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जीवन जीने की एक कला है कथा : स्वामी गुप्तेश्वर जी महाराज

फोटो-2-प्रवचन करते स्वामी गुप्तेश्वर जी महाराज जी. ए- प्रवचन सुनतीं महिलाएं व अन्य. प्रतिदिन, चेनारी आखिर कथा क्यों सुनी जाये, यह हमारे मन में

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फोटो-2-प्रवचन करते स्वामी गुप्तेश्वर जी महाराज जी. ए- प्रवचन सुनतीं महिलाएं व अन्य. प्रतिदिन, चेनारी आखिर कथा क्यों सुनी जाये, यह हमारे मन में प्रश्न बनता है. कथा से हमें क्या लाभ है, कथा से किन-किन लोगों ने अपने जीवन को सुधारा है. ये बातें गुरुवार की रात शतचंडी महायज्ञ के पांचवें दिन जगद्गुरु स्वामी गुप्तेश्वर जी महाराज जी ने कहीं. उन्होंने कहा कि कथा हमारे जीवन की वह संस्कृति है, कथा हमारे जीवन जीने की वह एक कला है, कथा हमारे जीवन को संवारने सजाने जगाने और जलाने की है. जलाने का दो अर्थ होता है, एक अपने दिल दिमाग मन बुद्धि की जो खामियां हैं, बुराइयां हैं, दोष है, उनको त्यागने को और अच्छे कर्मों को जीवन में उतारने को भी जगाना और जलाना कहा जाता है.एक दूसरे को अपने किसी दुराग्रह की स्थिति में उसकों विनष्ट और नष्ट करने की दृष्टि से जो व्यवहार किया जाता है. वह भी जलाना होता है. उन्होंने कहा कि कथा के द्वारा हम अपने दिलोदिमाग, मन, बुद्धि में किसी प्रकार की चिंगारी है, जो बूझने की स्थिति में है या कहीं बुझी सी प्रतीत होती है. इन कथा के द्वारा हम जानते हैं. ऐसी पावन कथा को सतयुग में ब्रह्मा जी भगवान श्रीमन्नारायण से जाने, इसी कथा को त्रेतायुग में वाल्मीकि जैसे संतों ने स्वीकार किया. इसी कथा को द्वापर युग में महर्षि वेदव्यास जी महाराज ने नारद जी से प्राप्त किया. हालांकि, व्यास जी ने अपने पिता से कथा श्रवण की थी, लेकिन सत्ता अनुष्ठान इत्यादि के रूप में नारद जी से उन्होंने जाना. उन्होंने कहा कि कथा केवल कहना और सुनना नहीं है. जिन शब्दों को सुनने के बाद हमारे दिल, दिमाग, मन, बुद्धि की किसी प्रकार की विकृतियां हैं, किसी प्रकार का दोष है, किसी प्रकार की त्रुटियां हैं, किसी प्रकार की खामियां हैं, उन्हें त्यागने के लिए भावित हो जाये, संकल्पित हो जाये. अच्छे कर्मों को करने के लिए संकल्पित हो जाये, तो सही मायने में कथा को जाना है.

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