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डिस्लेक्सिया कोई बीमारी नहीं, बल्कि विशेष अधिगम असमर्थता है : नीरज कुमार

SASARAM NEWS.डिस्लेक्सिया कोई बीमारी या कमी नहीं है, बल्कि यह एक विशेष अधिगम असमर्थता है, जिसे समझने और संभालने की जरूरत है. उक्त बातें जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के प्राचार्य नीरज कुमार मौर्य ने शुक्रवार को डिस्लेक्सिया जागरूकता माह के तहत संस्थान में आयोजित जागरूकता विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कही.

डायट में डिस्लेक्सिया जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन, छात्रों ने निकाली रैली

सासाराम ऑफिस.

डिस्लेक्सिया कोई बीमारी या कमी नहीं है, बल्कि यह एक विशेष अधिगम असमर्थता है, जिसे समझने और संभालने की जरूरत है. उक्त बातें जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) के प्राचार्य नीरज कुमार मौर्य ने शुक्रवार को डिस्लेक्सिया जागरूकता माह के तहत संस्थान में आयोजित जागरूकता विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कही. उन्होंने कहा कि डिस्लेक्सिया की स्थिति बुद्धिमत्ता से जुड़ी नहीं होती, बल्कि सीखने की प्रक्रिया में आने वाली एक बाधा है, जिसे समय पर पहचान और सहयोग से दूर किया जा सकता है. उन्होंने कहा कि जागरूकता ही बदलाव की ओर पहला कदम है. अगर शिक्षक और समाज समझेंगे, तो कोई भी बच्चा पीछे नहीं रहेगा. व्याख्याता डॉ चंद्रप्रकाश मणि त्रिपाठी ने कहा कि डिस्लेक्सिया से प्रभावित बच्चों को अतिरिक्त ध्यान और सकारात्मक माहौल देने की जरूरत होती है. वहीं व्याख्याता सह कार्यक्रम की संचालनकर्ता अंजलि सिंह ने शिक्षक प्रशिक्षुओं को प्रेरित करते हुए कहा कि हर शिक्षक को संवेदनशील बनना होगा, ताकि कोई बच्चा खुद को कमतर न समझे. उन्होंने डिस्लेक्सिया के संबंध में विस्तृत जानकारी देते हुए बताया कि डिस्लेक्सिक से प्रभावित बच्चे मुख्यतः चित्रों में सोचते हैं, शब्दों में नहीं, और उन्हें अक्षरों या अंकों जैसे प्रतीकों के साथ सीखने में कठिनाई होती है. जब वे बचपन में भ्रमित या निराश होते हैं, तो उन्हें विकृत धारणाएं, जैसे अक्षरों का उलटा होना और जीवन भर सीखने में रुकावटें पैदा होती हैं, जो उनकी प्रगति में बाधा डालती हैं. सीखने में बाधा डालने वाली समस्याओं को ठीक किया जा सकता है. वे पढ़ने, लिखने, वर्तनी या गणित की गणना के नये और अधिक प्रभावी तरीके भी सीख सकते हैं, और इस प्रकार स्कूल या कार्यस्थल पर आने वाली समस्याओं पर काबू पा सकते हैं. उन्होंने कहा कि सुधार की अवधारणा इलाज से अलग है, क्योंकि डिस्लेक्सिया सुधार कार्यक्रम के बाद भी व्यक्ति डिस्लेक्सिक ही रहता है.डिस्लेक्सिया से जुड़े सभी सकारात्मक गुण उनमें अभी भी मौजूद होते हैं, और समय-समय पर उन्हें अपनी डिस्लेक्सिया के कारण चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. हालांकि, डिस्लेक्सिया सुधार व्यक्ति को अपनी डिस्लेक्सिया को नियंत्रित करने और उन चीजों को करने की क्षमता प्रदान करता है जो कभी डिस्लेक्सिया के बावजूद उन्हें कठिनाई देती थीं. इस कार्यक्रम के दौरान डायट के प्रशिक्षकों और वरिष्ठ व्याख्याताओं ने भी मंच से अपने विचार साझा किए.

रैली निकालकर लोगों को किया जागरूक

वहीं, कार्यक्रम के तहत विचार गोष्ठी के बाद एक जागरूकता रैली निकाली गयी, जो संस्थान परिसर से निकल विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए डायट परिसर में पहुंच संपन्न हुई. रैली में हाथों में बैनर और स्लोगन लिए छात्र-छात्राएं हर बच्चा है खास, उन्हें समझें, न कि करें जज जैसे नारे लगा रहे थे. उक्त कार्यक्रमों में डॉ अमरनाथ सिंह, डॉ ज्ञान प्रकाश तिवारी, डॉ पूर्णिमा पांडेय, मणिराज पांडेय, चंद्रमोहन चंद्राकर, अवध किशोर चौधरी, मोहम्मद इफ्तेखार अहमद, डॉ इंद्रजीत सिंह, अमित कुमार सिंह सहित डीएलएड प्रशिक्षु व अन्य मौजूद रहे.

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