बरवाअड्डा : सीएनटी व एसपीटी एक्ट में छेड़छाड बरदाश्त किसी हाल में नहीं किया जायेगा. पूरा देश में लहर के बाद भी लिट्टीपाड़ा उपचुनाव में भाजपा की हार सीएनटी व एसपीटी एक्ट में छेड़छाड़ के कारण ही हुई. उक्त बातें झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन ने रविवार को बरवाअड्डा के अपना ढाबा में कही. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री रघुवर दास घमंड में चूर हैं.
इसके कारण अनाप-शनाप बयानबाजी कर रहे हैं. कहा कि भाजपा सरकार में अधिकारी बेलगाम हो गये हैं. झारखंड का दुर्भाग्य है कि एक तरफ जहां शराबंदी के लिए जहां महिलाएं आंदोलन चला रही हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार खुद शराब बेचने पर अमादा है. झारखंड अलग राज्य का आंदोलन में शराबबंदी भी एक अहम मुद्दा था. सरकार को जनता के प्रति जवाबदेह होने की जरूरत है. रघुवर दास झारखंड को विनाश की ओर ले जा रहे हैं. जनता सब देख रही है. आनेवाले विधान सभा चुनाव में भाजपा को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. मौके जिप सदस्य दुर्योधन प्रसाद चौधरी, लाल मोहन महतो आदि मौजूद थे.
जेनरिक दवा का स्वागत, लेकिन गुणवत्ता से समझौता नहीं
सवाल : डॉक्टर-मरीजों में बढ़ती दूरी को आप कैसे देखते हैं.
जवाब : सही है कि वर्तमान दौर में डॉक्टर व मरीज में काफी दूरी आयी है. मैं मानता हूं कि इसके दो प्रमुख कारण हैं. पहला डॉक्टरों की भारी कमी. दूसरा कारण सोशल साइट्स व राजनीति है. इससे डॉक्टरों पर वैचारिक हमला करना आसान है. कई बार अपनी पहचान बनाने के लिए डॉक्टर को विलेन घोषित कर दिया जाता है. ऐसे मामले में बाहरी तत्व ज्यादा हावी होते हैं.
सवाल : जेनरिक दवाओं का विरोध क्यों हैं?
जवाब : देखिए ऐसा नहीं है. हम विरोध नहीं करते हैं. सच बात यह है कि हम केवल उच्च गुणवत्ता की दवाइयों की वकालत कर रहे हैं. जो कि हर व्यक्ति को उपलब्ध हो. दूसरी बात दवा के दाम निर्धारण का काम गवर्नमेंट का है. इसमें डॉक्टरों का कोई योगदान नहीं होता है. सरकार को चाहिए की दवा के दामों पर नियंत्रण रखे तथा प्रत्येक नागरिक को सस्ती व गुणवत्ता वाली दवा मुहैया कराये.
सवाल : आप जेनरिक दवा की गुणवत्ता पर सवाल उठा रहे हैं.
जवाब : नहीं, मैं यह नहीं कह रहा हूं. सभी नागरिक चाहे अमीर हो या गरीब को सही गुणवत्ता वाली दवा जेनरिक के रूप में मिलती है, तो हम इसका स्वागत करते हैं. लेकिन प्रश्न यह उठ रहा है कि सरकार जब जेनरिक दवा ही लिखने की बात कह रही है, तो ब्रांडेड दवा बनाने के लिए लाइसेंस क्यों दे रही है?
सवाल : एमसीआइ के कोड ऑफ कंडक्ट में जेनरिक दवा लिखने का प्रावधान है, लेकिन इस पर रूचि नहीं ली गयी. अब तो इसके लिए एमसीआइ ने सकुर्लर जारी कर दिया है.
