अरविन्द कुमार जायसवाल,बीकोठी. पूर्णिया जिला मुख्यालय से 52 किलोमीटर दूर सुखसेना गांव में पिछले 297 वर्षों से भगवान श्रीकृष्ण का दरबार सज रहा है. सुखसेना गांव कृष्ण जन्माष्टमी मेला की विशेषता यह है कि यहां दूर-दूर से लोग अपने नवजात और छोटे बच्चों को लेकर आते हैं और भगवान कृष्ण को चांदी की बांसुरी चढ़ाते हैं.मेला अध्यक्ष शारदानंद मिश्र कहते हैं कि भगवान कृष्ण का सबसे प्रिय वस्तु बांसुरी है .जो बच्चे भगवान कृष्ण को बांसुरी चढ़ाते हैं वह काफी प्रतिभाशाली होते हैं. यहां बांसुरी चढ़ाने की प्रथा भी शुरू से ही चलते आ रही है .शारदानंद मिश्र ने बताया कि सुखसेना का कृष्णाष्टमी पूजा इस इलाके में प्रसिद्ध है. यहां दूर-दूर से लोग पूजा अर्चना करने और मन्नतें मांगने आते हैं. यहां लोगों की मन्नते भी पूरी होती है. बच्चे के जन्म के बाद पहली बार जो भी बच्चे इस मंदिर में आते हैं वह भगवान को चांदी की बांसुरी चढ़ाते हैं.चांदी की बांसुरी पूजा कमेटी की तरफ से ही दी जाती है और उसकी कीमत भी काफी कम रखी गई है ताकि हर वर्ग के बच्चे अपने समर्थ और सुविधा के अनुसार भगवान को बांसुरी चढ़ा सकें.वही राधा उमाकांत महाविद्यालय के प्राचार्य पंडित अमरनाथ झा ने बताया कि सुखसेना में श्रीकृष्ण मंदिर बहुत पहले से है. पहले यहां फूस का घर था. करीब 191 साल पहले सुखसेना श्रीकृष्ण स्थान के जीर्णोद्धार की जिम्मेवारी सुखसेना गांव के जमींदार बलदेव झा को मिली. बाद में यहां ग्रामीणों के सहयोग से भव्य मंदिर स्थापित की गई.शारदानंद मिश्र ने बताया कि सुखसेना में पहले नाटक और सांस्कृतिक कार्यक्रम होता था. जिसमें गांव के कलाकार अपने अभिनय की प्रस्तुति करते थे. तबला वादक मिथिलेश झा समेत इस गांव के कई कलाकार राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ख्याति बिखेर चुके हैं. पहले यहां सांस्कृतिक कार्यक्रम और नाटक को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे. यहां हर साल तीन दिनों का भव्य मेला भी लगता है जिसमें बड़ी संख्या में लोग पहुंचते हैं . जन्माष्टमी पर मूर्तियों को तैयार गांव के ही कलाकार पंकज झा के द्वारा किया जा रहा है. गांव के ही पुजारी धोगन झा जी ने बताया कि जब से कृष्णा जन्माष्टमी मेला शुरू हुआ है तब से मेरे पूर्वज के समय से पूजा करवाते आ रहे हैं.
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