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हिंदी दिवस : 14 साल से संताल प्रमंडल के राजभाषा विभाग में उपनिदेशक का पद खाली, सरकार को नहीं मिल रहे अधिकारी

1985 में संताल परगना प्रमंडल बना. इसी दाैरान प्रमंडलीय राजभाषा कार्यालय भी स्थापित हुआ. वर्ष 2009 से प्रमंडलीय राजभाषा में उपनिदेशक का पद खाली है. 14 साल से यह पद प्रभारियों के भरोसे ही चल रहा.

दुमका, आनंद जायसवाल : देश में सरकारी कार्यालयों में हिंदी का प्रयोग उत्तरोत्तर बढ़ रहा है, लेकिन अभी भी काम अंग्रेजी में हो रहा है. राजभाषा नीति का उद्देश्य है कि सामान्यत: सरकारी कामकाज में हिंदी का अधिकाधिक प्रयोग हो. यही भारतीय संविधान की मूल भावना के अनुरूप होगा. कहने की जरूरत नहीं है कि जनसाधारण की भाषा में सरकारी कामकाज करन से विकास की गति तेज होगी और प्रशासन में पारदर्शिता आयेगी. इस बात की जरूरत महसूस की जा रही है कि सरकारी कामकाज में हिंदी को और अधिक प्रभावशाली बनाया जाये. राजभाषा विभाग के क्षेत्रीय कार्यान्वयन कार्यालयों ने डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से वर्चुअल निरीक्षण करना भी शुरू कर दिया है. लेकिन, झारखंड में इस पर विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है. क्योंकि प्रमंडलीय कार्यालय संताल परगना का जो दुमका में है, वहां वर्षों से उपनिदेशक ही नहीं कर्मियों का पद रिक्त है. हांलाकि, राज्य सरकार के राजभाषा विभाग से पत्र, आदेश, निर्देश, अधिसूचना वगैरह हिंदी में जारी किये जा रहे हैं, लेकिन अभी भी हिंदी को और प्रभावशाली बनाने की जरूरत है. अभी भी केंद्र सरकार के मातहत अधिकांश कार्यालयों में और खासकर कोर्ट के फैसले अंग्रेजी में दिये जा रहे हैं.

जमीनी स्तर पर नहीं हो रही कोशिश

सभी सरकारी कार्यालय में राजभाषा हिंदी में अधिक से अधिक कामकाज हो और कामकाज की शैली इतनी सरल हो कि उसे आम जन समझ पायें, इसके लिए अब कोई जमीनी स्तर पर कोशिश नहीं होती. पहले इसके लिए न केवल प्रशिक्षण दिया जाता था, बल्कि अनुदेशक संबंधित कार्यालय में पहुंचकर प्रशिक्षण देने का काम करते थे. उसके बाद परीक्षाएं आयोजित कराते थे. भले ही आज भी सरकार हिंदी टिप्पण प्रारूपण के लिए पिछले कई दशकों से परीक्षाएं तक आयोजित करा रही है. इस परीक्षा में हर सरकारी कर्मचारी-हर अधिकारी को शामिल होते हैं और उसमें सफलता भी हासिल करनी होती है. पर निपुण बनाने के लिए कोई कार्यशाला-प्रशिक्षण आयोजित नहीं होती. पहले जो परीक्षा में सफल नहीं हो पाते थे, उन्हें राजभाषा के अनुदेशक विशेष प्रशिक्षण देने का दायित्व निभाते थे. इस परीक्षण के बाद उन्हें दोबारा परीक्षा में शामिल होने का अवसर मिलता था. अब यह परीक्षा ताे होती है, लेकिन प्रशिक्षण देने और हर विभाग में हिंदी टिप्पण प्रारूपण से संबंधित व्यवहारिक प्रशिक्षण देने का कोई इंतजाम नहीं रह गया है.

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1985 में संताल परगना प्रमंडल बना

1985 में संताल परगना प्रमंडल बना. इसी दाैरान प्रमंडलीय राजभाषा कार्यालय भी स्थापित हुआ. उपनिदेशक स्तर के अधिकारी के लिए इसमें शीर्ष पद सृजित हुआ. हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए तब से लेकर बिहार से झारखंड अलग होने तक बहुत सारी गतिविधियां इस कार्यालय की होती रहती थीं. अधिकारी से लेकर कर्मचारियों को हिंदी टिप्पण प्रारूपण के सही तौर-तरीके सीखाये जाते थे, ताकि संचिकाओं में वे अपनी टिप्पणी को स्पष्ट तौर पर लिख पायें. अलग राज्य बनने के बाद इस कार्यालय की गतिविधियां भी दम तोड़ने लगी. हिंदी टिप्पण प्रारूपण परीक्षा लेने और राजभाषा हिंदी दिवस पर संगोष्ठी करने तक इस कार्यालय की पहचान बची रही.

