समस्तीपुरः सामान्य बीमारी का बहाना बनाकर कोर्ट में पेशी से बचने की तरकीब ढूढ़ने वाले बंदियों के लिए यह बुरी खबर हो सकती है. अब न्यायालय में उपस्थापन के लिए बंदियों की छोटी मोटी बीमारियां बाधा नहीं बनेगी. अब कारा चिकित्सकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि न्यायालय में बंदियों को गंभीर बीमारी नहीं होने की स्थिति में उपस्थापन के समय निर्धारित तिथि को न्यायालय में भेजने के लिए रिपोर्ट भी देनी होगी.
साथ ही बंदियों के गंभीर बीमारी की स्थिति में कारा चिकित्सक को काराधीक्षक को जानकारी देनी होगी. ताकि, उनके न्यायालय में उपस्थापन पर रोक लगायी जा सक़े अगर न्यायालय में उपस्थापन के समय बंदियों की ओर से बीमारी की बात कही जाती है, तो यह संदेहास्पद होगा. इस स्थिति में विशेष छानबीन करने के बाद ही उनके उपस्थापन पर रोक लगायी जा सकती है. इसके लिए कारा अधीक्षक को डीएम को भी जानकारी देनी होगी. इस आलोक में सिविल सजर्न एक मेडिकल बोर्ड गठित कर बंदी का जांच करा सकता है.
इस बाबत सरकार के गृह कारा विभाग के प्रधान सचिव आमिर सुबहानी ने जिलों को निर्देश जारी किया है. जेल आइजी ए किशोर ने बताया कि कि स्पीडी ट्रायल मामलों पर विशेष ध्यान दिया जायेगा ताकि, कारा अधीक्षक प्रत्येक माह के प्रथम सप्ताह में निर्धारित तिथियों में बंदियों के न्यायालय में उपस्थापन की जानकारी सरकार को भेज सक़े इस स्थिति में अस्पताल में इंडोर मरीज के रूप में भरती व अन्य गंभीर बीमारियों से ग्रसित मरीजों के बारे में पूरी जानकारी देनी है. यदि कारा चिकित्सक गंभीर बीमारी की स्थिति से संतुष्ट हैं, तो उन्हें एंबुलेंस या स्ट्रेचर पर न्यायालय में उपस्थापन करा सकते हैं. इस हाल में कारा अधीक्षक को स्पीडी ट्रायल के अन्तर्गत न्यायालय में उपस्थापन की तिथि पर बीमार घोषित आंकड़ों का प्रतिवेदन जिला पदाधिकारी व एसपी को भेजेने का आदेश दिया है.
इतना ही नहीं कारा चिकित्सक को काराधीन बंदियों की ओर से बीमार घोषित करने के लिए अगर दबाव बनाया जाता है, तो कारा अधीक्षक को थाने में प्राथमिकी दर्ज करने का भी आदेश दिया गया है. साथ ही कारा में बंद बंदियों को हर हाल में त्वरित और ससमय चिकित्सा सुविधा मुहैया कराये जाने का आदेश दिया है. अगर बंदियों के चिकित्सा पर किसी तरह की कोताही बरती जाती है, तो काराधीक्षक भी कार्रवाई के शिकार हो सकती हैं.