गुवा
. गुवा शहीद दिवस पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन 08 सितंबर (सोमवार को) गुवा में शहीदों को श्रद्धांजलि देंगे. उनके आगमन की सभी तैयारियां पूरी कर ली गयी है. रविवार को उपायुक्त चंदन कुमार, डीआइजी व एसपी राकेश रंजन ने पुलिस पदाधिकारियों के साथ बैठक की. उपायुक्त ने कहा कि मुख्यमंत्री का हेलीकॉप्टर गुवा में उतरेगा. इसके बाद मुख्यमंत्री श्रद्धांजलि सभा पहुंचेंगे. शहीदों को श्रद्धांजलि देने के बाद गुवा सेल के फुटबॉल मैदान में जनसभा को संबोधित करेंगे. उसके बाद मुख्यमंत्री विभिन्न योजनाओं का आनलाइन शिलान्यास करेंगे. बैठक के दौरान बताया गया कि पार्टी के कार्यकर्ताओं व ग्रामीणों की गाड़ियों को सभा स्थल से 05 किलोमीटर दूर रोक दिया जायेगा तथा उनके लिए जिला प्रशासन द्वारा बस की व्यवस्था की गयी है. बस में बैठाकर श्रद्धांजलि सभा से पहले उन्हें उतार दिया जायेगा, जहां से वह पैदल श्रद्धांजलि देकर सभा स्थल तक पहुंचेंगे. श्रद्धांजलि सभा में झामुमो के अलावा अन्य दलों के कार्यकर्ता भी शामिल होते हैं. यहां करीब 15-20 हजार लोगों के श्रद्धांजलि देने पहुंचने की संभावना है. वहां पहुंचने वाले अतिथियों के लिए भोजन की व्यवस्था भी की गयी है. यह व्यवस्था हिरजी हाटिंग, लालजी हाटिंग, कुसुम घाट में की गयी है. वहीं वीआइपी के लिए भोजन की व्यवस्था गुवा के सेल के डायरेक्टर बंगला व गेस्ट हाउस में की गयी है. वहीं मुख्यमंत्री के भोजन की व्यवस्था सभा स्थल पर बने लाॅन्ज में की गयी है. गुवा बाजार शहीद सभा स्थल से सभा स्थल तक वाहनों की आवाजाही बाधित रहेगी.गुवा गोलीकांड के बाद पहली बार कोल्हान पहुंचे थे शिबू सोरेन, झामुमो को देशभर में मिली पहचान
8 सितंबर, 1980 का गुवा गोलीकांड दरअसल, जंगल और खदानों पर आदिवासियों के हक के लिए चल रहे शांतिपूर्ण आंदोलन पर सत्ता की संविधान विरोधी साजिश थी. गुवा अस्पताल में इलाज कराने पहुंचे घायल आठ आदिवासियों को कतार में खड़ा कर पुलिस ने गोलियों से भून दिया था. उक्त घटना के 3-4 घंटे पहले गुवा बाजार में सभा को रोकने के लिए पुलिस की फायरिंग में तीन आदिवासी आंदोलनकारियों की मौत हुई थी. वहीं, आंदोलनकारियों के तीर से बिहार मिलिट्री पुलिस के चार जवानों की जान गयी थी. पुलिस ने गुवा बाजार की घटना का बदला लेने के लिए अस्पताल में फायरिंग की थी. गुवा गोलीकांड के बाद कोल्हान में दिशोम गुरु शिबू सोरेन की इंट्री हुई. वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा को देशव्यापी पहचान मिली थी. तब संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा ने तीर-धनुष पर बैन लगा दिया. इसके कारण विरोध और बढ़ गया था. शिबू सोरेन, शैलेंद्र महतो, एके राय, विनोद बिहारी महतो समेत नेताओं ने विरोध किया. विधानसभा व संसद में मामला उठा. आखिरकार तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने तीर-धनुष से पाबंदी हटायी. गुवा गोलीकांड के बाद बिहार से अलग करो की मांग तेज होती गयी. बताया जाता है कि गुवा गोलीकांड के दूसरे दिन बीएमपी के जवानों ने अस्पताल पर सैकड़ों तीर चलाये, ताकि जांच होने पर साबित किया जा सके कि आदिवासियों ने पहले उनपर हमला किया था. उन्होंने जवाबी कार्रवाई में गोली चलायी. जबकि, सच्चाई है कि आदिवासी लोग स्थानीय खदानों में रोजगार और वन अधिकारों की मांग पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे.
संघर्ष, बलिदान और अटूट संकल्प को याद करते हैं लोग
हर साल 8 सितंबर को गुवा बाजार स्थित शहीद स्मारक स्थल पर ‘शहीद दिवस’ मनाया जाता है. इस दिन आदिवासी समुदाय के लोग, ग्रामीण, मानकी-मुंडा, विभिन्न सामाजिक संगठन और राजनीतिक दलों के नेता शहीदों को ‘दुलसुनूम’ (श्रद्धांजलि) देने के लिए एकत्रित होते हैं. पारंपरिक आदिवासी रीति-रिवाजों के साथ शहीदों को याद किया जाता है. उनकी कुर्बानी को नमन करने के लिए लोग अक्सर उसी तरह कतारबद्ध होकर शहीद स्थल पर पहुंचते हैं, जैसे शहीदों को अस्पताल से बाहर निकालकर खड़ा किया गया था. यह दिन झारखंड के लोगों के लिए अपने अधिकारों के लिए संघर्ष, बलिदान और अटूट संकल्प को याद करने का है.
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