दीपक सवाल, कसमार, कसमार प्रखंड के बगदा गांव का सात वर्षीय आयुष्मान राज इन दिनों सभी के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है. महज कक्षा दो का यह छात्र मिट्टी से ऐसी बारीक और सुंदर मूर्तियां गढ़ रहा है कि देखने वाले दंग रह जाते हैं. आयुष्मान ने यह कला किसी से नहीं सीखी. ना कोई गुरु, ना कोई प्रशिक्षण. गांव के मंदिरों में मूर्तियां बनते देख वह प्रभावित हुआ और अचानक ही उसके भीतर यह हुनर जागा. वह खुद तालाब और खेत जाता है, मिट्टी लाता है और घंटों उसमें डूबा रहता है. मिट्टी को आकार देते-देते उसकी अंगुलियों से कभी राधा-कृष्ण की, कभी मां मनसा और मां दुर्गा की, तो कभी किसी अन्य देवी-देवता की प्रतिमा उभर आती है.
औजार नहीं, केवल अंगुलियों का सहारा
आयुष्मान की मूर्तियों में टेराकोटा शैली की झलक मिलती है. आश्चर्य की बात यह है कि वह किसी प्रकार के औजार का इस्तेमाल नहीं करता. सिर्फ अपनी नन्हीं अंगुलियों से मिट्टी को गढ़कर प्रतिमा तैयार कर देता है. कुछ घंटों में मिट्टी का ढेला जीवंत मूर्ति का रूप ले लेता है. साज-सज्जा के लिए कागज व रंगों का इस्तेमाल करता है. आयुष्मान खुलकर कहता है कि पढ़ाई से ज्यादा उसका मन मूर्ति बनाने में लगता है. उसका जी करता है कि वह रोज नयी-नयी प्रतिमाएं बनाये. गांव के उत्क्रमित उच्च विद्यालय में कक्षा दूसरी का यह छात्र पढ़ाई के साथ-साथ अपनी इस कला को निखारने में भी खूब समय देता है. आयुष्मान ने बताया कि कल रातभर में दुर्गा की मूर्ति तैयार की. अब काली, लक्ष्मी आदि की बनानी है.परिवार की मिली-जुली प्रतिक्रिया
पिता रवींद्र कपरदार कहते हैं कि हमें कभी अंदाजा नहीं था कि उसमें इतनी प्रतिभा है. पहली बार जब उसने मिट्टी से मूर्ति बनाई तो हम सब दंग रह गये. मां सुनीता देवी का कहना है कि पुत्र की कला देखकर हमें गर्व भी है और थोड़ी चिंता भी. कहीं यह पढ़ाई से भटक ना जाये. पर उसकी लगन देखकर लगता है कि वह बड़ा कलाकार बन सकता है. इधर, आयुष्मान की प्रतिभा ने पूरे गांव को गर्वित और चकित किया है. लोग उसकी बनायी मूर्तियां देखने आते हैं और दुआएं देते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि उसकी मूर्तियों में ऐसी बारीकी है कि वह किसी मंजे हुए कलाकार की कलाकारी जैसी लगती है. आयुष्मान की कहानी यह साबित करती है कि प्रतिभा किसी उम्र या संसाधन की मोहताज नहीं होती. बिना औजार, बिना प्रशिक्षण उसकी उंगलियों ने मिट्टी को जीवन दिया है. अगर उसे सही मार्गदर्शन और प्रोत्साहन मिले तो वह भविष्य में बड़ा शिल्पकार बनकर न सिर्फ अपने गांव का, बल्कि पूरे इलाके का नाम रौशन कर सकता है.कलाकार वास्तव में दिव्य कल्पना शक्ति का धनी : दिलेश्वर लोहरा
झारखंड के वरिष्ठ मूर्तिकार दिलेश्वर लोहरा ने कहा कि नन्हे हाथों से देवी-देवताओं की प्रतिमाएं गढ़ने वाला यह बाल कलाकार वास्तव में दिव्य कल्पना शक्ति का धनी है. इसकी कलाकृति में टेराकोटा शैली की झलक दिखती है. ऐसे बाल कलाकार की प्रतिभा को परिवार और समाज को समय पर पहचानना और संवारना चाहिए.
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