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केस स्टडी 1 :मैं अभी 11 साल का हूं. और जादूगोड़ा में मेरा घर है. यहां पर मैं धतकीडीह हरिजन बस्ती में अपने चाचा के साथ रहता हूं. मेरे पापा नहीं हैं. मैं घर में सबसे बड़ा हूं और मेरी एक छोटी बहन भी है. पहले जब पापा वो थे तो उनकी दारू की आदत […]

केस स्टडी 1 :मैं अभी 11 साल का हूं. और जादूगोड़ा में मेरा घर है. यहां पर मैं धतकीडीह हरिजन बस्ती में अपने चाचा के साथ रहता हूं. मेरे पापा नहीं हैं. मैं घर में सबसे बड़ा हूं और मेरी एक छोटी बहन भी है. पहले जब पापा वो थे तो उनकी दारू की आदत के चलते मुझे काम करना पड़ता था और अब जब वो नहीं हैं तो मैं अपनी मां और बहन के लिए काम कर रहा हूं. यहां पर गाड़ी धोने से महीने में करीब 4000 रुपये मिल जाते हैं, जिनमें से मैं काफी पैसे अपने घर भेज देता हूं. कुछ पैसे चाचा को भी देने पड़ते हैं नहीं तो वो मारते हैं. रानू, 11 वर्ष, हावड़ा ब्रिज के पास गाड़ी धोने का कामकेस स्टडी 2 :मैं सिवान में रहता हूं. मेरा बाप दारू पीता था और मुझे मारता था. इसलिए, मैं घर से भाग आया. यहां पर मुझे बर्तन धोने का काम मिला है. और मैं बर्तन धोता हूं. दिन में चार से पांच 8 से10 बार बर्तन धोना पड़ता है. बदले में मुझे 1500 रुपये और खाना मिलता है. यहीं दुकान में सोने को भी मिल जाता है. पिछले दो साल से मैं घर नहीं गया और घर जाने का मन भी नहीं करता. वैसे स्कूल जाने का काफी मन करता है. पर अगर स्कूल जाऊंगा तो काम नहीं कर पाऊंगा. वैसे यहां के लाग काफी गंदे हैं और बहुत गाली देते हैं. राकेश, 12 वर्ष, साकची की दुकान में बर्तन धोने का काम

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