जलालगढ़ (पूर्णिया) : 13 अगस्त की वह काली रात, जब प्रखंड क्षेत्र के कई हिस्से में सैलाब का पानी पहुंचा, तो रात और भी भयावह हो उठी. चक पंचायत का बैसा रहिका भी सैलाब से अछूता नहीं रहा. लोगों में अचानक खलबली मच गयी और लोग चीखने-चिल्लाने लगे. ऐसे में गांव का ही मल्लाह गिरजानंद ऋषि लोगों के लिए फरिश्ता बन कर आया और 15 अगस्त की सुबह तक अपने एक सहयोगी भीमा ऋषि के साथ 500 लोगों को नाव के सहारे सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने में सफल रहा. इस दौरान गिरजानंद चोटिल भी हुआ, लेकिन लोगों की मुश्किलें देख कर वह अपने मिशन को अंजाम देता रहा. अंतत: गिरजानंद की जीत हुई और वह अपने इलाके में अब सैलाब वाले हीरो के नाम से जाना जाता है.
150 परिवार के 500 लोगों की बचायी जान
गिरजानंद अपने गांव के बीच से गुजरनेवाली नदी में बीते पांच वर्षों से सरकारी नाव चलाता रहा है. 13 अगस्त की रात 10 बजे के लगभग गांव में बाढ़ का पानी प्रवेश किया. लोगों में अफरातफरी मच गयी. गिरजानंद ने सबसे पहले बैसा गांव से एक बड़ा तिरपाल लाया और उसे गांव के सबसे ऊंचे टीले पर लगाया और गांव के लोगों को वहां बैठाया. दरअसल, जिस समय बाढ़ का पानी घुसा, उस समय तेज बारिश भी हो रही थी. तिरपाल की व्यवस्था हो जाने के बाद गिरजानंद ने अपने सहयोगी भीमा ऋ षि के साथ पतवार संभाला और बचाव कार्य में जुट गये. नाव से बाहर निकलने का सिलसिला 15 अगस्त की सुबह तक जारी रहा. इस दौरान भूखे-प्यासे गिरजानंद ने बिना किसी विश्राम के अपने मिशन में जुटे रहे. इस प्रकार 150 परिवार के लगभग 500 लोगों को गिरजानंद सुरक्षित स्थान तक पहुंचाने में सफल रहे. गिरजानंद कहते हैं- ”भीमा ऋ षि नहीं होता, तो इतना बड़ा बचाव कार्य संभव नहीं था’.
चोटिल होने के बावजूद मिशन को किया पूरा
गिरजानंद की मानें, तो उसे जहां तक याद है, गांव में बहनेवाली नदी इस कदर बेलगाम नहीं हुई थी. वे कहते हैं, ”ईश्वर ऐसा फिर कभी दिन नहीं दिखाये”. गिरजानंद बतलाते हैं कि 13 अगस्त की रात पानी आने के साथ ही उन्होंने अपना मिशन आरंभ कर दिया. इस दौरान उसके हाथ में चोट भी लगी, आज भी गिरजानंद के हाथों में सूजन है, लेकिन उसने हार नहीं मानी. गिरजानंद बताते हैं कि सबसे पहले महिला और बच्चों को बाहर निकाला और उसके बाद बुजुर्ग और युवकों को बाहर निकाला गया. इतना ही नहीं बाद में मवेशी और घर के सामानों को भी उसने बाहर निकालने में लोगों की मदद की. गिरजानंद कहते हैं ”मुझे नहीं मालूम कि उस समय मुझे इतनी ताकत कहां से आयी कि भूखे-प्यासे रह कर लगातार लोगों को सुरक्षित स्थान तक पहुंचाता रहा. शायद यह हौसला ही था कि वे लोगों के लिए कुछ कर पाने में सफल रहे”. बहरहाल, बैसा रहिका सहित आसपास के सीमा गांव में गिरजानंद के इस अदम्य साहस की कहानी लोगों की जुबान पर चर्चा का विषय बना हुआ है.
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