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चुनाव आयोग ने बनाया जिला आइकॉन
हाजीपुर : सदियों से पुरुष प्रधान समाज में हाशिये पर रही महिलाएं आज इस मिथक को तोड़कर अपनी विशेष पहचान बनाने में जुटी है. ऐसी महिलाओं की सफलता की कहानी दूसरी महिलाओं के लिए भी आदर्श प्रेरणादायी साबित हो रही है. कुछ ऐसी ही कहानी है दस वर्षों तक इंडियन फुटबॉल टीम की ओर से […]
हाजीपुर : सदियों से पुरुष प्रधान समाज में हाशिये पर रही महिलाएं आज इस मिथक को तोड़कर अपनी विशेष पहचान बनाने में जुटी है. ऐसी महिलाओं की सफलता की कहानी दूसरी महिलाओं के लिए भी आदर्श प्रेरणादायी साबित हो रही है. कुछ ऐसी ही कहानी है दस वर्षों तक इंडियन फुटबॉल टीम की ओर से कई इंटरनेशनल मैच खेल चुकी अंशा की.
अंशा को इस बार चुनाव आयोग के स्विफ कोषांग ने वैशाली जिला का आइकॉन बनाया है. अंशा की कहानी फिल्म दंगल व पहलवान गीता-बबीता से काफी मिलती-जुलती है. मात्र 15 वर्ष की उम्र में अपने कैरियर का पहला नेशनल मैच खेलने वाली अंशा के नाम भारतीय रेल की पहली महिला फुटबाॅल कैप्टन बनने की उपलब्धि भी दर्ज है.
अंशा पूर्व मध्य रेल हाजीपुर में कार्यरत हैं और अब वे छोटे-छोटे बच्चों को फुटबॉल की ट्रेनिंग देने के साथ लोगों को मतदान के प्रति जागरूक करने के प्रयास में भी जुटी हुई है.
दो दशक पूर्व बिहार के नरकटियागंज के हाइस्कूल के मैदान से अंशा की सफलता व संघर्ष की कहानी शुरू होती है. अंशा का फुटबॉल के प्रति जुनून देख उसके पिता श्रवण कुमार सिंह व मां प्रमीला देवी ने आर्थिक तंगी के बावजूद उसके हौसले को नयी उड़ान देने की ठान ली.
सीमित संसाधन के बावजूद बेटियों में खेल के जज्बे को भरपूर सहयोग दिया. अंशा के साथ उसकी तीन बहनें भी उसके साथ फुटबॉल खेलने लगी. देखते ही देखते बहनें आगे बढ़ते चली गयी और उनके सपनों को ऐसे पंख लगे कि बहने आसमां को छूने लगी.
मुश्किलों के बीच पिता के सपनों को साकार करने में जुटी बहनों ने एक-दूसरे का हौसला बढ़ाया. अंशा की बहन रजनी ने सबसे पहले खेलना शुरू किया. उसने सबसे पहले पिता के सपनों को साकार किया. नेशनल में रजनी को जगह मिली. रजनी को देख छोटी बहन अंशा के हौसले बुलंद हुए. अंशा ने रजनी को भी पीछे छोड़ दिया. उसे नेशनल के साथ इंटरनेशनल में भी जगह मिली. अंशा को देख रश्मि व लक्की के हौसले को भी नयी उड़ान मिल गयी.
देखते ही देखते दोनों छोटी बहनों को भी नेशनल में जगह मिल गयी. नेशनल खेलने के आधार पर सबसे पहले वर्ष 2007 के अप्रैल महीने में खेल कोटे से रजनी अलंकार का चयन रेलवे में हुआ. अंशा ने भी महज चार माह के बाद सितंबर 2007 में रेलवे में नौकरी पा ली. बड़ी बहनों की तरह उड़ान भरते हुए खेल की बदौलत 2010 में रश्मि व 2016 में लक्की ने रेलवे में नौकरी पा ली.
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