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प्रवचन :::::ब्रह्मचर्य का दिखावा करना आत्मदमन कहलाता है

इससे आपका जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण विकसित होगा तथा यौन भावना के प्रति जो गलतफहमी है, वह दूर होगी और आपका विकास निर्बाध गति से होने लगेगा. इस सुदृढ़ आधार पर पहुंचकर ही मन का अतिक्रमण होना संभव हो सकता है तथा ब्रह्मचर्य की साधना फलीभूत हो सकेगी. ऐसी स्थिति में जबकि मन कामुक […]

इससे आपका जीवन के प्रति सही दृष्टिकोण विकसित होगा तथा यौन भावना के प्रति जो गलतफहमी है, वह दूर होगी और आपका विकास निर्बाध गति से होने लगेगा. इस सुदृढ़ आधार पर पहुंचकर ही मन का अतिक्रमण होना संभव हो सकता है तथा ब्रह्मचर्य की साधना फलीभूत हो सकेगी. ऐसी स्थिति में जबकि मन कामुक भावनाओं तथा विचारों से भरा है, ब्रह्मचर्य का दिखावा करना आत्मदमन कहलाता है. इसके विपरीत शरीर और मन पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ता है. इस प्रकार ब्रह्मचर्य वास्तविकता से कोसों दूर होता है. तंत्र की यह व्यावहारिक मान्यता है कि हर कोई व्यक्ति आध्यात्मिक विकास की दृष्टि से समान स्तर पर नहीं होता. इस प्रकार अपने स्वभाव और विकास के स्तर की दृष्टि से उसकी आवश्यकताएं भी दूसरों से भिन्न होती है. इस बिंदु को ध्यान में रखते हुए तंत्र प्रत्येक व्यक्ति की आवश्यकतानुसार उसके लिये विकास का रास्ता बताता है.

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