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125 बैंक खाते एनपीए, एक करोड़ रुपये डूबा

देवघर : कभी किसानों का बैंक कहा जाने वाला देवघर-जामताड़ा सेंट्रल को-ऑवरेटिव बैंक आज डूबने के कगार पर पहुंच चुका है. इससे पहले 2012 में भी बैंक पूरी तरह डूबने के कगार पर था, जिसे उबारने के लिए विभाग ने 14 करोड़ रुपया बैंक को मुहैया कराया था. अब एक फिर से देवघर-जामताड़ा सेंट्रल को-ऑपरेटिव […]

देवघर : कभी किसानों का बैंक कहा जाने वाला देवघर-जामताड़ा सेंट्रल को-ऑवरेटिव बैंक आज डूबने के कगार पर पहुंच चुका है. इससे पहले 2012 में भी बैंक पूरी तरह डूबने के कगार पर था, जिसे उबारने के लिए विभाग ने 14 करोड़ रुपया बैंक को मुहैया कराया था. अब एक फिर से देवघर-जामताड़ा सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक घाटे में चल रहा है. इन दिनों यह बैंक कई आराेपों से भी घिरा है. बैंक में हुई वित्तीय गड़बड़ियाें की बड़े पैमाने पर विभागीय जांच शुरू हो गयी है.
देवघर-जामताड़ा सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक अब राज्य स्तर पर मर्ज होकर झारखंड राज्य को-ऑपरेटिव बैंक बन चुका है. केवल देवघर जिले में को-ऑपरेटिव बैंक में 125 बैंक खाता एनपीए हो चुका है. इसमें बैंक का एक करोड़ रुपये पूरी तरह डूब चुका है. बैंक ने वसूली के लिए 50 लोगों पर सर्टिफिकेट केस दर्ज किया है. बैंक ने मनमाने तरीके से ऋण बांटा, कैश क्रेडिट ऋण में पानी की तरह व्यवसायियों को ऋण दिया. कई ऐसे लोगों को भी ऋण दिया गया, जिनका खेती से कोई वास्ता नहीं है. ऋण लेकर पैसा नहीं लौटने वालों में कॉरपोरेट्स की संख्या कृषि क्षेत्र के लोगों से अधिक है.
देवघर में सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक में ऋण वितरण, मरम्मत के नाम पर टेंडर व घटियास्तर के एक लाख चेकबुक आपूर्ति कर गबन के मामले की जांच की अनुशंसा झारखंड राज्य को-ऑपरेटिव बैंक के जीएम सुशील कुमार ने किया है. जीएम की अनुशंसा के बाद सहकारिता विभाग के निबंधन श्रवण सोय पूरे मामले की जांच करने जल्द देवघर आने वाले हैं. देवघर में एक लाख की संख्या में चेकबुक बैंकों के कुल नौ शाखाओं में उपलब्ध कराये गये हैं, साथ ही ऋणधारकों को किस परिस्थिति में कैश क्रेडिट ऋण दिया गया, इन बिंदुओं की जांच करेंगे.
ब्रिटिश काल से चल रहा को-ऑपरेटिव बैंक
सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक देवघर में 1925 से चल रहा है. ब्रिटिश शासन से ही सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक व ग्रेन बैंक साझेदारी में बड़े पैमाने पर किसानों से जुड़ कर व्यवसाय करता था. इस व्यवसाय में अनाज, संपत्ति, मकान व जमीन मॉर्गेज लेना व किसानों के साथ ट्रांजेक्शन का काम बैंक में होता था. इस बैंक के चेयरमैन सिविल एसडीओ हुआ करते थे.
चार अक्तूबर 1933 को तत्कालीन एसडीओ राय साहेब विष्णुदेव नारायण सिंह व सचिव स्वर्गीय बाबू उमापति बनर्जी उर्फ उमा पद बनर्जी की उपस्थिति में बोर्ड ऑफ डायरेक्टर की बैठक में किसानों के हित में कई निर्णय लिये थे. 1958 में ग्रेन गोला व सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक अलग हो गया व 1960 में देवघर-जामताड़ा सेंट्रल को-ऑपरेटिव बैंक का नया रजिस्ट्रेशन हुआ. इसके बाद से इस बैंक का व्यवसाय गिरता गया.

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