कसमार, करीब आधी सदी बाद जब 85 वर्षीय मोहम्मद सरफूदीन अंसारी अपने पैतृक गांव कसमार (गर्री) लौटे, तो खुशी और भावनाओं का सैलाब उमड़ पड़ा मंगलवार को उनके घर वापसी की खुशी में मरहूमीन (स्वर्गवासी परिजनों) की याद में विशेष फातेहा का आयोजन किया गया. इस मौके पर गर्री, कसमार, सुरजूडीह, बगियारी और मंजूरा क्षेत्र से बड़ी संख्या में मुस्लिम धर्मावलंबी शामिल हुए.
1975 में छोड़ा था गांव, अल्लाह ने लौटाया घर
सरफूदीन अंसारी ने भावुक होकर बताया कि 1975 में जब गांव छोड़ा था, उस वक्त दिल में यह कसक थी कि शायद अब कभी लौटना नसीब ना हो. लेकिन देखिए, अल्लाह की मर्जी सब पर भारी होती है. आज 50 बरस बाद फिर उसी चौखट पर खड़ा हूं, जहां बचपन की यादें, अपनों का साया और पुरखों की दुआएं बसती हैं. यह कहते हुए सरफूदीन अंसारी की आंखें भर आयी. उन्होंने बताया कि जम्मू-कश्मीर की गलियों में नौकरी करते हुए जिंदगी गुजरी, 2008 में सेवानिवृत्त हुए और 2019 में उमरा हज का सौभाग्य मिला, लेकिन अपने गांव की मिट्टी, अपने लोगों की खुशबू और बचपन की गलियों का सुकून उन्हें हमेशा भीतर से खींचता रहा.
समाज के लोग भी हुए भावुक
गांव लौटे सरफूदीन अंसारी के स्वागत में समाज के तमाम लोग मौजूद थे. हर किसी की आंखों में मिलन की खुशी और पुराने दिनों की यादें छलक रही थीं. यह केवल एक व्यक्ति की घर वापसी नहीं थी, बल्कि पूरे समाज के लिए आत्मीयता और भाईचारे का जश्न था. इधर, फातेहा के दौरान कुरानख्वानी हुई और मरहूमीन की मगफिरत के लिए दुआ की गयी. मौके पर मौलानाओं ने अमन-चैन और इंसानियत का पैगाम देते हुए कहा कि हमें सबसे पहले इंसानियत की सच्चाई और भलाई के लिए प्रेरित रहना चाहिए और जरूरत पड़ने पर बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने से पीछे नहीं हटना चाहिए.ये थे मौजूद
फातेहा में पूर्व सदर हाजी शैखावत अंसारी, हाजी दिल मोहम्मद अंसारी, इरफान अहमद, जामा मस्जिद कसमार के हाजी रिजवान अहमद मिसवाही, फैज-ए-मुस्तफा के उस्ताद कारी आरिज रिजाउल हसन, कारी अतहर लखनवी, हज़रत मौलाना समशूल होदा, रजाउल अंसारी, इब्राहीम अंसारी, हाजी मन्नान, अब्दुल वाहिद अंसारी, तस्लीम अंसारी समेत बड़ी संख्या में लोग मौजूद थे.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

