अपने मन को चक्रों पर लगाने के लिए बहुत अधिक जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं है. निष्प्रयास अपनी चेतना को चक्रों में से होते हुए आगे बढ़ाइये. कल्पना कीजिये कि प्रत्येक चक्र आपकी यात्रा का पड़ाव है. आपकी चेतना रेलगाड़ी है. यह भी कल्पना कीजिये कि आपकी चेतना एक्सप्रेस गाड़ी की तरह बिना रुके इन स्टेशनों (पड़ावों) से गुजरती है. चक्रों को मानसिक दृश्यावली का अंग मानना चाहिये. आप अपनी चेतना को रजत वर्ण के सांप की तरह भी मान सकते हैं जो शरीर के टेढ़े-मेढ़े रास्ते से चलता है. इस प्रकार तीन चक्रों तक अभ्यास कीजिये और धीरे-धीरे अधिक से अधिक नौ चक्रों तक बढ़ाइये.वेदिका मानसदर्शन: ध्यान के किसी आरामदायक आसन में बैठिये, सिर, गर्दन तथा मेरुदंड सीधे रखिये. आंखें बंद करके शरीर को शिथिल कीजिये. चेतना को मूलाधार में ले जाइये. वहां एक अग्नि की वेदिका का मानसदर्शन कीजिये.
प्रवचन::::: मन को एकाग्र करने के लिए दबाव न दें
अपने मन को चक्रों पर लगाने के लिए बहुत अधिक जबरदस्ती करने की जरूरत नहीं है. निष्प्रयास अपनी चेतना को चक्रों में से होते हुए आगे बढ़ाइये. कल्पना कीजिये कि प्रत्येक चक्र आपकी यात्रा का पड़ाव है. आपकी चेतना रेलगाड़ी है. यह भी कल्पना कीजिये कि आपकी चेतना एक्सप्रेस गाड़ी की तरह बिना रुके इन […]
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