छातापुर. बिहार विधानसभा चुनाव 2025 को लेकर 11 नवंबर को होने वाले मतदान के लिए सभी राजनैतिक दलों के प्रचार अभियान ने जोर पकड़ लिया है. कार्यकर्ताओं की टोली घर घर जाकर पार्टी के लोक लुभावन मैनिफेस्टो को बताने और मतदाताओं को रिझाने में जुटे हुए हैं. सुबह से लेकर रात्रिकाल तक प्रचार वाहनों के माध्यम से हिंदी व भोजपुरी गीतों के आकर्षक आवाज का शोर जारी है. बहरहाल प्रथम चरण के तहत छह नवंबर को होने वाले मतदान के लिए मंगलवार की रात प्रचार थम गया. जिसके बाद द्वितीय व अंतिम चरण के तहत 11:नवंबर को होने वाले मतदान के लिए स्टार प्रचारकों का उड़नखटोला विधानसभा क्षेत्रों में उतरना अभी बाकी है. स्टार प्रचारक के जनसभाओं से आम मतदाता के बीच हवा का रुख किस तरफ बनता है यह देखना लाजिमी होगा. ज्ञात है कि छातापुर विधानसभा क्षेत्र का चुनाव हमेशा से दो विचारधारा के बीच की लड़ाई और आमने सामने सीधी टक्कर के रूप में रही है. एनडीए एवं महागठबंधन के बीच के संघर्ष को कोई भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय दल त्रिकोणीय संघर्ष का रूप नहीं दे पाये. लिहाजा जब भी मतगणना का परिणाम एनडीए या महागठबंधन के पक्ष में ही रहा और अन्य प्रत्याशी बोटकटवा ही साबित हुए हैं. ऐसे में देखना होगा कि इस बार सत्ता परिवर्तन व बदलाव की लहर का दावा करने वाली महागठबंधन बाजी मारती है या फिर. बिहार में विकास की रफ्तार को और तेज करने के लिए पुनः डबल इंजन की सरकार बनाने में एनडीए सफल हो पाता है. एनडीए के भाजपा प्रत्याशी व निवर्तमान विधायक नीरज कुमार सिंह बबलू लगातार चौथी बार जीत के लिए मैदान में हैं. एनडीए के समर्थक जहां घर घर जाकर केंद्र व राज्य सरकार के उपलब्धियों को गिना रहे और मतदाताओं को रिझाने में लगे हैं. वहीं महागठबंधन के राजद से डॉ विपीन कुमार सिंह दूसरी बार मैदान में उतरे हैं. महागठबंधन के कार्यकर्ता स्थानीय प्रत्याशी व बदलाव की लहर का हवाला देकर इसबार छातापुर को बंधक से मुक्त करने का दावा कर रहे हैं. जबकि सुराज के प्रत्याशी अभय कुमार सिंह मुन्ना के समर्थन में प्रचार में जूटे समर्थक लालू प्रसाद के 15 साल के शासन को जंगलराज एवं नीतीश कुमार के 20 साल के शासन को नौकरशाहों का जंगलराज बता रहे हैं. दीपक साह सहित कई ऐसे निर्दलीय प्रत्याशी भी क्षेत्र में भ्रमण कर जनता का भारी समर्थन मिलने और जीत सुनिश्चित होने का दावा कर रहे. सभी प्रत्याशियों के दावे और जमीनी हकीकत के बीच मतदाताओ के मन की बात को समझना फिलहाल अबुझ पहेली बना हुआ है.
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