सारवां: प्रखंड क्षेत्र के कुशुमथर नदी के जल स्नेत प्रवाहित कर छह पंचायतों के जमीन को सिंचित करने को लेकर 1962 में उक्त नदी पर लाखों खर्च कर बाबूडीह डैम बनाया गया. मगर उचित रख-रखाव के अभाव में अब यह महत्वाकांक्षी डैम अस्तित्व के संकट से जूझ रहा है.
यह डैम अगर अस्तित्व में रहता तो ना जाने शायद कितने किसान लाभान्वित होकर खेती कर पाते व एक नयी हरित क्रांति ला चुके होते. प्रखंड के रक्ति, कुशुमथर, लखोरिया, डहुवा, डकाय व बंदाजोरी पंचायत के 50 गांवों के किसानों में आशा की किरण जगी थी. उदासीनता का असर इस डैम पर ऐसा पड़ा कि देख रेख नहीं होने के कारण इसका पानी भी सूख गया. करीब तीन साल तक डैम के पानी का उपयोग कर किसानों ने अच्छी खासी खेती की थी. लेकिन जैसे जैसे समय बीतता गया डैम का पानी सूखता चला गया व हजारों एकड़ जमीन पर होने वाले पटवन पर ग्रहण लग गया. डैम से पानी सप्लाइ के लिए आठ से दस किमी तक दस से 15 फीट गहरा कनाल बनाया गया था. जो अब भरता जा रहा है.
क्या कहते हैं किसान
ब्रह्नादेव यादव, संतु महतो, सुरेश यादव, हेमलाल यादव, अजरुन यादव, हुबलाल महतो, जामुन महतो, अजरुन हाजरा, कमल महतो, अशोक यादव, मिठु महतो, बिरंची मंडल, कमल मंडल, गोविंद राउत, उमाशंकर मंडल, सुधीर मंडल, सीताराम मंडल, बादू राउत, देवीचरण कोल, नरेश हाजरा, बसीर मियां, मोजी हाजरा, बैजनाथ कोल आदि किसानों ने बताया डैम में पानी नहीं रहने के कारण खेती नहीं हो पा रही है. इसलिए अविलंब उक्त डैम से बालू की निकासी के लिये इंटरनल फाटक बनायी जाय व बरसात के दिनों में खोला जाय ताकि डैम में पानी जमा हो सके. साथ ही डैम से आगे 3,500 चेन तटबंध निर्माण हो व खेती में बालू भर नहीं सके.