जॉली विश्वकर्मा, गुमला गुमला से 10 किमी दूर प्रस्तावित प्रखंड टोटो में दुर्गा पूजा का इतिहास सबसे पुराना है. यहां 100 साल से भी पहले से दुर्गा पूजा की जा रही है. सबसे पहले स्व मोती साव के आग्रह पर उनके घर के पास दुर्गा पूजा प्रारंभ की गयी थी. उसके बाद दुर्गा मंदिर स्थित खपरैल कच्चा घर में दुर्गा पूजा की जाने लगी. मास्टर साहब ने बताया कि बड़ा ठाकुरबाड़ी में लोग बैठक कर एक माह पहले से दुर्गा पूजा की रूप रेखा तैयार करते थे. उस समय बलदेव साव, नंदनी साव, रामजी साव, सुरेंद्र साव गांव में घूमकर चंदा इकट्ठा करते थे. उस समय का बजट मात्र तीन सौ रुपया था. तीन सौ रुपया में संपूर्ण दुर्गा पूजा संपन्न हो जाती थी. रात में बिजली, जेनरेटर, गाड़ी की व्यवस्था नहीं होती थी. लोग पेट्रोमेक्स के प्रकाश में पूजा करते थे. माता दुर्गा की प्रतिमा बनाने के लिए बंगाल से कारीगर आते थे. वहीं बुरहु गांव के एक आचार्य के द्वारा पूजा करायी जाती थी. टोटो का रामलीला व ड्रामा जिलेभर में मुख्य आकर्षण का केंद्र था. गुमला, जशपुर, लोहरदगा सहित आस पास के गांवों से भारी संख्या में लोग रामलीला व ड्रामा देखने टोटो आते थे. दूसरे समुदाय के लोग भी नाटक मंचन को देखते थे. स्व. किशुन साव सबसे अच्छे कलाकार माने जाते थे. वहीं दशमी के दिन बाजार टांड़ में नीलकंठ पक्षी भी उड़ाया जाता था. इस पक्षी को देखना अत्यंत शुभ माना जाता है. दुर्गा माता की प्रतिमा को पालकी की तरह छह लोग कंधे में लेकर नगर भ्रमण कराते थे. दो लोग आगे पीछे रोशनी के लिए पेट्रोमेक्स लेकर चलते थे. बड़ा तालाब टोटो में ही माता दुर्गा के प्रतिमा का विसर्जन किया जाता था. फिर बड़ा दुर्गा मंदिर व अनामिका दुर्गा पूजा समिति टोटो का गठन कर दुर्गा मंदिर भवन में पूजा की जाने लगी.
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