देवघर: इस बार श्रावणी मेले में देवघर जिला प्रशासन कई नये प्रयोग किया है. इसी में से एक वीआइपी पास में शुल्क लेना भी है. प्रशासन की नजर में दो तरह के वीआइपी सरकारी पूजा के बाद जलार्पण करते हैं. लेकिन वीआइपी कौन है? इसके मापदंड की धज्जियां उड़ायी जा रही है. वीआइपी पास में -टी- का खेल चल रहा है. यदि वीआइपी पास की सूची में आपके नाम के आगे टी लिखा है तो आपको धक्के नहीं खाने पड़ेंगे. यही नहीं इस पास के लिए आपको शुल्क भी चुकाना नहीं पड़ेगा. लेकिन टी नहीं लिखा है तो आपको पास के एवज में 100 रुपये प्रति पास देने होंगे. अब यह -टी- वाले वीआइपी कौन है? प्रशासन इस मामले में पारदर्शी नहीं है.
नि:शुल्क को मिलता है सम्मान
100 रुपये देकर वीआइपी पास लेने वाले वीआइपी को नेहरू पार्क से कतार में खड़ा होकर फुट ओवर ब्रिज से होकर बाबा मंदिर में प्रवेश करना होता है. इस तरह के पास में पूजा करने वालों की संख्या भी काफी अधिक होती है. इस कारण नेहरू पार्क में प्रवेश के वक्त अफरा-तफरी होती है. वीआइपी धक्के व पुलिस की छड़ी भी खाते हैं. वहीं दूसरी केटेगरी में यदि पास के लिए स्वीकृत सूची में आपके नाम के आगे -टी-(टेंपल) लिखा है तो आपका प्रवेश सीधे बाबा मंदिर की प्रशासनिक भवन से होगा. इसमें कोई शुल्क नहीं लिया जाता है. अर्थात ये वीवीआइपी हैं.
पारदर्शिता नहीं बरत रहा प्रशासन
हर बार की तरह इस बार सूचनाएं छिपाने के लिए प्रशासन ने वीआइपी पूजा के लिए जारी सूची को ऑन लाइन नहीं किया है. इस कारण यह पता नहीं चल पा रहा है कि कौन-कौन वीआइपी आये. किसे कौन सा पास मिला. जबकि पिछली बार तक मंदिर की वेबसाइट पर सूची जारी होता था. साप्ताहिक प्रेस कांफ्रेंस में सभी प्रकार के आय की तो जानकारी दी जाती है लेकिन वीआइपी पास से कितनी आय हुई, कितने भक्तों ने पूजा अर्चना की. इसकी जानकारी सार्वजनिक नहीं की जा रही है.
कुल मिलाकर जिला प्रशासन इस बार पास के मामले में पारदर्शिता नहीं बरत रहा है और न ही वीआइपी के मापदंड का पालन कर रहा है. इस तरह देवघर जिला प्रशासन का यह अनोखा प्रयोग है. जिसमें एक वीआइपी पैसे देकर पूजा करता है, दूसरा वीआइपी नि:शुल्क पूजा करता है. यानी अफसरों व सरकारी तंत्र के अधिकारियों के लिए ऑप्शन खुला रखा गया है.