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– कार्यक्रम में सांसद ने कहा, अलबर्ट एक्का से मिली – अलबर्ट एक्का की गाथा आज भी गाते हैं लोग – ओमप्रकाश चौरसिया – गुमला : शहीदों के चिताओं पर हर बरस लगेंगे मेले, वतन पे मरने वालों का बाकी यही निशा होगा. यह युक्ति शहीद परमवीर चक्र विजेता शहीद अलबर्ट एक्का पर सटीक बैठता […]

– कार्यक्रम में सांसद ने कहा, अलबर्ट एक्का से मिली

– अलबर्ट एक्का की गाथा आज भी गाते हैं लोग

– ओमप्रकाश चौरसिया –

गुमला : शहीदों के चिताओं पर हर बरस लगेंगे मेले, वतन पे मरने वालों का बाकी यही निशा होगा. यह युक्ति शहीद परमवीर चक्र विजेता शहीद अलबर्ट एक्का पर सटीक बैठता है.

1971 के भारत-पाक युद्ध के दौरान गुमला जिला के अलबर्ट एक्का ने अपनी अदम्य साहस व शौर्य का परिचय देते हुए दुश्मनों के मनसूबों पर फानी फेर दिया था. देश की रक्षा की खातिर इस लांस नायक ने अपनी प्राणों की आहूति तीन दिसंबर को दे दी.

1942 के ऐतिहासिक क्रांति वर्ष में गुमला जिलान्तर्गत डुमरी प्रखंड के ग्राम जारी में जूनियस एक्का के छोटे से परिवार में एक ‘वन प्रसून’ खिला. जिसका नाम अलबर्ट एक्का रखा गया. शैशव काल से ही तेजस्वी यह बालक आरसी मिशन विद्यालय, भिखमपुर से विद्याजर्न किया.

इसके हृदय में देश सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी. परिणाम स्वरूप वह सेना में भरती हो गया. 1971 में अचानक पड़ोसी देश पाकिस्तान ने भारत पर हमला कर दिया. इस दौरान लांस नायक अलबर्ट एक्का अपनी टुकड़ी के साथ पूर्वी सीमा पर गंगा सागर के निकट 14 सहयोगियों के साथ मिल कर दुश्मनों को रौंदते हुए आगे बढ़ रहे थे. गोलियों की निरंतर बारिश हो रही थी.

अलबर्ट एक्का शनै: शनै: अपने दल के साथ आगे बढ़ते रहे. अलबर्ट एक्का की दृष्टि दुश्मनों के एक ऐसी मशीनगन पर पड़ी जो उनकी टुकड़ी को भारी क्षति पहुंचा रही थी. अगले ही पल अलबर्ट ने अपूर्व साहस का परिचय देते हुए उस चौकी पर धावा बोल दिया. देखते-देखते दो शत्रु सैनिकों को मौत की नींद सुला कर अलबर्ट ने उस मशीनगन के चिथड़े उड़ा दिये.

इस घटना में अलबर्ट गंभीर रुप से घायल हो चुके थे. घायलावस्था में भी वे दुश्मनों की चौकियों को तबाह और ध्वस्त करते हुए आगे बढ़ते ही गये. जहां से अलबर्ट एक्का आगे बढ़ रहे थे ठीक उसके उत्तर दिशा में दुश्मन सैनिकों का एक जत्था शक्तिशाली मशीनगन से निरंतर गोलियां बरसा रहा था.

अलबर्ट का पूरा शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था. फिर भी वे रेंगते हुए उस आग उगलते मशीनगन को नष्ट करने की अपूर्व मनोकांक्षा के साथ उत्तरी दिशा की ओर मुड़ गये. मौका मिलते ही उन्होंने एक हाथ बम शत्रुओं के बीच फेंक कर एक शत्रु सैनिक को वहीं पर ढेर कर दिया. परंतु इतना होने पर भी मशीनगन आग उगलती रही. उसकी हरकत अलबर्ट एक्का किसी भी कीमत पर बंद करना चाहते थे.

अंतत: दृढ़ ईश्वरीय प्रेरणा एवं देश भावना से प्रेरित वे पास की एक दीवार पर चढ़ गये. इसके पश्चात् अति उत्साह के साथ वे उस बंकर में घुस गये तथा एक क्षण में ही मशीनगन चला रहे शत्रु सैनिक को वहीं ढेर कर दिया. कुछ क्षण उपरांत वे ‘ जय भारत’ के उद्घोष के साथ ओठों पर विजय की अपूर्व मुस्कान लिये भारत माता की गोद में सदा के लिये सो गये. भारत सरकार ने मरणोपरांत उस योद्धा को ‘परमवीर चक्र’ प्रदान कर उनकी वीरता एवं देश सेवा भाव का सही मूल्यांकन किया.

गुमला जिला का नाम रोशन करने वाले परमवीर अलबर्ट एक्का की स्मृति में गुमला जिला प्रशासन एवं आम जनता ने गुमला शहर के बीच में एक स्टेडियम बनवाया. जहां खेलकूद एवं अन्य कार्यक्रमों का आयोजन होता चला आ रहा है. उनके पैतृक गांव जारी में हर वर्ष प्रतियोगिता व कई अन्य कार्यक्रम होते हैं. चैनपुर प्रखंड मुख्यालय, डुमरी प्रखंड में शहीद अलबर्ट एक्का की कई भव्य प्रतिमाएं स्थापित है.

चैनपुर कॉलेज का नाम इसी महाननायक के नाम पर परमवीर अलबर्ट एक्का कॉलेज चैनपुर रखा गया है. मगर आज भी शहीद के परिजनों को जितना सम्मान मिलना चाहिए, वह नहीं मिल पाया है. हालांकि जिला प्रशासन द्वारा परिजनों के लिए बहुत कुछ किया है.

मगर सरकार द्वारा जो सुविधाएं मिलनी चाहिए वह नहीं मिल पायी है. इधर झाखंड सरकार ने वीर शहीद के पुत्र भीमसेंट को नौकरी देकर एक अच्छा पहला किया है.

प्रखंड का अपेक्षित विकास नहीं हो सका : झारखंड सकार ने वीर शहीद के नाम पर जारी को प्रखंड का दर्जा तो दे दिया है. मगर जितना विकास होना चाहिए था उतना गांव का विकास नहीं हो पाया है.

गांव तक जाने के लिए पक्की सड़क का अभाव है. लोग जारी जाने के लिए छत्तीसगढ़ होकर जाते हैं. प्रखंड कार्यालय तो बन गया है, लेकिन अन्य मूलभूत सुविधाएं नहीं है. स्वास्थ्य केंद्र का काम आधा अधूरा है. पांच पंचायत का यह प्रखंड जिले के सबसे छोटा प्रखंड है.

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