जवाब : एमसीआइ में जेनरिक दवा लिखने का पूर्व से प्रावधान है. मैं मानता हूं कि डॉक्टर जेनरिक दवा नहीं लिखते हैं. इसका कारण है कि जेनरिक दवा की गुणवत्ता को लेकर हमेशा हमारे मन में संशय की स्थिति रही है और चिकित्सा करते हुए हम किसी भी मरीज के स्वास्थ्य के साथ समझौता नहीं कर सकते हैं. हमारा प्रयास हर व्यक्ति को सबसे उच्चतम गुणवत्ता की दवा मुहैया कराना है.
सवाल : आप ब्रांड की वकालत कर रहे हैं. जेनरिक पर संशय क्यों? जबकि ब्रांडेड दवा बनाने वाली कंपनी ही इसका निर्माण करती हैं.
जवाब : देखिए, बीमारी फैलाने वाले कीटाणुओं का रूप निरंतर बदलता रहता है, जिसे म्यूटेशन कहते हैं. फलस्वरूप हर बदलते कीटाणुओं से लड़ने के लिए मालिकुलर की आवश्यकता होती है. नये मालिकुलर का पेटेंट 20 वर्षों का होता है. इसके लिए कंपनी लंबे समय तक रिसर्च कर यह दवा बनाती है. इस कारण रिसर्च का खर्च भी कंपनी ब्रांडेड दवा में जोड़ती है.
20 वर्षों के बाद ही इस दवा की कीमत घटती है. लेकिन जेनरिक के साथ ऐसा नहीं है. जेनरिक का कोई पेटेंट नहीं होता है. इस कारण इस पर हमें संशय है.
सवाल : भारत की बनी जेनरिक दवा भारी मात्रा में निर्यात हो रही है. दुनिया को हम सस्ती दवा दे रहे हैं, लेकिन यहां गरीबों को महंगी दे रहे हैं.
जवाब : यह सही है कि भारत से सबसे ज्यादा जेनरिक दवाएं विदेशों में निर्यात हो रही हैं. गुणवत्ता का एक मानक तय हो. स्वास्थ्य के सवाल पर नागरिकों को उनके सामर्थ्य के हिसाब से नहीं बांटा जा सकता है. यदि जेनरिक दवा गरीब खाता है, तो उसे सामर्थ्य वाले लोग भी खायें. नेता से लेकर सभी अफसर, कोई भी हो खाये. सभी सरकारी व कॉरपोरेट हॉस्पिटल में जेनरिक दवा ही उपलब्ध हो.
सवाल : दवा पर 30-50 प्रतिशत, जांच के नाम पर 20-40 प्रतिशत कमीशन, रेफर के नाम पर कमीशन का खेल कब बंद होगा?
जवाब : हर पेशा आज के दिन में कमीशन से जुड़ गया है. चिकित्सकीय सेवा भी इससे अछूती नहीं है. कुछ डॉक्टर कमीशनखोरी करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सभी चिकित्सक ऐसे ही हैं. कमीशनखोरी करने वाला समाज से छिपता नहीं है. मरीजों को मेरी सलाह है कि ऐसे चिकित्सक से बचें. जहां तक रेफर का मामला है, तो इसके लिए सरकारी सेवा को दुरूस्त करने की जरूरत है. सवाल : आप सरकारी सेवा को लचर बता रहे हैं, और डॉक्टर ड्यूटी से गायब रह कर प्रैक्टिस में रहते हैं.
जवाब : सरकारी डॉक्टर की नियुक्ति इस आधार पर नहीं की गयी है कि वह बाहर प्रैक्टिस नहीं करे. इसके लिए सरकार दोषी है.इसके लिए कानून लाये. डॉक्टरों को सरकार इतना मेहनताना मिले, कि वह बाहर प्रैक्टिस नहीं करे. कोल इंडिया व टिस्को में यह लागू है. धनबाद के सरकारी अस्पतालों में एक भी न्यूरोलॉजिस्ट, कार्डियोलॉजिस्ट डॉक्टर नहीं है इसकी जिम्मेदारी सरकार की है, लेकिन लोगों का कोप हमें सहना पड़ता है.
