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हापामुनी में महामाया मां मंदिर की स्थापना 11 सौ साल पहले भूतों के उपद्रव को खत्म करने के लिए हुई थी

गुमला जिले से लगभग 26 किलोमीटर दूर स्थित घाघरा प्रखंड का हापामुनी गांव धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है.

खुली आंखों से महामाया मां को देखने से चली जाती है रोशनी.

22 गुम 32 में मंदिर में मां की प्रतिमा

जगरनाथ पासवान, गुमला

हापामुनी का महामाया मंदिर: आस्था, इतिहास और रहस्य

गुमला जिले से लगभग 26 किलोमीटर दूर स्थित घाघरा प्रखंड का हापामुनी गांव धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस गांव के मध्य में स्थित महामाया मां का मंदिर हिंदू श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है. यह मंदिर लगभग 1100 वर्ष पुराना है, जिसकी स्थापना विक्रम संवत 965 में हुई थी. मंदिर की विशेषता इसकी रहस्यमयी परंपराएं, तांत्रिक महत्व और सामाजिक आंदोलनों से जुड़ी ऐतिहासिक घटनाएं हैं.

मूर्ति और पूजा की परंपरा

मंदिर के गर्भगृह में महामाया मां की मूर्ति एक मंजुषा (बक्सा) में बंद रखी जाती है. मान्यता है कि महामाया मां को खुली आंखों से देखना वर्जित है. वर्ष में एक बार चैत कृष्ण पक्ष की परेवा तिथि को डोल जतरा महोत्सव के दौरान मंजुषा को मंदिर के डोल चबूतरा पर लाया जाता है. मुख्य पुजारी आंखों पर काली पट्टी बांधकर मां की पूजा करते हैं. मंदिर के बाहर महामाया मां की एक दूसरी प्रतिमा स्थापित है, जहां आम भक्तजन पूजा-अर्चना करते हैं।

लरका आंदोलन और वीरता की गाथा

महामाया मंदिर का संबंध लरका आंदोलन से भी है. इस आंदोलन के दौरान बरजू राम नामक व्यक्ति मंदिर में पूजा में लीन था, जब बाहरी आक्रमणकारियों ने उसकी पत्नी और बच्चे की हत्या कर दी. बरजू का सहयोगी राधो राम, जो दुसाध जाति का था, ने उसे यह दुखद समाचार दिया. मां महामाया की शक्ति से राधो राम ने तलवार उठायी और आक्रमणकारियों से युद्ध किया. मां ने चेतावनी दी थी कि वह अकेले सबको पराजित कर सकता है, लेकिन यदि पीछे मुड़कर देखेगा तो उसका सिर धड़ से अलग हो जायेगा. राधो ने वीरता से युद्ध किया, परंतु जैसे ही पीछे मुड़ा, उसका सिर कट गया. आज भी मंदिर परिसर में बरजू और राधो की समाधि स्थल मौजूद है.

भूतों का उपद्रव और मां भगवती की स्थापना

हापामुनी गांव का नाम एक तपस्वी ‘हप्पा मुनी’ के नाम पर पड़ा, जो मुंडा जाति के थे और कम बोलते थे. मुंडा भाषा में ‘हप्पा’ का अर्थ होता है ‘चुप’. एक समय मांडर क्षेत्र की दक्षिणी कोयल नदी के बियार दह में हीरा और मोती पाने के लोभ में हजारों लोग डूब गये. कहा जाता है कि उनकी आत्माएं भूत बनकर गांवों में घूमने लगीं. इस उपद्रव को समाप्त करने के लिए मां भगवती की प्रतिमा स्थापित की गयी, जिससे गांव में शांति लौट आयी.

महामाया मंदिर एक तांत्रिक पीठ है

जिस काल में महामाया मंदिर की स्थापना की गयी. वह काल बड़ा ही उथल पुथल का था. क्योंकि तंत्र मंत्र व भूत प्रेतात्माओं की शक्ति आदि के बारे में आज भी छोटानागपुर के लोग विश्वास करते हैं. उस जमाने में यहां भूत प्रेत का वास होने की बात हुई. तभी यहां तांत्रिकों का जमावड़ा हुआ. पूजा पाठ किया जाने लगा. यहां यह भी मान्यता है कि उस जमाने में चोरी व किसी प्रकार का अपराध करने वालों को यहां कसम खाने के लिए लाया जाता था. मंदिर के अंदर अपराधी को ले जाने से पहले ही वह अपना अपराध स्वीकार कर लेता था. उस समय मंदिर के पुजारी की बात को प्राथमिकता दी जाती थी.

मंदिर का द्वार पश्चिम की ओर है

महामाया मंदिर का द्वार पश्चिम की ओर है. जैसा की अन्य मंदिरों में नहीं होता है. कहा जाता है कि 1889 में जब कोल विद्रोह हुआ था. उस समय मंदिर को कोल विद्रोहियों ने ध्वस्त कर दिया था. तब विद्रोहियों ने महामाया को आह्वान करते हुए कहा था कि अगर महामाया शक्तिशाली है, तो इस मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम की ओर हो जाये. उनकी बात से मंदिर में भयंकर गड़गड़ाहट हुई और दरवाजा पश्चिम की ओर हो गया.

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