प्रवासी भारतीयों की दुर्गापूजारोजी-रोजगार और बेहतर जिंदगी की तलाश में कई बार नहीं चाहते हुए भी अपना घर, शहर और देश छोड़ना पड़ता है. अपना मुल्क छोड़कर कुछ सालों के लिए भले ही दूसरे देश में रहना पड़े पर अपनी मिट्टी, अपना शहर और अपने लोग हमेशा याद आते हैं. इंसान का यह सबसे मजबूत पक्ष है. जमशेदपुर का दुर्गापूजा काफी फेमस है. जिसने भी यहां का एक बार नवरात्र देख लिया वह उसे कभी नहीं भूलता. जो यहीं पैदा हुए, पले-बढ़े उनके लिए तो और भी मुश्किल है दुर्गापूजा में इस शहर से बाहर रहना. इस दुर्गापूजा के अवसर पर लाइफ@जमशेदपुर की टीम ने जमशेदपुर के कुछ ऐसे लोगों से संपर्क किया जो दूसरे देश में रह रहे हैं. उनसे जाना कि वे वहां दुर्गापूजा कैसे मना रहे हैं और जमशेदपुर की तुलना में वहां का रीति-रिवाज कैसा है. विशेष प्रस्तुति.हिमिका भट्टाचार्य, न्यूयार्कवीकेंड में होती है दुर्गापूजा जमशेदपुर में जन्मी और बड़ी हुई हिमिका अभी अमेरिका के न्यूयार्क में रहती हैं. हिमिका के माता-पिता अल्पना भट्टाचार्य एवं दिलीप भट्टाचार्य कदमा में रहते हैं. हिमिका ने फोन पर बताया कि न्यूयार्क में वीकेंड देख कर पूजा होती है. शनिवार को पूजा शुरु होती है, रविवार की सुबह में समाप्त हो जाती है. यहां रामकृष्ण मिशन में विधिपूर्वक पूजा होती है. यहां का पूजा देखने से काफी संतुष्टि मिलती है. सभी के साथ भोग खाते हैं. अपने शहर, घर एवं मम्मी-पापा को काफी मिस करते हैं. हिमिका ने बताया कि माता-पिता एक दो बार यहां आये हैं उनके साथ होने से पूजा की खुशी दोगनी हो जाती है.समुद्र भट्टाचार्य, फिलीपिंस दुर्गापूजा में याद आ रहे घरवाले समुद्र भट्टाचार्य एवं उनकी पत्नी विजयाश्री आयन गर्ग भट्टाचार्य हर साल दुर्गापूजा मनाने जमशेदपुर आते हैं, लेकिन हाल में उनकी पोस्टिंग फिलीपिंस में हुई है. इसलिए इस बार वे शहर की पूजा में शामिल नहीं हो पा रहे हैं. समुद्र ने बताया कि उनका घर कदमा में है. अभी वहां माता-पिता रहते हैं. हर साल अपनी पत्नी और बेटी को लेकर वे माता-पिता के पास चले आते हैं और साथ मिल कर पूजा का आनंद उठाते है. उन्होंने बताया कि फिलीपिंस में बंगाली एसोसिएशन द्वारा पूजा का आयोजन किया जा रहा है. वे एसोसिएशन के सदस्य तो नहीं बने हैं लेकिन उन्हें हर संभव सहयोग प्रदान कर रहे हैं. विजयाश्री ने कहा कि सासु मां साथ होती हैं तो अष्टमी की पूजा करना आसान होता है. यहां पर कोई बताने वाला नहीं है. तो उनसे फोन पर ही बात करके सबकुछ पूछ कर पूजा करूंगी. इस बार अपने शहर जमशेदपुर नहीं जा पाने का दुख है. क्योंकि मम्मी-पापा (सास-ससुर) के साथ पूजा घूमने में बड़ा मजा आता है.————————————–अनंदिता आचार्य, दुबई एक प्रतिमा से तीन वर्ष तक करते हैं पूजाजमशेदपुर में जन्मी, पली-बढ़ी अनिंदिता आचार्य मौजूदा समय में अपने पति पिनाकी आचार्य, बेटी अद्रिजा के साथ दुबई के मस्कट में रहती हैं. अनिंदिता की मां रुणो रॉय साकची में रहती हैं. अनिंदिता ने कहा कि जमशेदपुर की दुर्गापूजा को याद करते हैं तो मन रो उठता है. क्योंकि दुर्गापूजा की रौनक विदेशों में धुंधली होती है. अनिंदिता ने बताया कि मस्कट में इंडियन सोशल मल्टीपल क्लब में अलग-अलग समाज का एक विंग है. वे लोग बंगाली विंग के सदस्य हैं. बंगाली विंग दुर्गापूजा का आयोजन करती है. जहां समाज के लोग एकजुट होकर पूजा में शामिल होते हैं. पूजा में सभी पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होते हैं. जमशेदपुर जैसा यहां न तो बड़ी-बड़ी पंडाल दिखने को मिलता है और न ही प्रतिमा. बेटी अद्रिजा ने आज तक शहर की पूजा नहीं देखी है, यहां प्रतिमा छोटे साइज की होती है जो फ्लाइट से आती है. तीन साल तक एक ही प्रतिमा में पूजा होती है. जिसके बाद उसका विसर्जन कर दिया जाता है. बंगाली समुदाय के ब्राह्मण इस पूजा को कराते हैं. कृष्णा शिवा मंदिर या क्लब जहां पूजा होती है वहां रात नौ बजे के बाद बंद कर दिया जाता है.