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Jharkhand News : गुमला के साक्षरताकर्मियों का 57.65 लाख बकाया, प्रशासनिक लापरवाही से राशि हुई सरेंडर

गुमला के साक्षरता कर्मियों का 57 लाख 65 हजार रुपये बकाया है. दिसंबर, 2020 में सरकार ने 24 लाख रुपये गुमला प्रशासन को दिया था, ताकि साक्षरताकर्मियों को उनकी मेहनत का पैसा मिल सके. लेकिन, प्रशासनिक लापरवाही के कारण पैसे बंटे नहीं और मार्च, 2021 में 24 लाख रुपया सरेंडर कर दिया गया.

Jharkhand News (दुर्जय पासवान, गुमला) : साक्षर भारत अभियान के साक्षरताकर्मियों ने निरक्षरों को लिखना व पढ़ना सिखाया. सरकार की योजनाओं को धरातल पर उतारा. गांव-गांव में जागरूकता अभियान चलाया. अंधविश्वास व नशापान के खिलाफ काम किया, लेकिन आज ये साक्षरताकर्मी अपनी मेहनत का पैसा के लिए सरकारी बाबुओं के कार्यालयों का चक्कर काट रहे हैं. इसके बावजूद प्रशासनिक लापरवाही से साक्षरताकर्मियों का अपना ही पैसा नहीं मिल रहा है.

साक्षरता कर्मियों की फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल में बढ़ रही है. यहां तक कि साक्षरताकर्मियों की फाइल एक ऐसे अधिकारी के टेबल तक पहुंच गयी. जहां फाइल दबकर रह गया है. यहां बता दें कि सरकार के पास साक्षरताकर्मियों का 57 लाख 65 हजार रुपये बकाया है.

इसके एवज में सरकार ने वर्ष 2020 के दिसंबर माह में 24 लाख रुपये गुमला प्रशासन को दिया था, ताकि साक्षरताकर्मियों को उनकी मेहनत का पैसा मिल सके. लेकिन, प्रशासन की लापरवाही से पैसा बंटा नहीं. 2021 के मार्च माह में 24 लाख रुपये सरेंडर कर गया. इसके बाद से साक्षरताकर्मी भटक रहे हैं. गुमला जिले में 280 प्रेरक व 9 BPM का पैसा बकाया है.

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उपनिदेशक ने प्रेरकों की मांगी विवरणी, गुमला ने नहीं भेजी

स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग झारखंड सरकार के उपनिदेशक रतन कुमार महावर ने DEO और DSE को पत्र लिखे हैं. जिसमें श्री महावर ने साक्षर भारत कार्यक्रम से संबंधित प्रेरकों का बकाया मानदेय की विवरणी की मांग की है. श्री महावर ने कहा है कि अबतक सिर्फ गोड्डा व देवघर जिला से विवरणी प्राप्त हुई है. लेकिन, अन्य जिलों से स्पष्ट विवरणी प्राप्त नहीं होने के कारण सामेकित रूप से मानदेय भुगतान में कठिनाई हो रही है.

उन्होंने एक सप्ताह के अंदर सभी जिलों से सॉफ्ट व हार्ड कॉपी में प्रेरकवार बकाया मानदेय की विवरणी उपलब्ध कराने के लिए कहा गया है. अगर एक सप्ताह के अंदर विवरणी प्रस्तुत नहीं की जाती है, तो यह मान लिया जायेगा कि प्रेरकों का बकाया नहीं है. भविष्य में अगर लंबित बकाया की मांग की जाती है, तो इसकी सारी जवाबदेही संबंधित जिला के पदाधिकारी की होगी.

यहां बता दें कि श्री महावर ने 23 अगस्त 2021 को पत्र लिखकर विवरणी की मांग की है. इसके बावजूद अभी तक गुमला प्रशासन की कार्यप्रणाली के कारण प्रेरकवार विवरण तैयार नहीं किया गया है और न ही उपनिदेशक को विवरणी भेजी गयी है.

