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32 वर्षों से जमीन के निबंधन पर रोक, त्राहिमाम कर रहे कलिकापुर के रैयत

खरीद-बिक्री, निबंधन, दाखिल-खारिज और लगान रसीद से वंचित हैं.

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– जिला प्रशासन की उदासीनता से ग्रामीणों का टूटा सब्र, हाई कोर्ट की शरण में पहुंचे लोग – 30 अक्टूबर 1992 से जमीन के खरीद-बिक्री पर है रोक – 01 नवंबर 2012 को जनता दरबार में ग्रामीणों की शिकायत पर जिलाधिकारी ने पांच सदस्यीय जांच समिति का किया था गठन – जांच समिति को 15 दिनों में रिपोर्ट देने का दिया गया था निर्देश – 2016 एवं 2021 में ग्रामीण ने जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के समक्ष परिवाद दर्ज कर कार्रवाई की की मांग – 31 अक्टूबर 1992 को अनुमंडल पदाधिकारी, त्रिवेणीगंज से मांगा गया था विस्तृत जांच प्रतिवेदन सुपौल छातापुर प्रखंड के अंतर्गत कलिकापुर मौजा के सैकड़ों ग्रामीण पिछले 32 वर्षों से जमीन संबंधी बुनियादी अधिकारों जैसे खरीद-बिक्री, निबंधन, दाखिल-खारिज और लगान रसीद से वंचित हैं. यह मामला 30 अक्टूबर 1992 से जुड़ा है, जब तत्कालीन जिलाधिकारी ने मौजा की लगभग 608 एकड़ भूमि पर निबंधन प्रक्रिया पर रोक लगा दी थी. उस समय जमीन से जुड़ी अनियमितताओं की शिकायत मिलने के बाद त्रिवेणीगंज के अनुमंडल पदाधिकारी से विस्तृत जांच रिपोर्ट मांगी गई थी, जो आज तक समर्पित नहीं की गई है. 32 वर्षों की लापरवाही, ग्रामीणों की टूटी उम्मीदें इस प्रशासनिक लापरवाही का खामियाजा कलिकापुर के ग्रामीण आज तक भुगत रहे हैं. अपनी पुश्तैनी जमीन पर मालिकाना हक और दस्तावेज नहीं मिलने से वे जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं जैसे इलाज, बच्चों की शिक्षा, शादी-ब्याह और सरकारी योजनाओं से वंचित हैं. कई बार सीओ छातापुर, एसडीएम त्रिवेणीगंज और जिलाधिकारी सुपौल से गुहार लगाने के बावजूद कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई. मामला जिला लोक शिकायत निवारण पदाधिकारी के पास भी गया, जहां से विशेष कार्य पदाधिकारी को जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश मिला, लेकिन वह भी कागजों में ही सिमट गया. हाई कोर्ट की सख्ती, प्रशासन को तीन महीने में समाधान का निर्देश आखिरकार, ग्रामीणों ने पटना हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. फरवरी 2024 में सिविल रिट याचिका संख्या 4339/2023 पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने इस प्रकरण में तत्काल कार्रवाई के आदेश दिए. अदालत ने स्पष्ट निर्देश दिए कि याचिकाकर्ता चार सप्ताह के भीतर अपने दस्तावेजों और शुल्क के साथ आवेदन प्रस्तुत करें. इसके बाद जिला प्रशासन तीन महीने के भीतर दस्तावेजों की जांच कर निर्णय ले और याचिकाकर्ताओं को राहत प्रदान करे. इसके साथ ही, अदालत ने यह भी निर्देशित किया कि यह मामला राज्य के मुख्य सचिव और पंजीकरण महानिरीक्षक के समक्ष भेजा जाए ताकि पूरे बिहार में इस प्रकार के लंबित मामलों की समीक्षा हो सके. जरूरत त्वरित कार्रवाई की सवाल यह है कि एक साधारण भूमि विवाद की जांच में तीन दशक क्यों लग गए? क्या प्रशासन की निष्क्रियता और जवाबदेही की कमी का खामियाजा नागरिकों को ही भुगतना पड़ेगा? ज़रूरत है कि जिला प्रशासन और राज्य सरकार इस दिशा में तत्काल ठोस और प्रभावी कदम उठाए, ताकि कलिकापुर के ग्रामीण भी अपने हक और सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकें. कहते हैं सीओ छातापुर के अंचलाधिकारी राकेश कुमार ने कहा कि पूर्व में भूमि विवाद के कारण तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा कलिकापुर मौजा के जमीन खरीद-बिक्री पर रोक लगाया गया था. जांच चल रही है. जल्द ही रिपोर्ट सौंपा जायेगा. कहते हैं एसडीएम एसडीएम त्रिवेणीगंज शंभूशरण ने कहा कि तत्कालीन जिलाधिकारी द्वारा रोक लगायी गयी थी. लेकिन किन कारणों से रोक लगायी गयी थी. इसकी विस्तृत जानकारी हमें नहीं है. विस्तृत जानकारी के बाद ही कुछ कहा जा सकता है.

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