जमशेदपुर: ‘कला यदि समाज में परिवर्तन न ला पाये तो वह कोई भी कला क्यों न हो, मेरी नजर में महत्वहीन है. मैं कितना भी बड़ा कलाकार बन गया तो क्या हुआ, उससे समाज में क्या परिवर्तन आया, इससे कलाकार का मूल्यांकन होना चाहिए.’ ये विचार हैं ‘एबिलिटी अनलिमिटेड’ के ऊर्जावान गुरु सैयद सलाउद्दीन पाशा के, जो सामवेद में वर्णित संगीत की शक्तियों के साक्षात्कार एवं उनके माध्यम से समाज के अदृश्य अल्पसंख्यकों (अंग बाधित) लोगों को सबल बनाने के यज्ञ में अपनी ऊर्जा की अहुति से ही सुख प्राप्त करते हैं.
वे मानते हैं कि सामवेद संगीत के जिस चिकित्सीय शक्ति का उल्लेख करता है, देश में उसका प्रयोग नहीं हुआ. उसी शक्ति के प्रयोग से विकलांगों को सबल बना कर वे अपनी नृत्य कला को सार्थकता प्रदान करने की कोशिश कर रहे हैं.
गुरु पाशा के अनुसार भारतीय समाज कभी विकलांग-स्नेही नहीं रहा. आज भी ऐसे लोगों की सार्वजनिक स्थलों पर आसानी से पहुंच संभव नहीं. वे तथा उनके दल के बच्चे विकलांगों की क्षमता के प्रदर्शन के माध्यम से उनके प्रति लोगों का नजरिया बदलने का सार्थक प्रयास कर रहे हैं.
यह पूछे जाने पर कि इस यज्ञ में होम के बीच कलाकार पाशा क्या खो रहा है, वे निर्द्वद्व भाव से कहते हैं, इन बच्चों की उपलब्धि के आगे मेरा कुछ भी खोना मायने नहीं रखता. मेरी सबसे बड़ी कलात्मक उपलब्धि ये बच्चे हैं, जिनमें मेरी कला की परछाईं आपको दिखेगी. इन्हें सबल, सच्च इनसान बनाना मेरी कला की सार्थकता है और समाज में इनकी सामथ्र्य की स्वीकार्यता स्थापित करना मेरी सबसे बड़ी उपलब्धि. मेरी कलात्मक प्राथमिकताएं अलग हैं, मेरा कलाकार कुछ नहीं खोता तो ऐसी उपलब्धि और कहां पाता? यह पूछे जाने पर कि आपको पौराणिक मिथकों से कथानक चुनने में परेशानी नहीं होती, गुरु पाशा ने कहा कि उनका कोई धर्म नहीं, उनके दल का हर सदस्य भारतीय है और भारत में जन्म लेते ही पूरी भारतीय आर्ष परंपरा (ऋषियों की परंपरागत समृद्धि) स्वाभाविक रूप से हमारे (हर भारतीय के) रक्त में आ जाती है.
उन्होंने कहा कि यह वे यूं ही नहीं कह रहे, बल्कि उनकी हजारों प्रस्तुतियों में आज तक कोई पुराण-विरोधी तत्व शामिल होने की शिकायत नहीं कर सका. वे अपनी हर थीम के लिए पहले उसका गहन अध्ययन एवं उस पर पूरा शोध करते हैं. यही उनके परिपक्व गुरु बनने का आधार बनेगा, यही समाज और शाश्वत भारतीय संस्कृति के प्रति उनकी सच्ची सेवा होगी.