दीपक सवाल, कसमार, शिक्षक दिवस पर गुरु-परंपरा का जिक्र हो और ब्राह्मणद्वारिका गांव का नाम न आए, तो कुछ अधूरा रह जाता है. यह वही गांव है जिसने हर पीढ़ी में गुरु पैदा किये और 75 वर्षों में 75 शिक्षक दिए. यहां हर घर में शिक्षक बनने की होड़ रही और यही जुनून इसे ‘गुरुजनों का गांव’ बना गया. ब्राह्मणद्वारिका का पहला शिक्षक बनने का गौरव पंचानन खवास और अनंतलाल खवास को मिला, जिन्होंने वर्ष 1950 में अध्यापन कार्य शुरू किया. इसके बाद तो मानो यह परंपरा ही बन गयी. पिंड्राजोरा टीचर ट्रेनिंग स्कूल से प्रशिक्षण लेकर पीढ़ी-दर-पीढ़ी लड़के-लड़कियां शिक्षक बनते चले गए. घर-घर में शिक्षा की अलख जगने लगी और पूरे इलाके में यह गांव मिसाल बन गया.
परिवारों में दो-दो, तीन-तीन और सात-सात शिक्षक
इस गांव की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहां शिक्षकों की परंपरा केवल व्यक्तियों तक सीमित नहीं रही, बल्कि पूरा परिवार शिक्षक बन गया. बंकबिहारी खवास के परिवार से एक साथ सात शिक्षक निकले. वे खुद शिक्षक थे, उनके तीन बेटे विवेकानंद, तापस और तरुण भी अध्यापक बने. तरुण की पत्नी कृष्णा खवास आज चास में एक प्ले स्कूल की प्रिंसिपल हैं. बंकबिहारी के बड़े भाई पंचानन और उनके दोनों बेटे अंबुज व असित बरन भी शिक्षा जगत से जुड़े. इसी तरह मणिभूषण खवास और उनके दोनों पुत्र, अमूलरतन खवास और उनके बेटे, चितरंजन बनर्जी और मनोरंजन बनर्जी, नारायणचंद्र और केशवचंद्र खवास, सभी ने गुरु-परंपरा को आगे बढ़ाया. गांव में यह परंपरा इतनी गहरी है कि कभी-कभी एक ही परिवार में पिता-पुत्र साथ-साथ पेंशन उठाने जाते थे.
शिक्षा से बना सम्मान और पहचान
ब्राह्मणद्वारिका के शिक्षकों ने केवल गांव ही नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र की तकदीर बदली. बंकबिहारी खवास का नाम आज भी सम्मान से लिया जाता है. केशवचंद्र खवास के पढ़ाए छात्र आज कॉलेजों में प्रोफेसर हैं. चास के मशहूर डॉ रतन केजरीवाल भी उनके छात्र रहे. गांव के अन्य शिक्षकों के पढ़ाए सैकड़ों छात्र आज राज्य और देश भर में ऊंचे पदों पर कार्यरत हैं. कई शिक्षक हेडमास्टर बने और कई ने शिक्षा के क्षेत्र में नई दिशा दी.आंदोलन और संगठन में भी अग्रणी
यह गांव केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं रहा. इसके शिक्षकों ने शिक्षा की बेहतरी और अपने अधिकारों के लिए संघर्ष भी किया. बंकबिहारी खवास 1973 से 1989 तक धनबाद जिला शिक्षक संघ के अध्यक्ष और उत्तरी छोटानागपुर शिक्षक संघ के सचिव रहे. उन्होंने कई आंदोलनों का नेतृत्व किया. एक आंदोलन के दौरान धनबाद डीएसई की पिटाई की घटना ने उन्हें सुर्खियों में ला दिया, जिसके बाद उन्हें सस्पेंड भी होना पड़ा.आज भी कायम है परंपरा
गांव के 75 शिक्षकों में से 30 का निधन हो चुका है और 15 शिक्षक सेवानिवृति का लाभ उठा रहे हैं. वर्तमान में सोलह शिक्षक विभिन्न स्कूलों में सेवारत हैं. कुल 75 शिक्षकों में तीन सहायक अध्यापक और छह निजी स्कूलों में कार्यरत हैं.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

