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सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल है हेडुम गांव

चतरा. लावालौंग प्रखंड के हेडुम गांव की आबादी लगभग एक हजार है़ यहां एक भी मुसलिम परिवार नहीं रहता है. फिर भी गांव वाले बड़े सदभाव के साथ मुहर्रम मनाते हैं़ मन्नत मांगने दरगाह पर काफी लोग पहुंचते हैं़ आस-पास गांव के लोग भी यहां मुहर्रम के जुलूस में शामिल होते है़ं तीन पीढि़यों से […]

चतरा. लावालौंग प्रखंड के हेडुम गांव की आबादी लगभग एक हजार है़ यहां एक भी मुसलिम परिवार नहीं रहता है. फिर भी गांव वाले बड़े सदभाव के साथ मुहर्रम मनाते हैं़ मन्नत मांगने दरगाह पर काफी लोग पहुंचते हैं़ आस-पास गांव के लोग भी यहां मुहर्रम के जुलूस में शामिल होते है़ं तीन पीढि़यों से एक हिंदू परिवार दुत्ती पाहन मुहर्रम मनाता आ रहा है़ मुहर्रम के सभी कार्य दुत्ती पाहन के पुत्र कमाख्या सिंह भोक्ता करते है़ं गांव के बच्चे पैकाह भी बनते है़ं ग्रामीणों का कहना है कि गांव के पीर पर हमारी श्रद्धा है़ श्री भोक्ता ने बताया कि उसके दादा को एक भी संतान नहीं था. जो बच्चे होते थे, कुछ ही दिन में उनकी मृत्यु हो जाती थी़ उस वक्त गांव से एक पीर बाबा गुजर रहे थे़ उसने मुहर्रम मनाने की सलाह दी़ तब से अब तक भरा पूरा परिवार है़ हेडुम गांव में सांप्रदायिक सौहार्द की अनोखी मिसाल देखने को मिलती है़ गांव के छठु सिंह भोक्ता, नारायण राम व विजय यादव ने बताया कि भाग्य से इस तरह एकता की मिसाल देखने को मिल रहा है़ गांव के लोग बनाते हैं ताजियागांव के युवक मिल-जुल कर तजिया बनाते हैं. मुहर्रम के दिन गाजे-बाजे के साथ जुलूस निकालते हुए कल्याणपुर मोड़ पहुंचते हैं. यहां लोग मेले का आनंद उठाते हैं.

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