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रांची : ”कुड़ुख ग्रंथ” में उरांव आस्था के प्रति आपत्तिजनक बातें, सरकार प्रतिबंध लगाये : सरना संगठन

रांची : झारखंड आदिवासी सरना विकास परिषद, जनजाति सुरक्षा मंच व केंद्रीय युवा सरना विकास समिति ने ‘कुड़ुख ग्रंथ’ को उरांव रीति-रिवाज, परंपरा, धार्मिक विश्वास व आस्था के साथ खिलवाड़ बताते हुए सरकार से इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है़ इस ग्रंथ को अधिवक्ता ए मिंज, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के महासचिव […]

रांची : झारखंड आदिवासी सरना विकास परिषद, जनजाति सुरक्षा मंच व केंद्रीय युवा सरना विकास समिति ने ‘कुड़ुख ग्रंथ’ को उरांव रीति-रिवाज, परंपरा, धार्मिक विश्वास व आस्था के साथ खिलवाड़ बताते हुए सरकार से इस पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है़
इस ग्रंथ को अधिवक्ता ए मिंज, राजी पड़हा सरना प्रार्थना सभा के महासचिव प्रो प्रवीण उरांव, बंधन तिग्गा, फादर अगस्टीन केरकेट्टा व अन्य ने तैयार किया है. शनिवार को आरोग्य भवन, बरियातू में झारखंड आदिवासी सरना विकास परिषद के अध्यक्ष मेघा उरांव ने कहा कि इस ग्रंथ में करम राजा को करम आत्मा, सिरा सिता नाले को जननेंद्रिय कहा गया है.
उरांव समुदाय के सृष्टि स्थल को भला-बुरा कहना दुखद है़ इस पुस्तक के माध्यम से नेम्हा बाइबल की तरह पादरियों द्वारा हमारी आस्था व विश्वास को नष्ट करने का प्रयास किया गया है़
डंडा कटना में अंडा की जगह जंगली फल दिखाना, गोड़ लागी की जगह नमस्कार, प्रणाम, जोहार, सलाम कहना, सिरा सिता नाले ककड़ो लाता के बारे में गलत व्याख्या जैसी बातें चर्च के पादरी और प्रो प्रवीण उरांव जैसे लोगों द्वारा मूूल आदिवासियों की परंपरा व पूजा पद्धति समाप्त करने की बड़ी साजिश है़ इस ग्रंथ के दो संस्करण प्रकाशित हुए हैं और इसे कैथोलिक प्रेस रांची ने मुद्रित किया है़
मौके पर जनजाति सुरक्षा मंच के संयोजक संदीप उरांव, केंद्रीय युवा सरना विकास समिति के अध्यक्ष सोमा उरांव ने भी अपनी बातें रखी. इस अवसर पर हांदु भगत, भीखा उरांव, कुमुदनी लकड़ा, लोरया उरांव, जयमंत्री उरांंव, कैलाश मुंडा, दुर्गा उरांव, लालजीत उरांव, सुनील उरांव, संजीव कुमार भगत, नमित हेमरोम व अन्य मौजूद थे़
झारखंड सरकार से ‘कुड़ुख ग्रंथ’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग गलत : प्रो प्रवीण उरांव : सरना प्रार्थना सभा भारत के राष्ट्रीय महासचिव, धर्म अगुवा प्रो प्रवीण उरांव ने कहा है कि मेघा उरांव, संदीप उरांव, सोमा उरांव व अन्य द्वारा कुछ बातों का हवाला देते हुए झारखंड सरकार से ‘कुड़ुख ग्रंथ’ पर प्रतिबंध लगाने की मांग गलत है़
उन्होंने कहा कि उरांव का कोई ग्रंथ नहीं था और इस दिशा में एक प्रयास किया गया़ उरांवों की पूजा-पाठ, रीति-रिवाज या कहानियाें में कुछ-कुछ दूरी के गांव में कुछ-कुछ अंतर मिलता है़ इसलिए कोई भी कुड़ुख ग्रंथ एक जगह के लिए सही और दूसरी जगह के लिए कुछ गलत हो सकता है़
यदि किसी को कुड़ुख ग्रंथ अच्छा नहीं लगा है, तो वे एक अलग कुड़ुख ग्रंथ लिखे़ं इससे किसने रोका है? उन्होंने कहा कि कुड़ुख ग्रंथ के विरोध में प्रेस वार्ता उस वनवासी कल्याण केंद्र में किया गया, जो वनवासी सरना को सनातन कहता है़ शायद आरोप लगानेवालों ने सनातन धर्म स्वीकार कर लिया है़ यह भी धर्म परिवर्तन है़ उरांव समाज के लोगों को इनसे बच कर रहने की जरूरत है़

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