2009 से है उपनिदेशक का पद खाली

वर्ष 2009 से प्रमंडलीय राजभाषा में उपनिदेशक का पद खाली है. यानी 30 जून, 2009 को प्रमंडलीय उपनिदेशक राजभाषा के पद से धर्मनाथ झा के सेवानिवृत होने के बाद झारखंड सरकार को कोई अधिकारी नहीं मिला, जिसे इस पद पर वह पदस्थापित करे. 14 साल से यह पद प्रभारियों के भरोसे ही चल रहा. यही नहीं इस विभाग के प्रमंडलीय मुख्यालय में अधिकांश पद खाली हैं. कर्मी के नाम पर प्रमंडलीय राजभाषा कार्यालय में महज एक अनुसेवक ही सेवारत हैं.

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सभी पुराने जिले, अनुमंडल व प्रखंडों में है राजभाषा कर्मियों के पद सृजित

झारखंड अलग राज्य बनने से पहले यानी बिहार के जमाने में जो जिला, अनुमंडल व प्रखंड सृजित थे, उन सभी में राजभाषा के कर्मियों के पद सृजित थे. हिंदी राजभाषा है और उर्दू द्वितीय राजभाषा. इसलिए बिहार के वक्त हिंदी व उर्दू दोनों भाषाओं में सरकारी दफ्तरों में जन जागरूकता के लिए कई पट्टिकायें लगायी जाती थी. हिंदी में कामकाज के लिए लोगों को प्रेरित किया जाता था. लंबे अरसे से नियुक्ति न होने तथा समय दर समय कर्मियों के सेवानिवृत होने से पद खाली होते चले गये हैं. आज प्रमंडलीय राजभाषा की तरह ही कई जगहों पर पद खाली ही पड़े हुए हैं. मिली जानकारी के मुताबिक ऐसे क्षेत्रीय कार्यालयों में वरीय भाषा सहायक के 11 में से 8, भाषा सहायक के 52 में 33 तथा उर्दू हिंदी टंकक के 52 में से 20 से अधिक पद खाली पड़े हुए हैं.

पद : स्वीकृत : कार्यरत : रिक्त

उप निदेशक : 01 : 00 : 01

प्रमंडलीय राजभाषा अनुदेशक : 01 : 00 : 01

अनुदेशक आशुलिपिक : 01 : 00 : 01

सहायक अनुदेशक टंकक : 01 : 00 : 01

लिपिक सह टंकक : 01 : 00 : 01

अनुसेवक : 03 : 01 : 02

अधिसूचित बैंकों के लिए निर्देश

राजभाषा 1976 के नियम 10(4) के अनुसार केंद्र सरकार के जिन कार्यालयों के 80 प्रतिशत कार्मिकों में हिंदी का कार्यसाधक ज्ञान प्राप्त कर लिया हो, उन कार्यालयों के नाम राजपत्र में अधिसूचित करने का प्रावधान है. इसके तहत अधिसूचित बैंकों की शाखाओं में निम्नलिखित कार्य हिंदी में किये जायें : ग्राहकों द्वारा हिंदी में भरे गये आवेदनों और ग्राहकों की सहमति से अंग्रेजी में भरे गये आवेदनों पर जारी किये जाने वाले डिमांड ड्राफ्ट, भुगतान आदेश, क्रेडिट कार्ड, डेबिट कार्ड, सभी प्रकार की सूचियां, विवरणी, सावधि जमा, रसीद, चेकबुक संबंधि पत्र आदि, दैनिक बही, मस्टर रोल, प्रेषण बही, पासबुक, लॉगबुक में प्रविष्टियां, प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र, सुरक्षा व ग्राहक सेवा संबंधी कार्य, नये खाते खोलना, लिफाफे पर पते लिखना, कर्मचारियोन के यात्रा भत्ते, अवकाश, भविष्य निधि, आवास निर्माण अग्रिम, चिकित्सा संबंधी कार्य, बैठकों की कार्यसूची, कार्यवृत्त आदि.

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