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भूमि अधिग्रहण की शिथिलता के कारण नहीं बन पायी एक किमी भी सड़क

भूमि अधिग्रहण की शिथिलता के कारण नहीं बन पायी एक किमी भी सड़क

चंदवा़ झारखंड निर्माण के 25 वर्ष हो गये हैं. इन 25 वर्षों में भी लातेहार जिले का अपेक्षाकृत विकास नहीं हो पाया. मेसो क्षेत्र होने के बावजूद यहां के कई क्षेत्र आज भी बुनियादी सुविधाओं का दंश झेल रहे हैं. कहते हैं सड़कें विकास का आइना होती है. जिले में अगर विकास देखना हो तो लातेहार जिला अंतर्गत एनएच-75 की हालत देखें. जर्जर सड़कों के कारण आये दिन जिले में सड़क दुर्घटनाएं हो रहीं हैं. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि उक्त सड़क राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के तहत फोरलेन बननी है. यह रांची से यूपी के बिढ़मगंज तक बनायी जानी है. मजे की बात यह है कि सड़क निर्माण परियोजना पिछले करीब तीन वर्ष से अपनी यूनिट लेकर चंदवा में बैठी है. लातेहार जिले में भू-अर्जन का मामला लटके रहने के कारण कुड़ू से उदयपुरा तक कार्य ही शुरू नहीं हो पाया है. पांच चरणों में होना है कार्य : उक्त फोनलेन परियोजना एनएचएआइ की पहल पर पांच चरणों में होनी है. इनमें से तीन चरण के कार्य करीब-करीब पूर्ण होने की स्थिति में है. परियोजना के चौथे चरण में उदयपुरा से भोगु तक फोरलेन सड़क बननी है. वहीं, पांचवें चरण में कुड़ू से उदयपुरा तक निर्माण कार्य होना है. इनमें चौथे चरण में करीब तीस फीसदी कार्य हो चुका है. जितना क्षेत्र लातेहार जिला अंतर्गत आता है. यहां भू-अर्जन की प्रक्रिया शिथिल होने के कारण जिले में एक किमी सड़क का निर्माण भी अभी तक नहीं हो पाया है. क्या है मामला : कुड़ू से उदयपुरा तक बननेवाली फोरलेन सड़क निर्माण कार्य में लातेहार के 17 और लोहरदगा के तीन गांव प्रभावित होंगे. लोहरदगा के तीनों गांव में भू-अर्जन की प्रक्रिया पूरी हो गयी है. रैयतों को मुआवजा भुगतान भी हो गया है. वहीं, लातेहार जिले में 17 गांव के कुछ ही रैयतों को अब तक मुआवजा मिला है. इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि जिले में उच्चाधिकारी, सांसद और विधायक इस मुद्दे पर कितने मुखर हैं. बताते चले कि जिले में करीब 65 किमी फोरलेन सड़क निर्माण होना है. तीन वर्ष से निर्माण कंपनी के आने के बाद भी यहां कार्य शुरू नहीं हो पाया. निर्माण कंपनी सिर्फ जर्जर सड़क की मरम्मत ही कर रही है. पूर्व में मुआवजा निर्धारण को लेकर स्थानीय रैयतों का विरोध था. विरोध के बाद कुछ गांव की मुआवजा राशि बढ़ा दी गयी. यहां के रैयतों ने कागजी प्रक्रिया पूरी कर भुगतान के लिए भू-अर्जन विभाग लातेहार को आवेदन दे दिया है. सूत्रों की माने तो करीब 150 रैयतों की कागजी प्रक्रिया पूर्ण है. भुगतान के लिए यह भू-अर्जन विभाग में लटकी है. चार-पांच गांव में भूमि के रेट को लेकर अभी भी विरोध जारी है. परियोजना के लटकने से आम लोगों का ही नुकसान हो रहा है. भू-अर्जन कार्यालय का चक्कर लगाते-लगाते परेशान हो चुके हैं विस्थापित होनेवाले रैयत : विस्थापित होने वाले रैयत बालेश्वर प्रजापति, मछिंद्र प्रजापति, अख्तर अंसारी, महेंद्र गंझू, कुंती देवी, दीपक उरांव, दिवाली गंझू, बैजू मुंडा समेत दर्जनों लोगों ने बताया कि संपूर्ण कागजी प्रक्रिया पूरी कर भुगतान के लिए उनके कागजात भू-अर्जन में जमा है. बावजूद भुगतान नहीं हो रहा. भू-अर्जन के चक्कर लगाते-लगाते वे परेशान हो चुके हैं. हर बार कुछ न कुछ बहाना कर आवेदन में कमी निकाली जा रही है. लोगों ने उपायुक्त से संबंधित गांव में ही भू-अर्जन विभाग द्वारा शिविर लगाने व कागजात की कमी पूरी कर भुगतान करवाने की मांग की है. क्या कहते हैं प्रभारी भू-अर्जन पदाधिकारी : इस संबंध में प्रभारी भू-अर्जन पदाधिकारी सह अनुमंडल पदाधिकारी अजय कुमार ने कहा कि जिन रैयतों के कागजात पूर्ण है, उन्हें भुगतान दिया जा रहा है. पिछले दिनों 40 अभिलेख आये थे, इनमें से 24 का भुगतान कर दिया गया है. कुछ अभिलेख कागजी कमी के कारण वापस किया गया है. लगातार कार्यालय व प्रभावित गांव में शिविर भी लगाये जा रहे हैं. इस संबंध में चतरा सांसद कालीचरण सिंह से संपर्क करने का कई बार प्रयास किया गया, पर उन्हें फोन नहीं लगा.

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