——————–शिउली भट्टाचार्य, मस्कटरात नौ बजे के बाद सब कुछ बंद हो जाता हैटेल्को निवासी शिउली भट्टाचार्य वर्तमान में मस्कट में रहती है. शिउली के परिवार में उनके पति रूपक भट्टाचार्य, बेटा रौनक भट्टाचार्य, बेटी ऋतवी भट्टाचार्य है. शेउली का मायका टेल्को में है. पिता प्रशांत गांगुली एवं पूरा परिवार शहर में ही रहता है. शिउली ने बताया कि जमशेदपुर की पूजा हमेशा याद आती है. मस्कट में पूजा महज औपचारिकता होती है. यहां तो रात नौ बजे के बाद न चाहते हुए भी सब कुछ खत्म सा हो जाता है. दुर्गापूजा में यहां छुट्टी नहीं मिलती है. फिर भी यहां के पूजा आयोजन में हम लोग कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. सभी भारतीय महिलाएं एकजुट होकर पूजा में शामिल होती हैं. बच्चों के लिए पूजा पहले आगमनी कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है. पूजा के समय महिलाओं के लिए प्रतियोगता का भी आयोजन किया जाता है.स्नेहा, सिएटल (अमेरिका)मंदिर में होती है सामूहिक पूजाजमशेदपुर की स्नेहा अग्रवाल सिंघल अभी वाशिंगटन स्थित सिएटल में रह रही हैं. सेक्रेड हार्ट कॉन्वेंट स्कूल से बारहवीं करने के बाद उन्होंने पुणे से बायोटेक्नोलॉजी में स्नातक किया. यूनिवर्सिटी ऑफ मेनचेस्टर से बायोटेक्नोलॉजी में ही मास्टर डिग्री करने के बाद उन्होंने पीएचडी की डिग्री हासिल की. उनके पिता डॉ आरएल अग्रवाल शहर के प्रतिष्ठित फिजिशियन हैं. मां सरोज अग्रवाल होममेकर हैं. स्नेहा सिएटल में भी दुर्गापूजा काफी श्रद्धा और निष्ठापूर्वक मना रही हैं. वे बताती हैं कि अमेरिका में पंडाल नहीं बनते. लोग मंदिर में ही पूजा करते हैं. पूजा के मौके पर दफ्तर से छुट्टी मिलने के बाद मोहल्ले के सभी लोग मंदिर में इकट्ठा होते हैं और सामूहिक रूप से मां की पूजा करते हैं. भारत की तरह यहां भी नवरात्र में डांडिया की धूम रहती है. खासकर महिलाएं और लड़कियां मंदिर प्रांगण में एक निश्चित समय तक डांडिया करती हैं. स्नेहा के पति अमन सिंघल माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में इंजीनियर हैं. उनके मुताबिक डांडिया में करीब 75 प्रतिशत भारतीय होते हैं. 25 फीसदी अमेरिकन भी इसमें भाग लेते हैं. स्नेहा के मुताबिक नवरात्र में सीएटल में जमशेदपुर की तरह चहल-पहल नहीं रहती. सुजीत कुमार, चीन भारतीय ग्रुप बनाकर खेलते हैं डांडियान्यू रानी कुदर के रहने वाले सुजीत कुमार पिछले सात साल से चाइना के ताइपेई में रह रहे हैं. व्यस्तता के कारण वह बड़ी मुश्किल से ही किसी त्योहार में घर आ पाते हैं. ऐसे में वह वहां पर भी पूरी श्रद्धा के साथ नवरात्र मनाते हैं. सुजीत ने फोन पर बताया कि वह यहां एक योग शिक्षक के रूप में कार्य करते हैं. उन्होंने बताया कि अपने देश की तरह यहां का माहौल तो नहीं होता, लेकिन हम भारतीयों का ग्रुप एक बड़ा सा हॉल बुक करके गरबा व डांडिया खेलते हैं. उन्होंने कहा कि मैं चीन के ताइपेई में सबसे ज्यादा अपने शहर का पंडाल मिस करता हूं. लक्ष्मी सिंह, दुबई कन्या पूजन में मुस्लिम बच्चियां भी होती हैं गोलमुरी केबल बस्ती