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आजादी के दीवानों का आशियाना तिलक कला स्कूल उपेक्षित

मधुपुर: आजादी के दीवानों का आशियाना तिलक कला जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, काका कालेलकर, डॉ राजेंद्र प्रसाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, अनुग्रह नारायण सिंह, जय प्रकाश नारायण सरीखे महान विभूतियों का आगमन हुआ. आज भी उस स्कूल के बच्चे बेंच-डेस्क के लिए तरस रहे हैं. स्कूल के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को विवश हैं. यही […]

मधुपुर: आजादी के दीवानों का आशियाना तिलक कला जहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, काका कालेलकर, डॉ राजेंद्र प्रसाद, स्वामी सहजानंद सरस्वती, अनुग्रह नारायण सिंह, जय प्रकाश नारायण सरीखे महान विभूतियों का आगमन हुआ. आज भी उस स्कूल के बच्चे बेंच-डेस्क के लिए तरस रहे हैं. स्कूल के बच्चे जमीन पर बैठकर पढ़ने को विवश हैं.

यही नहीं इस ऐतिहासिक धरोहर में सरकार की ओर से वर्ष 2007 को गांधी हेरिटेज साइट बनाने की घोषणा की गयी थी लेकिन घोषणा के छह साल बाद भी यह हेरिटेज नहीं बन पाया है. तिलक कला आज भी उपेक्षित है. विद्यालय के प्रधानाध्यापक खुशी प्रसाद राय के सहयोग से उमा रिसर्च एंड डॉक्यूमेंटेशन सेंटर बनाया गया है. जिसमें गांधीजी से जुड़े कई चीजों को वर्ष 2000 के बाद संरक्षित किया गया. इनमें से अंगरेजों द्वारा जलाये गये 150 से अधिक ग्रंथ भी शामिल है.

तिलक कला से गहरा लगाव था बापू का : वर्ष 1934 में महात्मा गांधी मधुपुर आने पर पुन: तिलक कला विद्यालय गये. इस दौरान चौथी कक्षा के छात्र गरीब राम को शर्ट-पैंट व टोपी देकर सम्मानित किया. उन्होंने अपने विचार भी व्यक्त किये. इसके बाद वह मधुपुर क्षेत्र के अलग-अलग जगहों में कई कार्यक्रमों में भाग लिया. उस दौरान मधुपुर का तिलक विद्यालय आजादी के दिवानों का आशियाना था. इस कारण भी बापू की घोषणा स विद्यालय से नजदीकियां थी.

कई क्रांतिकारी और देश भक्त इस विद्यालय में शरण लेते थे. अंगरेज सैनिकों ने इसी वजह से विद्यालय में आग लगा कर करीब 300 ग्रंथ व अन्य सामग्री जला दिये थे. हालांकि उस दौरान कोई भी क्रांतिकारी अंगरेजों के हाथ नहीं आये थे.

1909 में गांधी जी ने किया था नगर पालिका भवन का उदघाटन गांधी दो बार मधुपुर आये और विभिन्न कार्यक्रमों में शामिल हुए थे. पहली बार सन 1925 को महात्मा गांधी मधुपुर पहुंचे व वर्ष 1909 में स्थापित नगरपालिका के नवनिर्मित भवन का उदघाटन किया. उन्होंने चांदी के ताले को चाबी से खोलकर विधिवत नगरपालिका भवन का उदघाटन किया था. इसके बाद बापू शहर के केलाबागान में वर्ष 1922 में स्थापित तिलक कला मध्य विद्यालय गये, जहां उन्होंने विद्यालय के शिक्षकों व छात्र-छात्रओं से मिल कर अपने विचारों को रखे. इस दौरान उन्होंने तिलक कला विद्यालय का भी निरीक्षण किया. बापू ने मधुपुर के पनाहकोला में बने चंपा कोठी में एक रात भी गुजारी. दूसरे दिन विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लेते हुए यहां से रवाना हुए.

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