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सविता का सहारे बने गरीब मौसी-मौसा, अब सरकार के सहारे की जरूरत

सविता का सहारे बने गरीब मौसी-मौसा, अब सरकार के सहारे की जरूरत

संदीप कुमार, केतार महज 10 वर्ष की उम्र में जिंदगी के तमाम दर्द झेल चुकी बीजडीह गांव की सविता कुमारी हिम्मत और उम्मीद की मिसाल बन गयी है. बचपन में ही मां-बाप का साया सिर से उठ जाने के बाद वह पिछले एक वर्ष से अपने मौसी-मौसा जितेंद्र राम और बिरौनी देवी के साथ रह रही है. सविता का ननिहाल उत्तर प्रदेश के घिवही गांव में है. उसकी मां रजनी देवी का विवाह करीब एक दशक पूर्व राबर्ट्सगंज के बुलू राम से धूमधाम से हुआ था. मगर सविता के जन्म के एक साल बाद ही उसके पिता दूसरी महिला के साथ घर छोड़कर चले गये. इसके बाद ससुराल वालों ने रजनी देवी और सविता को घर से निकाल दिया. कुछ महीनों तक ननिहाल में रहने के बाद मामा-मामी के अत्याचारों से तंग आकर नाना कृष्णा राम ने रजनी की दूसरी शादी श्री बंशीधर नगर के गरबांध गांव निवासी गौतम राम से कर दी, लेकिन वहां भी सविता को अपनाने वाला कोई नहीं मिला. गौतम राम के पहले से तीन बच्चे थे, और उनके परिवार ने सविता को घर में रखने से मना कर दिया. आखिरकार 9 वर्ष की उम्र में सविता को उसके बड़े मौसी-मौसा का सहारा मिला. वर्तमान में वह बीजडीह गांव में रह रही है. हालांकि, जितेंद्र राम और बिरौनी देवी खुद मजदूरी करके परिवार का पेट पालते हैं, जिससे सविता की परवरिश और पढ़ाई का खर्च उठाना उनके लिए कठिन हो रहा है. गांव के लोगों का कहना है कि सविता जैसी अनाथ बच्ची और उसका पालन कर रहे इस गरीब परिवार को सरकारी सहायता मिलनी चाहिए, ताकि सविता की पढ़ाई और भविष्य सुरक्षित हो सके.

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