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Jharkhand News : हेराफेरी के आरोपी बोकारो सदर अस्पताल के क्लर्क मुकेश पर क्यों मेहरबान हैं अधिकारी

Jharkhand News : करीब दो साल पहले बोकारो के तत्कालीन उपायुक्त के निजी सहायक रहे मुकेश कुमार वर्मा को आपूर्ति विभाग के ट्रांसपोर्टर से 70 हजार रुपये घूस लेते धनबाद एसीबी की टीम ने दबोचा था. इस पर बड़ी राशि की हेराफेरी करने का आरोप सदर अस्पताल के तत्कालीन उपाधीक्षक ने लगाया है.

Jharkhand News : करीब दो साल पहले बोकारो के तत्कालीन उपायुक्त के निजी सहायक रहे मुकेश कुमार वर्मा को आपूर्ति विभाग के ट्रांसपोर्टर से 70 हजार रुपये घूस लेते धनबाद एसीबी की टीम ने दबोचा था. एक बार फिर यह शख्स चर्चे में है. इस पर बड़ी राशि की हेराफेरी करने का आरोप सदर अस्पताल के तत्कालीन उपाधीक्षक ने लगाया है. इस बाबत उन्होंने उपायुक्त को पत्र (पत्रांक संख्या 861) लिखा है, जिसकी प्रतिलिपि अपर मुख्य सचिव स्वास्थ्य विभाग के अलावा अन्य वरीय अधिकारियों को भेजी गयी है.

डीएस ने पत्र में लिखा है कि सदर अस्पताल में दो निम्नवर्गीय लिपिक व एक उच्च वर्गीय लिपिक का पद स्वीकृत है, जबकि वर्तमान में चार लिपिक कार्यरत हैं. इनमें से दो पदस्थापित हैं और दो प्रतिनियुक्ति पर कार्यरत हैं. मुकेश वर्मा, जो कि सदर अस्पताल में लिपिक है और प्रतिनियुक्त है. इसके जिम्मे आयुष्मान भारत व ब्लड बैंक का संपूर्ण प्रभार (वित्त सहित) है. डीएस के अनुसार कुछ दिनों पहले मुकेश पर आयुष्मान भारत व डायग्नोस्टिक मद में भी 1,35,170 रुपये घोटाला करने का आरोप लगा था. उस वक्त तत्कालीन सीएस व डीएस द्वारा छह बार पत्राचार कर राशि जमा करने का निर्देश दिया गया था, लेकिन उसने आज तक न तो हिसाब दिया और न ही राशि बैंक में जमा की. साथ ही यह भी कहा गया था कि जांच पूरी होने तक अपना प्रभार अस्पताल के लिपिक जय जीवन गुड्डू होरो को सौंप दे, लेकिन ऐसा नहीं किया. लिहाजा, आज तक जांच पूरी नहीं हो सकी है.

डीएस ने लिखे पत्र में कहा है कि आयुष्मान मद से 10 जंबो ऑक्सीजन सिलिंडर (डी टाइप) की खरीदारी की गयी थी, जिसका भंडार पंजी में विवरण नहीं है और भुगतान कर दिया गया. इससे प्रतीत होता है कि फर्जी तरीके से भुगतान किया गया है. इतना ही नहीं मुकेश किसी भी निर्देश का अनुपालन नहीं करता है और न ही वरीय अधिकारियों को जांच में सहयोग करता है. ऐसे में अस्पताल संचालन करने में परेशानी हो रही है. इस बारे में असैनिक शल्य चिकित्सक सह मुख्य चिकित्सा पदाधिकारी बोकारो को कई बार जानकारी दी गयी है, लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गयी है.

गौरतलब है कि मुकेश वर्मा तत्कालीन उपायुक्तका निजी सहायक था. उसे धनबाद एसीबी की टीम ने एक ट्रांसपोर्टर से 12 लाख रुपये का बिल भुगतान करने के एवज में छह प्रतिशत 70 हजार रुपये घूस लेते पकड़ा था. उसकी गिरफ्तारी डीसी के आवासीय कार्यालय से ही हुई थी. उस वक्त मुकेश वर्मा डीसी के पीए के अलावा आपूर्ति विभाग में बड़ा बाबू का काम करता था. शुरू में वह स्वास्थ्य विभाग में कंप्यूटर ऑपरेटर के पद पर बहाल हुआ था, लेकिन कुछ ही दिनों में वह उपायुक्त का पीए बन गया. साथ ही सप्लाई विभाग में बड़ा बाबू के रूप में भी काम करने लगा.

सूत्रों की मानें तो अनुकंपा के आधार पर 2010 में मुकेश की नौकरी स्वास्थ्य विभाग में लगी थी. लेकिन अपनी पकड़ के चलते चंद दिनों में ही वह स्वास्थ्य विभाग से सीधा डीसी के गोपनीय कार्यालय पहुंच गया. देखते ही देखते डीसी पुल की सभी फाइलों का निबटारा करने की जिम्मेदारी उसके पास आ गयी. दूसरी ओर बीएसएल के खाली क्वार्टरों के हेर-फेर को लेकर उस पर आरोप लगे. जिला प्रशासन में उसकी कितनी गहरी पैठ है इसका अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि एक क्लर्क होने के बावजूद उसे प्रशासन की तरफ से उस इलाके में आवास आवंटित कर दिया गया, जो केवल अधिकारियों के लिए आवंटित होते हैं.

उपायुक्त कुलदीप कुमार ने कहा कि फिलहाल मेरे संज्ञान में इस संबंध में कोई जानकारी नहीं है. अगर अनियमितता संबंधी कोई बात है तो निश्चित ही मामले की जांच कर कार्रवाई की जायेगी, वहीं सिविल सर्जन डॉ एबी प्रसाद ने कहा कि उपाधीक्षक को ये अधिकार ही नहीं है कि वे उपायुक्त को पत्र लिखें. दूसरी बात यह कि मेरे पास मुकेश कुमार वर्मा के खिलाफ कोई शिकायत नहीं है़ अगर किसी प्रकार की शिकायत आती है, तो निश्चित ही कार्रवाई की जायेगी़

रिपोर्ट : कृष्णाकांत सिंह, बोकारो

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