निवासी राजेश कुमार सिंह दुबई में इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर के पद पर 10 वर्षों से कार्यरत हैं. दुबई के आबुधाबी में वे अपनी पत्नी लक्ष्मी सिंह एवं आठ वर्षीय बेटी बेबो के साथ रहते हैं. राजेश सिंह की पत्नी लक्ष्मी सिंह बताती हैं कि आबुधाबी में नवरात्र में भारतीय समुदाय के लोग अपने-अपने घरों में ही मां भगवती की आराधना करते है. यहां कलश स्थापना के लिए हिंदू धर्म के एक मंदिर में जाना पड़ता है, जो घर से काफी दूर हैं. यहां हिंदू समुदाय की महिलाएं उपवास नहीं रखती हैं. शाम के वक्त सभी अपने-अपने घरों में माता-रानी के नाम का जोत जलाते हैं. इसके बाद सोसाइटी के लोग एकजुट होकर भक्तिभाव के साथ ऑनलाइन भजन, कथा एवं पाठ सुनते हैं. अष्टमी एवं नवमी के दिन यहां हिंदू समाज की महिलाएं कन्या भोजन का आयोजन करती हैं. कन्या भोज में मुस्लिम परिवार के लोग भी अपनी बच्चियों को प्रसाद ग्रहण करने के लिए भेजते हैं.श्वेता पंडित, कनाडानौ दिनों तक होता है डांडिया व गरबा-स्वेता के नाम से फोटो हैसोनारी कबीर मंदिर की रहनेवाली श्वेता पंडित फिलहाल कनाडा के टोरंटो में रह रही हैं. उनके पति विवेक पंडित वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं. वे हाल ही में कनाडा आयी हैं. नवरात्र में श्वेता जमशेदपुर को मिस कर रही हैं. वे कहती हैं कि यहां पूजा पंडाल नहीं बनता है. लेकिन नवरात्रि के नौ दिनों तक यहां रंगारंग कार्यक्रम, डांडिया, गरबा आदि का आयोजन होता है. पूजा के लिए अगर आपको मूर्ति बैठानी है तो अपने घर में बैठाइये. इसके लिए वहां इको फ्रैंडली मूर्ति मिलती है. अगरबत्ती या धूप जलाने के लिए भी लोगों को पुलिस से अनुमति लेनी होती है. यहां बड़े स्तर पर कार्यक्रम का आयोजन करने के लिए हॉल या कम्युनिटी सेंटर बुक करना पड़ता है. पूजा के दौरान कल्चरल प्रोग्राम होता है, जिसमें बड़े स्तर पर डांडिया,गरबा एवं डांस आदि होता है, जिसमें हमलोग वीकेंड में शुक्रवार, शनिवार एवं रविवार को छुट्टी के दिन शामिल होकर खूब मस्ती करते हैं. इस दौरान इंडियन फूड का स्टॉल भी लगाया जाता है. उनके पति विवेक कहते हैं अपनी देश के मिट्टी एवं संस्कृति को कैसे भूला जा सकता है. डांडिया एवं गरबा के लिए इंडिया से कलाकार को बुलाया जाता है. बॉलीवुड स्टार भी आते हैं.श्वेता महेंद्रु,यूकेजमशेदपुर जैसी बात और कहांजमशेदपुर में जन्मी श्वेता पिछले तीन सालों से यूके के केमडेन में रहती हैं. वे बताती हैं कि लंदन की सबसे बड़ी पूजा का आयोजन लंदन दुर्गापूजा दशहरा कमेटी द्वारा आयोजित की जाती है. यहां विधि विधान से दुर्गा पूजा होती है. लेकिन जमशेदपुर जैसी रौनक नहीं दिखती है. एक अधूरापन सा लगता है. बंगाली या नॉन बंगाली कम्युनिटी के लोग ट्रेडिशनल परिधान व नयी साड़ी, ज्वेलरी में सजधज कर इस पूजा में शामिल होते हैं. बच्चों के लिए पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है. पूजा के दौरान उनके बनाये गये पेंटिंग पंडाल में सजाये जाते हैं. भोग बनता है. जिसका आनंद सभी साथ मिल कर उठाते हैं. शाम में बांग्ला बैंड, ढाकी की धुन पर सभी नृत्य करते हैं. पंडाल के बाहर मेला भी लगता है. लेकिन शहर की तरह यहां पंडाल-पंडाल घुमने का मौका नहीं मिलता है. घर में पति जैन कटारिया और मैं नवरात्र का उपवास रख कर मां की पूजा करते हैं.
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प्रवासी भारतीयों की दुर्गापूजा
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