हाजीपुर : सदर अस्पताल को रंग -रोगन से भले चकाचक किया जा रहा हो,लेकिन रोगियों के इलाज के मामले में यह अस्पताल खुद बीमार नजर आता है. चिकित्सकों और कर्मियों की कमी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में यह जिला अस्पताल बेहतर इलाज की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है. सदर अस्पताल में हर रोज जिले भर से एक से डेढ़ हजार मरीज पहुंचते हैं. यहां जुटने वाली मरीजों की भीड़ को इलाज के नाम पर किसी तरह निबटाया जाता है.
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हाल हाजीपुर सदर अस्पताल का
हाजीपुर : सदर अस्पताल को रंग -रोगन से भले चकाचक किया जा रहा हो,लेकिन रोगियों के इलाज के मामले में यह अस्पताल खुद बीमार नजर आता है. चिकित्सकों और कर्मियों की कमी और बुनियादी सुविधाओं के अभाव में यह जिला अस्पताल बेहतर इलाज की उम्मीदों पर पानी फेर रहा है. सदर अस्पताल में हर रोज […]
डॉक्टरों व कर्मियों की कमी से इलाज बाधित : सदर अस्पताल में 10 चिकित्सा पदाधिकारी और उपाधीक्षक समेत चिकित्सकों के कुल 11 पद स्वीकृत हैं. हालांकि अभी लगभग 35 चिकित्सक अस्पताल में प्रतिनियुक्त हैं, फिर भी मरीजों का इलाज सही तरीके से नहीं हो रहा. लंबे समय से बहाली नहीं होने के कारण स्वास्थ्यर्मियों के भी अधिकतर पद खाली पड़े हैं. जानकारों के अनुसार काफी पहले जब यह अनुमंडल अस्पताल था, उस वक्त जो पद स्वीकृत किये गये, वही आज तक कायम हैं.
इस बीच यह जिला अस्पताल बना. आबादी बढ़ने के साथ मरीजों की तादाद बढ़ी, लेकिन इस अनुपात में चिकित्सक, कर्मचारी नहीं बढ़ाये गये.
जांच व दवाओं के लिए बाजार पर निर्भर हैं मरीज : चिकित्सकों द्वारा मरीजों के पुरजे पर जो जांच और दवाएं लिखी जाती है, उनमें अनेक तरह की जांच और दवाएं अस्पताल में उपलब्ध नहीं हैं. इससे मरीजों को कई प्रकार की परेशानियां उठानी पड़ती हैं. जांच के लिए मरीजों को बाजार के निजी जांच घरों की शरण लेनी पड़ती है, अस्पताल में कुछ साल पहले अनुबंध के आधार पर निजी एजेंसी द्वारा जांच की सुविधाएं उपलब्ध थीं. उसके बंद हो जाने के बाद सरकारी स्तर पर वैकल्पिक व्यवस्था नहीं होने के कारण मरीजों को निजी जांच घरों में जाने की लाचारी है.
हालांकि सदर अस्पताल के जांच घर में पहले की तुलना में आधा दर्जन से अधिक जांच की सुविधाएं बढ़ायी गयीं, पहले जहां छह प्रकार की जांच होती थी, वहां 13 तरह की जांच उपलब्ध है. इसके बावजुद अनेक जरूरी जांच की सुविधा का अभाव है. इसी तरह चिकित्सक, जो दवाएं लिखते हैं, उनमें कुछ ही अस्पताल में मिलती हैं. बाकी दवाएं बाहर से खरीदनी पड़ती हैं. अस्पताल सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक अभी आउटडोर में 27 प्रकार की तथा इनडोर में 72 तरह की दवाएं दी जा रही हैं.
नहीं खुल रहा सीसीयू, जंग खा रहीं मशीनें : सदर अस्पताल में हृदय रोग के मरीजों के इलाज के लिए कार्डियक केयर यूनिट की स्थापना की गयी थी. इमरजेंसी वार्ड के भवन में बनाया गया सीसीयू अभी तक चालू नहीं किया जा सका है. यह बनने के बाद से कभी शुरू ही नहीं हुआ. सीसीयू में लगाये गये लगभग दो करोड़ रुपये के उपकरण और मशीनें यूं ही पड़े जंग खा रहे हैं. सीसीयू नहीं खुलने के कारण हृदय रोगियों को सीधे पटना का रूख करना पड़ता है.
इमरजेंसी वार्ड में इलाज की बदतर स्थिति : इमरजेंसी की दशा नहीं सुधार पा रही. यहां आने वाले मरीजों का इलाज राम भरोसे है. इमरजेंसी वार्ड में कम-से-कम एक सर्जन और एक फीजिशियन की तैनाती आवश्यक है, जबकि यहां महज एक चिकित्सक के भरोसे गंभीर मरीजों का इलाज होता है. यहां नियमित और ट्रेंड स्वास्थ्यकर्मियों की जगह कुछ नोसिखिए और अनट्रेंड लड़के ही मरीजों के इलाज में लगे नजर आते हैं.
इमरजेंसी का ओटी रिपेयरिंग के नाम पर बंद हुआ, सो बंद ही है. एएनएम की तैनाती भी अभी तक नहीं की जा सकी. हैरत की बात है कि इमरजेंसी में बीपी मशीन भी नहीं है. पिछले दिनों ही इसे चोरों ने चुरा लिया. इसके पहले यहां के अग्निशामक यंत्र की चोरी हो चुकी हैं. वह भी आज तक दूसरा नहीं लग पाया. मरीजों के लिए रेफर टू पीएमसीएच यहां का दस्तूर बन गया हैं.
कहते हैं अधिकारी
सदर अस्पताल में जो साधन और मैन पावर उपलब्ध हैं, इसके बूते मरीजों को बेहतर सेवा देने की भरसक कोशिश की जा रही हैं. जो आवश्यकताएं हैं, इनके बारे में विभाग को लिखा गया हैं. स्थिति में सुधार आया है. जो कमियां हैं, वह भी शीघ्र दूर होंगी.
डॉ इंद्रदेव रंजन, सिविल सर्जन
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