सुपौल जिले में बिहार विधानसभा चुनाव के द्वितीय चरण को लेकर राजनीतिक हलचल चरम पर है. 11 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले 20 अक्टूबर नामांकन का अंतिम दिन है. एनडीए की ओर से जिले की सभी पांचों विधानसभा सीटों पर उम्मीदवारों ने अपने-अपने नामांकन पर्चे दाखिल कर दिए हैं. जबकि महागठबंधन की ओर से 20 अक्टूबर को सभी प्रत्याशी नामांकन करने वाले हैं. एनडीए ने सुपौल की पांच सीटों में चार पर जदयू और एक पर भाजपा को मैदान में उतारा है. दूसरी ओर, महागठबंधन ने दो सीटों पर राजद, एक पर कांग्रेस और एक सीट पर भाकपा (माले) के प्रत्याशियों को मौका दिया है. जबकि निर्मली विधानसभा सीट पर अब भी पेंच फंसा हुआ है. यह सीट गठबंधन के किस पार्टी के पाले में जाएगी. इसका खुलासा नहीं हो सका. कई मायनों में खास होगा चुनाव इस बार का चुनाव कई मायनों में खास माना जा रहा है. यहां पुराने और नए चेहरों के बीच दिलचस्प मुकाबला देखने को मिलेगा. त्रिवेणीगंज (सुरक्षित) सीट पर एनडीए ने इस बार बड़ा दांव खेलते हुए वर्तमान विधायक की जगह एक नए चेहरे को मौका दिया है. जिससे क्षेत्र में चर्चा तेज हो गई है. वहीं, महागठबंधन ने त्रिवेणीगंज और छातापुर विधानसभा क्षेत्रों में अपने पुराने प्रत्याशियों पर ही भरोसा बनाए रखा है. नेता सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों को लेकर जनता से जुड़ने की कोशिश करने में जोर-शोर से लगे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस बार सुपौल में एनडीए और महागठबंधन के बीच अनुभव व उत्साह का टक्कर देखने को मिलेगी. नई रणनीति, नए चेहरे और स्थानीय मुद्दे ये सभी मिलकर चुनाव को दिलचस्प बना रहे हैं. अब देखना होगा कि जनता इस बार किसे जनादेश देती है. :::::::::::::::: प्रत्याशी बने ऑफलाइन : सोशल मीडिया से गायब होने लगे भावी उम्मीदवार, चर्चाओं का बाजार गर्म सुपौल जिले में विधानसभा चुनाव को लेकर जहां सियासी तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है, वहीं प्रत्याशियों की घोषणा के बाद एक नया रुझान देखने को मिल रहा है.जैसे ही राजनीतिक दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की औपचारिक घोषणा की, वैसे ही सोशल मीडिया पर सक्रिय दिखने वाले कई भावी प्रत्याशी अचानक गायब हो गए. कुछ ने अपने पुराने पोस्ट डिलीट कर दिए तो कुछ ने पेज ही निष्क्रिय कर दिया. इस अप्रत्याशित ‘गायबगीरी’ को लेकर जिलेभर में चर्चाओं का बाजार गर्म है. लोगों का कहना है कि जो नेता अभी तक हर मुद्दे पर जनता के साथ खड़े दिख रहे थे, वे अब खामोश क्यों हैं? क्या टिकट न मिलने की निराशा है या भविष्य की रणनीति के तहत अपनाई गई ‘साइलेंट मोड पॉलिसी’? इस पर लोगों की अपनी-अपनी राय है. कुछ राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सोशल मीडिया से दूरी बनाना इन नेताओं की ‘इमेज रिपेयरिंग’ रणनीति का हिस्सा भी हो सकता है. वहीं जनता के बीच यह चर्चा भी चल रही है कि असली जनता का नेता वही है, जो चुनाव हो या न हो, हर समय लोगों के बीच दिखे. फिलहाल सुपौल की राजनीतिक फिजा में यह नया ‘सोशल मीडिया सन्नाटा’ चर्चा का प्रमुख विषय बन गया है. अब देखना दिलचस्प होगा कि जब प्रचार का शंखनाद बजेगा, तब ये गायब प्रत्याशी फिर से ऑनलाइन लौटते हैं या नहीं.
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