खुशी मार्ट अग्निकांड से पचंबा में दूसरे दिन भी पसरा रहा सन्नाटा, बंद रही इलाके की अधिकांश दुकानें
टूटा डालमिया परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़
इस हादसे में अपनी पत्नी संगीता डालमिया (45) और बेटी खुशी डालमिया (21) को खो चुके दिनेश डालमिया सदमे में हैं. उनके आंखों से आंसू थमने का नाम नहीं ले रहा है. परिवार के अन्य सदस्य शवों के अंतिम दर्शन के बाद से ही लगातार रोते-बिलखते नजर आये. हर किसी की जुबान पर बस यही शब्द थे, ऐसा कैसे हो गया. मोहल्ले की महिलाएं ढांढस बंधाने के लिए जुटी रहीं. पूरे इलाके में जैसे सब कुछ रुक गया है. आम दिनों में जो मोहल्ला चहल-पहल से भरा रहता था, वहां अब खामोशी है. बच्चे बाहर नहीं खेल रहे, लोग आपस में ज्यादा बात भी नहीं कर रहे. कई दुकानदारों ने दुख की वजह से अपनी दुकानें बंद रखी हैं. हर कोई इस घटना से बहुत दुखी है. जब भी लोग उस जले हुए घर की तरफ देखते हैं तो आंखें भर आती हैं. किसी को यकीन नहीं हो रहा कि खुशी और उसकी मां अब इस दुनिया में नहीं रहीं. मोहल्ले के लोग अभी तक उस मंजर को भूल नहीं पा रहे हैं. रिश्तेदार के घर बिताई रात, अब सूरत जाने की तैयारी में परिवारआगलगी की घटना ने डालमिया परिवार की पूरी जिंदगी ही बदल दी है. आग ने पूरे घर को अपनी चपेट में ले लिया जिससे मकान पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है. घर का हर कोना, हर दीवार, हर सामान सब कुछ जलकर राख हो गया. अब उनके पास न तो सिर छुपाने की जगह बची है, न ही उस घर में लौटने की हिम्मत. ऐसे हालात में दिनेश डालमिया अपने परिवार के साथ फिलहाल अपने छोटे चाचा नरेश डालमिया के घर पर ठहरे हुए हैं. उन्होंने रात उसी घर में गुजारी. परिवार ने बताया कि वे अब गिरिडीह छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं. वे सभी लोग जल्द ही सूरत चले जाएंगे, जहां उनके बड़े भाई राजेश डालमिया पहले से रह रहे हैं. राजेश वहां एक चार्टर्ड अकाउंटेंट के रूप में कार्यरत हैं. परिवार का कहना है कि अब यहां रहना उनके लिए बेहद मुश्किल हो गया है, क्योंकि हर जगह उन्हें वही मंजर याद आता है.वीरान पड़ा है घर, जगह-जगह मलबों का ढेरआग ने सिर्फ जिंदगियां नहीं छीनी, एक पूरे घर का वजूद भी लील लिया. डालमिया परिवार का वह तीन मंजिला मकान जो कभी रौनक से भरा रहता था, आज पूरी तरह खामोश और उजड़ा हुआ नजर आता है. घर के हर हिस्से में तबाही की तसवीर साफ दिखती है. जहां कभी रिश्तों की गर्माहट हुआ करती थी, वहां अब राख, जले हुए सामान और बिखरे मलबों के ढेर पड़े हैं. कमरों की दीवारें काली पड़ चुकी हैं, छतों का प्लास्टर झड़ चुका है और दरवाजों की चौखटें जलकर मुड़ गई हैं. फर्निचर और घरेलू सामान पूरी तरह से राख में बदल चुके हैं. रसोईघर में सिर्फ बर्तन के जले अवशेष बचे हैं और बेडरूम की हालत ऐसी है कि वहां झांकना भी किसी के लिए आसान नहीं. सीढ़ियों से लेकर छत तक, हर कोने में आग के निशान अब भी मौजूद हैं. घर के बाहर भी सन्नाटा पसरा है.
सवालों के घेरे में अग्निशमन विभाग, लापरवाही का आरोपइस हृदयविदारक त्रासदी के बाद अग्निशमन विभाग की कार्यशैली पर कई गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं. दिनेश डालमिया के चाचा नरेश डालमिया ने दमकल विभाग पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए कहा कि अगर दमकल कर्मियों ने समय रहते कार्रवाई की होती तो शायद उनकी जान बचाई जा सकती थी. बोले कि दमकल की गाड़ी तो समय पर पहुंची, लेकिन सीढ़ी खोलने में ही उन्हें करीब 20 मिनट का वक्त लग गया. इस दौरान घर के अंदर आग विकराल रूप ले चुकी थी. उन्होंने कहा अगर सीढ़ी समय पर खुल जाती और दमकलकर्मी सक्रियता दिखाते, तो शायद आज खुशी और संगीता हमारे बीच होती. इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि दमकलकर्मी घर के अंदर जाने की हिम्मत नहीं दिखा सके. पूरे ऑपरेशन के दौरान मोहल्ले के लोगों ने ही जान जोखिम में डालकर अंदर घुसने की कोशिश की और आग बुझाने में मदद की. दमकल विभाग के पास न तो उचित संसाधन थे, न ही कोई प्रभावी योजना नजर आई. इस लापरवाही के बाद लोगों में गुस्सा और नाराजगी साफ झलक रही है. मोहल्ले वासियों का कहना है कि ऐसी घटनाओं में यदि बचाव दल तुरंत और प्रभावी ढंग से कार्रवाई करे, तो जानमाल की हानि को रोका जा सकता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