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31 मार्च, 2018 से बंद है साक्षर भारत अभियान

साक्षरता अभियान मतलब लिखना, पढ़ना व गणित सीखना. गुमला में यह अभियान पूरे जोर-शोर से चली. 15 वर्ष से 60 वर्ष तक के जितने भी निरक्षर लोग थे. उन्हें साक्षर बनाने का अभियान चला. 65 से 70 वर्ष के आयु वाले वृद्ध भी पढ़ने में रुचि लेने लगे. 280 प्रेरक, 9 BPM और 10 हजार स्वयंसेवी शिक्षकों की मेहनत का परिणाम था कि अनपढ़ लोग पढ़ने लगे. हाथों में कलम पकड़ कर हस्ताक्षर भी करने लगे. गांव के अखाड़ा में बैठकर लोग एक-दूसरे को अखबार पढ़कर सुनाने लगे थे.

लेकिन, यह अभियान अक्षर ज्ञान से आगे नहीं बढ़ सका. क्योंकि वर्ष 2018 के 31 मार्च से साक्षर भारत अभियान को बंद कर दिया गया है. अभियान बंद होते ही गांवों में पढ़ाने की गति भी रूक गयी. जो प्रेरक थे, वे बेरोजगार हो गये. स्वयंसेवी शिक्षक भी पढ़ाने से मुक्त हो गये. ऐसे में साक्षर भारत अभियान बंद होने से राज्य कैसे पूर्ण साक्षर होगा. इसपर सवालिया निशान लग गया है.

साक्षरता अभियान से जुड़े अधिकारियों की सुने तो उनका कहना है कि अगर हम किसी चीज का लगातार अभ्यास करते हैं, तो उसका ज्ञान रहता है, लेकिन जैसे ही हम अभ्यास करना छोड़ देते हैं. फिर हमारी पहचान पुराने नौसिखवा की तरह हो जाता है. ठीक उसी प्रकार साक्षरता अभियान है. जबतक लोग लिखना-पढ़ना सीखते रहे. उन्हें अक्षर ज्ञान की जानकारी रही. लेकिन, जैसे ही पढ़ाई बंद किया. अक्षर ज्ञान की जानकारी भी खत्म हो गयी.

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कर्मियों का विकास के कामों में भी योगदान था

साक्षरताकर्मी न सिर्फ साक्षरता अभियान का काम करते थे, बल्कि सरकार द्वारा संचालित विभिन्न विकास योजनाओं को धरातल में उतारने में अपनी भूमिका निभाते थे. साक्षरता अभियान में 280 प्रेरक व 10 हजार स्वयंसेवी शिक्षक हैं, जो गांव-गांव में लोगों को पढ़ाने-लिखाने के अलावा लोगों को सरकार की योजना की जानकारी देते थे. ब्लॉक से चलने वाली योजनाओं को पूरा कराने में सहयोग करते थे.

लेकिन, साक्षर भारत अभियान बंद होने के बाद इन 280 प्रेरकों के समक्ष रोजी-रोटी की समस्या उत्पन्न हो गयी है. क्योंकि महीने में 2000 रुपये ही मानदेय मिलता था. लेकिन, बेरोजगारी में लोगों को पढ़ा कर घर को चूल्हा जलाने में मदद मिलती थी. जबकि 10 हजार स्वयंसेवी शिक्षक नि:शुल्क सेवा देते आये हैं.

परेशान हैं साक्षरताकर्मी : अलख सिंह

इस संबंध में साक्षर भारत अभियान के अलख सिंह ने कहा कि प्रेरक व बीपीएम का पैसा बकाया है. वर्ष 2018 से बकाया मानदेय के लिए भटक रहे हैं. सरकार ने गुमला प्रशासन को पैसा भी दिया, लेकिन उसका भुगतान नहीं हुआ. जिस कारण सरकार द्वारा भेजी गयी 24 लाख रुपये सरेंडर कर गया. साक्षरताकर्मी बकाया मानदेय नहीं मिलने से परेशान हैं.

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Posted By : Samir Ranjan.

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