते थे. उनके इसी प्रेशर की वजह से 12वीं की परीक्षा के दौरान तीरंदाजी की प्रैक्टिस छोड़ कर एक महीने तक पढ़ाई की.

इसके बाद भी इंटर में अच्छे अंक नहीं मिले. लेकिन पास हो गयी. अभिभावकों ने इसमें भी मेरा सपोर्ट किया. इंसान हमेशा अपना 100 परसेंट नहीं दे सकता. सकारात्मक सोच और निरंतर प्रयास से आगे बढ़ने के उत्साह को कम नहीं होने देना चाहिए. हार से सीख लेकर आगे बढ़ना चाहिए.

– मधुमिता, अंतरराष्ट्रीय तीरंदाज

मैंने मारवाड़ी स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की, हालांकि तीन अंक से पिछड़ने पर सेकेंड डिविजन मिला. इसके लिए काफी रोयी, लेकिन अगली बार अच्छा करूंगी, यह सोचकर आगे बढ़ती गई. मेरा मानना है कि पढ़ाई हो या कोई भी क्षेत्र हार नहीं माननी चाहिए. असफलता मन में ठान लेने से सफलता से दूरी बन जाती है. असफल होकर भी जीवन के कई पहलुओं को नजदीक से देखा. मेरे अभिभावकों ने डांस को बढ़ावा दिया. ऐसे ही अन्य अभिभावक भी बच्चों में सकारात्मक सोच जगायें और उन्हें सपोर्ट करें. प्रतियोगिता वर्तमान समय में प्रत्येक क्षेत्र में है. ऐसी परिस्थिति में अभिभावक को मोरल सपोर्ट देना चाहिए.

– अलिशा सिंह, बॉलीवुड कोरियोग्राफर

बोर्ड परीक्षा में 60 फीसदी अंक मिले थे. इससे कुछ दिनों तक निराशा हुई थी. इसके बाद खुद को संभाला. खुद से और दोस्तों के साथ मिलकर अन्य विकल्पों की तलाश की. इस बीच किसी ने होटल मैनेजमेंट करने की सलाह दी. इस विषय की जानकारी नहीं थी, तो विषय के प्रति जानकारी हासिल करने में जुट गया. जितनी जानकारी मिली, वह करियर बनाने के लिए उपयोगी लगे. परिवार के सदस्यों से साझा किया तो उन्होंने भी मदद की. कम अंक से अफसोस करने से अच्छा है आगे के लिए मेहनत करते रहें. लगातार खुद को सफल बनाने की इच्छा भी सफल बनाती है.

– सम्राट सरकार, ऑपरेशन मैनेजर

10वीं की परीक्षा में मुझे अच्छेे अंक मिले थे. दो साल बाद 12वीं की बोर्ड परीक्षा में प्रदर्शन उतना अच्छा नहीं रहा. नतीजा यह हुआ कि द्वितीय श्रेणी से सफलता मिली. इसके बाद ग्रेजुएशन में भी द्वितीय श्रेणी से सफल हुआ. दोस्तों के प्रदर्शन को प्रेरणा स्वरूप लिया और खुद को भी बेहतर साबित करने का प्रयास जारी रखा. बाद में सरकारी नौकरी के लिए प्रयास किया. बैंक की परीक्षा दी, उसमें सफल होकर क्लर्क के रूप में चयन हुआ, फिर बैंक पीओ की परीक्षा को भी क्लियर किया. इसमें भी मन नहीं भरा, तो 2012 में जेएसएससी की परीक्षा दी और सफल रहा

– सुशांत गौरव, सहायक प्रशाखा पदाधिकारी

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