झारखंड का ऐतिहासिक जनजातीय हिजला मेला के दूसरे दिन भी उत्साह का माहौल रहा. दुमका शहर से चार किमी दूर मयूरक्षी नदी के तट और हिजला पहाड़ी के बीच की मनोरम भूमि पर आदिवासी पारंपरिक वाद्ययंत्र सिंगा और सकवा के वादन, झिंझरी गायन और पायका नृत्य के साथ शुक्रवार को इस मेले की शुरुआत हुई.
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दुमका पीआरडी ने ड्रोन कैमरे से मेला की तसवीरों को कैद किया है. हम यह तसवीरें आपसे साझा कर रहे हैं.हिजला मेला इस साल अपनी 127 वां साल गिरह मना रहा है. 1855 में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ संताल विद्रोह हुआ था, जिसका अंग्रेजी प्रशासन ने रंक्तरंजित दमन किया था. इससे प्रशासन और आदिवासी समाज के बीच दूरी बन गयी थी. इस दूरी को कम करने के लिए 1889 में दुमका के तत्कालीन उपायुक्त बी कास्टियार्स ने इस मेले की शुरुआत की थी.
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आजादी के पहले तक यह मेला संताल परगना के विकास के लिए नियम और योजना बनाने का महत्वपूर्ण अवसर था. संताल परगना काश्तकारी कानून भी इसी मेले में बहस का परिणाम था.मेले में इस साल भी कृषि, पशुपालन, हस्तशिल्प, ग्रामीण विकास, सूचना, स्वास्थ्य और तकनीक से संबंधित प्रदर्शनी लगायी गयी