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Chaibasa News : गौस पाक को स्मरण का त्योहार है ग्यारहवीं शरीफ

4 अक्तूबर को ग्यारहवीं शरीफ पर विशेष : आज कुरआन ख्वानी और लंगर का होगा आयोजन

चक्रधरपुर.

इस्लामी परंपरा में अनेक औलिया-ए-किराम (अल्लाह के नजदीकी वंदे) हुए हैं. जिनकी याद में उर्स और विशेष पर्व मनाए जाते हैं. उन्हीं में एक महान सूफी संत हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह हैं. इन्हें दुनिया भर के मुसलमान ‘गौस-ए-आजम’ के नाम से जानते हैं. उनकी याद में इस्लामी माह के 11वें दिन “ग्यारहवीं शरीफ” का आयोजन किया जाता है. यह दिन श्रद्धा, इबादत, कुरआन ख्वानी और लंगर (सामूहिक भोजन) का प्रतीक है.

गौस पाक का जीवन परिचय :

हजरत शेख अब्दुल कादिर जिलानी रहमतुल्लाह अलैह का जन्म 1077 ई (470 हिजरी) में ईरान के गिलान प्रांत के निफ नामक स्थान पर हुआ. आप पैगम्बर-ए-इस्लाम हजरत मोहम्मद (स.) की नस्ल से थे, यानी सैयद थे. बचपन से ही इनमें तकवा (पवित्रता), इल्म (ज्ञान) और अल्लाह से गहरी मुहब्बत पायी जाती थी. आपने इराक के बगदाद में इस्लामी शिक्षा हासिल की और तसव्वुफ (सूफी मत) की ऊंचाइयों को छू लिया. आपकी ख्याति इतनी फैल गई कि दूर-दराज से लोग आपके पास रहनुमा और रहमत की तलाश में आते थे.

ग्यारहवीं शरीफ क्यों मनायी जाती है :

ग्यारहवीं शरीफ दरअसल हजरत गौस पाक की याद और उनकी आत्मा को इसाल-ए-सवाब (पुण्य पहुंचाने) का दिन है. इस्लामी माह के हर 11वें दिन उनकी याद में फातिहा (दुआ), कुरआन शरीफ की तिलावत और लंगर का आयोजन किया जाता है. ग्यारहवीं’ नाम क्यों : क्योंकि गौस पाक का उर्स 11 रबी-उस-सानी को होता है और उनकी याद में हर महीने की 11 तारीख को फातिहा की जाती है.

ग्यारहवीं शरीफ के महत्व :

आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में इंसान अक्सर आत्मिक शांति से दूर हो जाता है. ग्यारहवीं शरीफ का पर्व हमें यह याद दिलाता है कि इंसानियत की सेवा सबसे बड़ी इबादत है. अल्लाह की रजा (खुशी) केवल नमाज और रोजे से नहीं, बल्कि नेक इंसानी गुणों से भी हासिल होती है. नफरत और तकरार से बचकर मोहब्बत और भाईचारा फैलाना ही औलिया-ए-किराम का असली पैगाम है.

गौस-ए-आजम की शिक्षा

तकवा और परहेजगारी :

आप हमेशा अल्लाह की इबादत और नेकी के रास्ते पर चलने की हिदायत देते थे.

इंसानियत और भाईचारा :

अमीरी-गरीबी, जात-पात से ऊपर उठकर सबके साथ समान व्यवहार करने का संदेश दिया.

सच्चाई और सब्र :

आपकी सबसे बड़ी शिक्षा यह थी कि मुश्किल हालात में भी इंसान अल्लाह पर भरोसा रखे और सब्र करे.

ग़रीबों

की सेवा :

आप जरूरतमंदों और ग़रीबों की मदद को इबादत का दर्जा देते थे.

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