बोकारो, गुरुजी की कर्मस्थली ललपनिया पंचायत के लुगुबुरु घंटाबाड़ी में कार्तिक पूर्णिमा से पूर्व उनकी आदमकद प्रतिमा स्थापित की जायेगी. यही नहीं, गुरु जी की स्मृति में बोकारो जिले की सभी पंचायतों में रात्रि पाठशाला का आयोजन किया जायेगा. इसमें कामगार, श्रमिक, किसान व बुजुर्ग शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे. इस आशय की घोषणा उपायुक्त अजय नाथ झा ने बुधवार को दी. वह बोकारो के कैंप टू स्थित जायका हैपनिंग्स सभागार में जिला प्रशासन द्वारा आयोजित ‘दिशोम गुरु शिबू सोरेन के योगदान और उनके विकास मॉडल’ विषयक संगोष्ठी में बाेल रहे थे. उपायुक्त श्री झा ने बताया कि जिले में सभी सुविधाओं से लैस 24 घंटे सात दिन रात्रि पुस्तकालय का भी संचालन शुरू होगा, जहां बच्चे पूरी रात शिक्षा ग्रहण कर सकेंगे. जिले में नशामुक्ति अभियान का संचालन होगा, जिसमें समाज के लोग और प्रशासन मिलकर कार्य करेंगे. इस घोषणा का वहां उपस्थित लोगों ने स्वागत किया. अपने संबोधन में डीसी अजय नाथ झा ने दिशोम गुरु शिबू सोरेन से आदिवासी कल्याण आयुक्त के तौर पर हुई भेंट और आदिवासी समाज के विकास पर हुई चर्चा के संबंध में यादें साझा कीं. उन्होंने कहा कि हमें आदिवासियों को सिखाने के बजाय उनसे सीखने की चाह रखनी होगी. यही समावेशी दृष्टिकोण समाज को मजबूत करेगा. जिस तरह देश के विकास के लिए भारतीय चेतना होनी चाहिए, उसी तरह झारखंड के विकास के लिए नीति बनाने और उसे लागू करने वालों के मूल में झारखंडी चेतना का होना आवश्यक है. श्री झा ने कहा कि दिशोम गुरु का विकास मॉडल सर्वांगीण, जन सरोकारों पर आधारित और सामाजिक न्याय से प्रेरित था.
संगोष्ठी के दौरान करम पर्व के अवसर पर मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा, सहायक प्रोफेसर एवं निदेशक अंतरराष्ट्रीय लुप्तप्राय भाषा एवं संस्कृति प्रलेखन केंद्र डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय रांची के डॉ अभय सागर मिंज, उपायुक्त अजय नाथ झा सहित अन्य अतिथियों ने मांदर की थाप पर करमा नृत्य किया.सभी जाति-धर्म से ऊपर थे दिशोम गुरु : अनुज सिन्हा
बतौर मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार अनुज सिन्हा ने अपने संबोधन में कहा कि दिशोम गुरु शिबू सोरेन जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी वर्गों को साथ लेकर चलते थे. वे मानते थे कि विकास तभी संभव है, जब हर तबके की सहभागिता सुनिश्चित हो. उनका जीवन समाज के लिए प्रेरणा है. उनकी टीम में सभी धर्म-समाज के लोग होते थे. वह किसी एक धर्म-समाज के नहीं थे.सांस्कृतिक सापेक्षता के पुरोधा थे शिबू सोरेन : डॉ अभय सागर
विशिष्ट अतिथि सहायक प्रोफेसर एवं निदेशक, अंतर्राष्ट्रीय लुप्तप्राय भाषा एवं संस्कृति प्रलेखन केंद्र डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी विश्वविद्यालय, रांची डॉ अभय सागर मिंज ने कहा कि आदिवासी का अर्थ केवल जंगल, पत्ता, रंग और नृत्य नहीं है. यह मानसिकता बदलनी होगी. अपनी संस्कृति और अपनी जड़ों को जानकर ही समाज में सहभागिता और विकास संभव है. दिशोम गुरु शिबू सोरेन सांस्कृतिक सापेक्षता के पुरोधा थे. उन्होंने कई उदाहरण देकर बताया कि एक ही वस्तु का देखने का दृष्टिकोण अलग-अलग होता है, किसी को वह सही तो किसी को वह गलत लगेगा, लेकिन दोनों अपनी जगह पर सही है.
मांदर की थाप पर झूमे अतिथि व अन्य
संगोष्ठी में लुगुबुरू पूजा आयोजन समिति के चंद्रदेव हेंब्रम, दिनेश कुमार मुर्मू व बबली सोरेन ने भी विचार रखा. सभी ने शिबू सोरेन के दिखाएं मार्ग पर चलने व उनके आदर्शों को आत्मसात करने का संकल्प लिया. डीपीआरओ रवि कुमार के धन्यवाद ज्ञापन दिया. करम पर्व पर अनुज सिन्हा, अभय सागर मिंज, अजय नाथ झा सहित अन्य ने मांदर की थाप पर करमा नृत्य किया. मौके पर डीडीसी शताब्दी मजूमदार, एसी मो. मुमताज अंसारी, एसडीओ-चास प्रांजल ढांडा, डीसीएलआर -चास प्रभाष दत्ता, एसडीओ-बेरमो मुकेश मछुआ, डीईओ जगरनाथ लोहरा, डीएसइ डॉ अतुल कुमार चौबे, एडीपीआरओ अविनाश कुमार सिंह उपस्थित थे.
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